श्रीअन्न की प्रमुख फसलों में से एक है कोदो की फसल जिसकी खेती पारंपरिक तरह से की जाती है. किसानों के लिए इसकी खेती फायदे का सौदा साबित हो सकती है. कोदो की फसल एक ऐसी फसल है जो कि सूखा प्रभावित इलाकों और कम उर्वरक वाले इलाकों में भी उगाई जा सकती है. इसकी खेती में लागत भी कम आती है और कम पानी और कम मेहनत में ये पोषण से भरी अच्छी फसल देती है. वैसे तो कोदो मुख्य रूप से खरीफ सीजन की फसल है, लेकिन देश के कुछ हिस्सों में इसकी खेती रबी सीजन में भी होती है.
सही जलवायु और मिट्टी का चुनाव
कोदो की खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली बलुई दोमट से लेकर मध्यम काली मिट्टी सही मानी जाती है, जिसका pH मान 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए. कोदो की खेती करने के लिए मॉनसून की पहली बारिश के बाद ही खेत की अच्छी तरह से 2 से 3 बार गहरी जुताई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें. इसके बाद खेत को समतल करें साथ ही खरपतवारों को भी नष्ट कर दें.
इस विधि से करें बीज बुवाई
कोदो की फसल के लिए बीज बुवाई से पहले बीजों का ट्राइकोडर्मा या थिरम 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचार करें. इसके बाद बीजों को अच्छे से धूप में सुखाएं. सूखने के तुरंत बाद ही बीजों की बुवाई करें. फैलाकर बीजों की बुवाई के लिए प्रति एकड़ फसल के लिए 6 से 8 किग्रा बीज और लाइन से बुवाई के लिए 5 से 6 किग्रा की जरूरत होती है. लाइन से बुवाई करते समय पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25 से 30 सेमी रखें और पौधे से पौधे की दूरी 8 से 10 सेमी रखें. वहीं फैलाकर बीज बोने के लिए बीज को समान रूप से हाथ मे लेकर खेत में फैलाएं , उसके बाद बीजों को हल्की मिट्टी से ढक दें.
फसल की कटाई और उत्पादन
कोदो की फसल बुवाई के करीब 90 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है. जब फसल के दाने कठोर हो जाएं और बालियां सूखने लग जाएं तब फसल की कटाई करें. कटाई के बाद फसल को अच्छे से सुखाकर उसे स्टोर करें. बात करें कोदो की फसल से होने वाले उत्पादन की तो कोदो की प्रति एकड़ फसल से किसान 6 से 8 क्विंटल तक पैदावार कर सकते हैं. वहीं अगर कोदो की उन्नत किस्मों की खेती की जाए तो प्रति एकड़ फसल से औसतन 10 से 12 क्विंटल पैदावार की जा सकती है.