बदलते मौसम ने बढ़ाई चिंता! गाय-भैंसों में फैल रहीं खतरनाक बीमारियां.. पशुपालकों को अलर्ट रहने की जरूरत
मौसम बदलते ही पशुओं में कई खतरनाक बीमारियां फैलने लगी हैं. पशु विशेषज्ञों के अनुसार इस समय गाय-भैंसों में गलघोटू, खुरपका और निमोनिया जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ गया है. पशुपालकों को साफ-सफाई और टीकाकरण पर खास ध्यान देना चाहिए.
Animal Diseases : मौसम का मिजाज बदलते ही इंसान तो बीमार पड़ते ही हैं, लेकिन इसका असर गाय, भैंस, बकरी और अन्य पशुओं पर भी गहराई से पड़ता है. इस वक्त तापमान में उतार-चढ़ाव और नमी के कारण कई तरह की बीमारियां पशुओं को अपनी चपेट में ले लेती हैं. यही वजह है कि पशुपालकों को इस समय बेहद सतर्क रहने की जरूरत होती है, ताकि उनके पशु स्वस्थ रहें और दूध उत्पादन पर असर न पड़े.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस मौसम में गलघोटू (Hemorrhagic Septicemia), खुरपका-मुंहपका (FMD), निमोनिया और परजीवी (Ticks & Worms) जैसे रोगों का खतरा बहुत अधिक रहता है. अगर इनका समय पर इलाज या टीकाकरण न किया जाए, तो ये बीमारियां झुंड के झुंड पशुओं को बीमार कर सकती हैं. खुरपका–मुंहपका से पशुओं के मुंह, जीभ और खुरों पर फफोले बन जाते हैं, जिससे वे खाना-पीना छोड़ देते हैं और दूध उत्पादन घट जाता है. इसलिए नियमित टीकाकरण जरूरी है.
गोशाला की सफाई और सूखापन सबसे जरूरी
बरसात और ठंड के बीच के मौसम में गोशाला का साफ और सूखा रहना बहुत जरूरी है. नमी और गंदगी से बैक्टीरिया और कीड़े जल्दी पनपते हैं, जिससे बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. गोशाला में ठंडी हवा सीधे न लगे, इसके लिए दीवारों को ढकना चाहिए. पशुओं के नीचे सूखी घास या भूसा बिछाकर नमी से बचाव किया जा सकता है. अगर गोशाला गीली या गंदी रहती है, तो पशु निमोनिया और सांस से जुड़ी बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं.
गलघोटू और निमोनिया से बचाव के उपाय
गलघोटू एक खतरनाक संक्रामक रोग है जो बारिश या ठंड में तेजी से फैलता है. इसमें पशु को तेज बुखार आता है, गला सूज जाता है और सांस लेने में दिक्कत होती है. इस बीमारी से बचने के लिए समय पर टीका लगवाना बहुत जरूरी है. वहीं, निमोनिया खासकर छोटे बछड़ों और कमजोर पशुओं में जल्दी फैलता है. ठंडी हवा या गीली जगह पर बैठने से यह बीमारी हो सकती है. इसलिए पशुओं को गुनगुना पानी पिलाना और रात में गर्म जगह पर रखना चाहिए.
हर तीन महीने में दें कृमिनाशक दवा
पशुओं में बीमारी फैलाने वाले कीड़े और टिक बदलते मौसम में तेजी से बढ़ते हैं. इसलिए हर तीन महीने में कृमिनाशक दवा देना जरूरी है. यह न केवल परजीवी से बचाव करती है, बल्कि पशु की भूख और स्वास्थ्य को भी बनाए रखती है. साथ ही पशुओं के बालों और त्वचा की सफाई पर ध्यान देना चाहिए ताकि कीड़े न पनपें. अगर संभव हो तो सप्ताह में एक बार पशु को हल्के गुनगुने पानी से नहलाएं.
संतुलित आहार और समय पर टीकाकरण
पशुपालकों को चाहिए कि वे अपने नजदीकी पशु चिकित्सक से संपर्क में रहें और मौसम के अनुसार टीकाकरण का पूरा शेड्यूल फॉलो करें. पशुओं को संतुलित आहार और साफ पानी दें ताकि उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे. साफ-सफाई, पोषण और टीकाकरण– ये तीन बातें पशुओं को बीमारियों से बचाने के सबसे बड़े हथियार हैं. अगर ये सावधानियां अपनाई जाएं, तो पशु स्वस्थ रहेंगे, दूध उत्पादन बढ़ेगा और पशुपालकों की आमदनी भी स्थिर बनी रहेगी.