गेहूं की पहली सिंचाई में अगर चूक गए तो पछताएंगे, ये खाद डाली तो खेत उगलेगा सोना!
गेहूं की खेती में पहली सिंचाई सबसे अहम मानी जाती है. इसी समय पानी और खाद का सही तालमेल फसल की नींव मजबूत करता है. थोड़ी सी लापरवाही नुकसान पहुंचा सकती है, जबकि सही देखभाल पैदावार बढ़ाने का रास्ता खोल देती है. अनुभवी किसान इसी चरण को सबसे निर्णायक मानते हैं.
Wheat Farming : गेहूं की खेती में छोटी-सी चूक पूरे सीजन की मेहनत पर पानी फेर सकती है. खासकर पहली सिंचाई ऐसा पड़ाव होती है, जो फसल का भविष्य तय करती है. अगर इस समय पानी के साथ सही खाद और पोषक तत्व दे दिए जाएं, तो गेहूं की जड़ें मजबूत बनती हैं और पैदावार दोगुनी तक हो सकती है. यही वजह है कि अनुभवी किसान पहली सिंचाई को सबसे अहम मानते हैं.
पहली सिंचाई क्यों है सबसे जरूरी
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, गेहूं की पहली सिंचाई बुवाई के करीब 20 से 25 दिन बाद की जाती है. इस समय फसल क्राउन रूट इनिशिएशन यानी CRI अवस्था में होती है. यही वह दौर है जब पौधा जमीन के नीचे अपनी जड़ें मजबूत करता है और नई शाखाएं निकलना शुरू होती हैं. अगर इस समय नमी या पोषण की कमी रह जाए, तो पौधे कमजोर रह जाते हैं और टिलर कम निकलते हैं. बाद में कितनी भी खाद या पानी दे दिया जाए, नुकसान की भरपाई मुश्किल हो जाती है.
नाइट्रोजन से आती है हरियाली
पहली सिंचाई के समय नाइट्रोजन का खास ध्यान रखना जरूरी है. आमतौर पर किसान इसे यूरिया के रूप में देते हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कुल नाइट्रोजन की आधी मात्रा पहली सिंचाई से ठीक पहले या सिंचाई के साथ देना सबसे बेहतर माना जाता है. इससे पौधों की बढ़वार तेज होती है और खेत में हरियाली बनी रहती है. मजबूत पौधे आगे चलकर ज्यादा बालियां निकालते हैं, जिससे पैदावार बढ़ने की संभावना रहती है.
फॉस्फोरस और पोटाश से मिलेगी मजबूती
अगर बुवाई के समय फॉस्फोरस और पोटाश नहीं दिया गया हो, तो पहली सिंचाई पर इनका संतुलित उपयोग किया जा सकता है. फॉस्फोरस जड़ों को ताकत देता है और पौधों की पकड़ मजबूत करता है. वहीं पोटाश फसल को रोगों और मौसम की मार से बचाने में मदद करता है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, किसान अपनी जरूरत के हिसाब से डीएपी, एसएसपी या म्यूरेट ऑफ पोटाश का इस्तेमाल कर सकते हैं. सही मात्रा में इन खादों का प्रयोग फसल को संतुलित पोषण देता है.
जिंक-सल्फर और खाद डालने का सही तरीका
पहली सिंचाई के समय जिंक और सल्फर का प्रयोग भी बेहद फायदेमंद माना जाता है. प्रति एकड़ 10 से 12 किलो जिंक सल्फेट डालने से पत्तियों का पीलापन दूर होता है. सल्फर दानों की गुणवत्ता सुधारता है और पौधों को मजबूती देता है. ध्यान देने वाली बात यह है कि खाद हमेशा सिंचाई से पहले या हल्की नमी वाली मिट्टी में ही डालनी चाहिए. इससे पोषक तत्व पानी के साथ सीधे जड़ों तक पहुंचते हैं. जरूरत से ज्यादा खाद नुकसान पहुंचा सकती है, इसलिए मिट्टी जांच के आधार पर ही मात्रा तय करना समझदारी है.