Goat Farming : पशुपालन करने वाले किसानों में इन दिनों एक खास नस्ल की बकरी चर्चा में है. पहाड़ी इलाकों में पाई जाने वाली यह बकरी अब मैदानी क्षेत्रों में भी पाली जा रही है. छोटे कद, कम देखभाल और पौष्टिक दूध की वजह से यह नस्ल किसानों की पहली पसंद बनती जा रही है. इस बकरी को अपनाकर कई पशुपालक धीरे-धीरे अच्छी कमाई कर रहे हैं, जिससे इसका चलन तेजी से बढ़ रहा है.
पहाड़ी नस्ल का मैदानी इलाकों में सफल प्रयोग
पश्मीना, चेगू, नीलगिरि तहर और चांगथांगी बकरियां ज्यादा दूध देने के साथ ही मीट के लिए भी काफी लोकप्रिय हैं. जबकि, दो बच्चे देने और जल्दी अगली ब्यांत के लिए तैयार होने के चलते ये बकरियां किसानों की खूब कमाई कराती हैं. पहाड़ी हिस्सों में इन्हें अनुकूल वातावरण के चलते पालना आसान है, लेकिन मैदानी इलाकों में इनके पालन में काफी सावधानी बरतनी होती है.
मैदानी इलाकों के किसान भी अब इन पहाड़ी नस्ल की बकरियों का खूब पालन कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि इस नस्ल का दूध बाजार में अधिक कीमत पर बिकता है, जिसकी वजह से सीमित जमीन वाले किसान भी अच्छी आय प्राप्त कर सकते हैं. यह प्रयोग साबित कर रहा है कि सही माहौल और थोड़ी तकनीकी समझ के साथ पशुपालन को नया रूप दिया जा सकता है.
देसी तकनीक से बनाया ठंडा और सुरक्षित शेड
गर्मी इस नस्ल के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. गर्मी से बचाने के लिए पशुपालकों ने एक देसी तकनीक अपनाई है. बकरियों के शेड के चारों ओर छोटे-छोटे फव्वारे लगाए जाते हैं, जिनसे समय-समय पर पानी का छिड़काव किया जाता है. इससे शेड का तापमान कम बना रहता है. इसके अलावा, जमीन की मिट्टी को भी नियमित रूप से गीला रखा जाता है ताकि बकरियाँ ठंडक महसूस करें. यह तरीका साबित करता है कि थोड़ी समझदारी और देसी जुगाड़ से पहाड़ी नस्ल की बकरी को गर्म इलाकों में भी आसानी से पाला जा सकता है.
कम हाइट, ज्यादा फायदा
इस नस्ल की सबसे बड़ी खासियत इसका छोटा कद और पौष्टिक दूध है. आमतौर पर इन बकरियों की ऊंचाई डेढ़ से दो फीट होती है. यद्यपि ये अन्य स्थानीय नस्लों की तुलना में मात्रा में थोड़ा कम दूध देती हैं, लेकिन इनके दूध की गुणवत्ता काफी बेहतर होती है. खासकर छोटे बच्चों के लिए इसका दूध बेहद लाभकारी माना जाता है. यह नस्ल जल्दी बढ़ती है और थोड़े ही समय में संख्या में वृद्धि भी करती है, जिसकी वजह से इसे कमाई के अच्छे साधन के रूप में देखा जा रहा है.
संतुलित आहार और देखभाल से बढ़ता उत्पादन
क्योंकि यह नस्ल ठंडे इलाकों से आती है, इसलिए इसकी देखभाल में थोड़ी अतिरिक्त सावधानी की जरूरत होती है. इनके आहार में मूंगफली के पत्ते, जौ का आटा, चना और अन्य पौष्टिक चारा शामिल किया जाता है. इससे बकरियाँ स्वस्थ रहती हैं और दूध की क्वालिटी बनी रहती है. नियमित सफाई, शेड में ठंडा वातावरण और पर्याप्त पानी उपलब्ध कराने से यह नस्ल आसानी से स्थानीय जलवायु में ढल जाती है और धीरे-धीरे अच्छी तरह विकसित होती है.
साल में दो बार बच्चे- किसानों के लिए फायदेमंद सौदा
इस नस्ल की सबसे आकर्षक बात यह है कि यह साल में दो बार बच्चे देती है. एक बार में 1 से 4 बच्चे होने की संभावना रहती है. इस तरह इसकी वृद्धि दर काफी तेज होती है, जिससे पशुपालकों को बिक्री के माध्यम से अतिरिक्त आय मिलती है. पहाड़ी नस्ल होने के बावजूद, अगर सही शेड और देखभाल की जाए, तो इसे किसी भी ठंडे या मध्यम तापमान वाले इलाके में आसानी से पाला जा सकता है. इसकी बढ़ती मांग और उच्च प्रजनन क्षमता के कारण इसे भविष्य में किसानों की कमाई का बेहतरीन साधन माना जा रहा है.