मध्यप्रदेश (MP) की तपती दोपहरी और लंबी गर्मियां अब किसानों के लिए चुनौती नहीं, बल्कि अवसर बन गई हैं. वजह है- देसी गायों की ऐसी नस्लें, जो कम खर्च में ज्यादा दूध देकर किसानों की आय को दोगुना कर रही हैं. इन गायों का पालन न केवल दूध के लिए फायदेमंद है, बल्कि गोबर और गोमूत्र से मिलने वाले जैविक उत्पाद भी किसानों को अतिरिक्त आमदनी दे रहे हैं.
गिर गाय: गुजरात की शान, MP में नई उम्मीद
मीडििया रिपोर्ट के अनुसार, गिर गाय को गुजरात की पहचान मानी जाती है, अब MP की जलवायु में भी खूब फल-फूल रही है. इसकी खासियत है- 15 से 20 लीटर तक दूध देने की क्षमता, गर्मी में भी सक्रिय रहना और कम बीमार पड़ना. यही वजह है कि किसान इसे नई उम्मीद मानकर अपना रहे हैं. जो किसान लंबे समय तक स्थायी फायदा चाहते हैं, उनके लिए गिर गाय एक बेहतर विकल्प बन चुकी है.
साहीवाल और थारपारकर: छोटे किसानों की पहली पसंद
साहीवाल गाय मूल रूप से पंजाब की नस्ल है. MP के गांवों में इसकी लोकप्रियता किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं. इसका स्वभाव शांत होता है और इसे ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं पड़ती. 10 से 15 लीटर दूध प्रति दिन देने की क्षमता इसे छोटे किसानों के लिए मुफीद बनाती है. वहीं, थारपारकर नस्ल राजस्थान से आई है और बुंदेलखंड जैसे गर्म इलाकों में भी खूब टिकती है. यह 8 से 12 लीटर दूध देती है और कम पानी में भी जीवित रह सकती है. जलवायु परिवर्तन से जूझ रहे किसानों के लिए यह नस्ल किसी ढाल से कम नहीं है.
HF और जर्सी: दूध की मशीन और सस्ता हथियार
अगर दूध उत्पादन को बिजनेस की तरह देखना है, तो हॉल्स्टीन फ्रिसियन गाय सबसे ऊपर है. इसे दूध की मशीन कहा जाता है क्योंकि यह 25 से 30 लीटर तक दूध देती है. हालांकि, इसके लिए किसानों को सही इंफ्रास्ट्रक्चर, कूलिंग सिस्टम और अच्छी देखभाल की जरूरत होती है. छोटे किसानों के लिए जर्सी गाय किसी सस्ते हाई-टेक हथियार जैसी है. इसका कद छोटा होता है, खुराक कम लेती है और फिर भी 12 से 18 लीटर दूध दे देती है. इसकी सबसे बड़ी खासियत है- गर्मी सहने की क्षमता. यही वजह है कि गर्म इलाकों में भी इसकी मांग काफी ज्यादा है.
दूध से आगे, गोबर और गोमूत्र से भी कमाई
आज गाय सिर्फ दूध तक सीमित नहीं है. किसान गोबर से जैविक खाद, गोमूत्र से दवाइयां और पंचगव्य जैसे उत्पाद बनाकर अतिरिक्त कमाई कर रहे हैं. इससे खेतों की उर्वरक क्षमता बढ़ती है और बाजार में जैविक उत्पादों की अच्छी कीमत मिलती है.सरकार भी किसानों की इस दिशा में मदद कर रही है. राष्ट्रीय गोकुल मिशन और पशुपालन सब्सिडी योजनाओं से गाय पालन को नई रफ्तार मिल रही है. सही नस्ल चुनने और थोड़ी देखभाल करने पर किसान अपने गांव से ही लाखों की कमाई कर सकते हैं.
किसान अब ‘फ्लाइट मोड’ में
आज हालात यह हैं कि MP के किसान सिर्फ खेत में ट्रैक्टर चलाकर ही नहीं, बल्कि गाय के थनों से निकले दूध से भी जिंदगी बदल रहे हैं. सही नस्ल, सरकारी मदद और आधुनिक तरीकों के साथ किसान अब फ्लाइट मोड में जा चुके हैं. और इस उड़ान को गति देसी नस्ल की गायें ही दे रही हैं. गिर, साहीवाल, थारपारकर, HF और जर्सी जैसी नस्लें किसानों की कमाई बढ़ाने में मददगार साबित हो रही हैं. किसान चाहे छोटा हो या बड़ा, अगर सही योजना के साथ गाय पालन करे तो दूध की बाल्टी से उसकी खुशियां सचमुच छप्पर फाड़ निकल सकती हैं.
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