मुर्रा भैंस दुनिया की नंबर-1 दुग्ध नस्ल, एक ब्यांत में देती है 2057 लीटर तक दूध
मुर्रा भैंस भारत की सबसे ज्यादा दूध देने वाली नस्ल मानी जाती है. इसका दूध उच्च फैट वाला होता है, जो किसानों के लिए अच्छी कमाई का साधन बन जाता है. मजबूत शरीर, कम बीमार पड़ने की आदत और हर मौसम में टिकने की क्षमता इसे सबसे पसंदीदा भैंस बनाती है.
Murrah Buffalo : अगर गांव में किसी किसान से पूछ लो कि सबसे भरोसेमंद और ज्यादा दूध देने वाली भैंस कौन-सी है, तो ज्यादातर एक ही नाम सुनने को मिलेगा-मुर्रा. यह भैंस सिर्फ हरियाणा की शान नहीं, बल्कि भारत की दूध संपन्नता की पहचान भी बन चुकी है. काला चमकदार रंग, मजबूत शरीर, कम बीमार पड़ने वाली प्रकृति और हर ब्यांत में ढेर सारा दूध.. यही वजह है कि मुर्रा आज भारत से लेकर विदेशी देशों तक किसानों की पहली पसंद बन चुकी है.
मुर्रा भैंस: हरियाणा की शान और किसानों का गर्व
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, मुर्रा भैंस को भारत की सबसे बेहतरीन दुग्ध देने वाली नस्ल माना जाता है. यह मुख्य रूप से हरियाणा के हिसार, रोहतक, जींद, गुड़गांव और दिल्ली के आस-पास के इलाकों में पाई जाती है. कहा जाता है कि अगर किसी किसान के पास अच्छी मुर्रा भैंस हो, तो उसका डेयरी कारोबार आधा तो अपने आप ही सफल हो जाता है. इस भैंस का रंग इतना चमकदार काला होता है कि दूर से ही पहचान हो जाती है. इसके सींग छोटे और कसकर मुड़े हुए होते हैं, जिसे देखकर कोई भी समझ सकता है कि यह मुर्रा नस्ल है. यह भैंस भारत में सबसे ज्यादा दूध देने के साथ-साथ अपने शरीर की मजबूती और लंबे समय तक दूध देने की क्षमता के लिए भी जानी जाती है.
सबसे ज्यादा दूध देने वाली भैंस, एक ब्यांत में 2057 लीटर तक दूध
मुर्रा भैंस की सबसे बड़ी खासियत है-दूध देने की क्षमता . एक सामान्य मुर्रा भैंस एक ब्यांत में औसतन 1750 लीटर दूध देती है, जबकि कई रिकॉर्ड में यह मात्रा 2057 लीटर तक पहुंची है. इसके दूध में औसतन 6.9 फीसदी फैट पाया जाता है, जो घी, मक्खन और पनीर बनाने के लिए बहुत बढ़िया माना जाता है. यही वजह है कि डेयरी उद्योग में मुर्रा भैंस का दूध सबसे प्रीमियम माना जाता है. भारत ही नहीं, बल्कि ब्राज़ील, वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया और श्रीलंका में भी मुर्रा भैंसों को ले जाया गया है और वहां डेयरी किसानों के लिए इस नस्ल ने कमाल का प्रदर्शन किया है.
मुर्रा भैंस को कैसे पहचानें? ये खास निशानियां हमेशा याद रखें
- मुर्रा भैंस की पहचान बहुत आसान है.
- इसका पूरा शरीर गहरे जेट ब्लैक रंग का होता है.
- इसके सींग छोटे, मोटे और कसकर स्पाइरल की तरह मुड़े रहते हैं.
- शरीर मांसल, चौड़ा और देखने में मजबूत प्रतीत होता है.
मादा भैंस की ऊंचाई लगभग 133 सेमी, लंबाई 148 सेमी और नर की ऊंचाई करीब 142 सेमी होती है. इनकी आंखें चमकदार, गर्दन भारी और स्किन नरम लेकिन मजबूत होती है. यही बनावट इसे लंबे समय तक काम और दूध देने के लिए सक्षम बनाती है. किसान बताते हैं कि मुर्रा भैंस को देखकर ही अंदाजा लग जाता है कि यह साधारण नस्ल से कितनी अलग और ज्यादा उत्पादक है.
पालन-पोषण आसान: कम बीमार, ज्यादा सहनशक्ति वाली नस्ल
मुर्रा भैंस को पालना किसानों के लिए मुश्किल नहीं होता क्योंकि यह नस्ल कठिन मौसम में भी अच्छे से टिक जाती है. गर्मियों में इसे छाया और पानी चाहिए होता है, जबकि सर्दियों में सामान्य देखभाल काफी होती है. किसान आमतौर पर इसे अर्ध-गहन पद्धति यानी Semi-Intensive तरीके से पालते हैं- दिन में खुली जगह पर रखते हैं. रात में ठंडी और हवादार जगह पर बांधते हैं. रबी में बरसीम, जई, सरसों का चारा खरीफ में बाजरा , ज्वार और मक्का इनके शेड कच्चे फर्श और पक्की दीवारों वाले होते हैं. यह नस्ल कम बीमार पड़ती है और रोगों से लड़ने की क्षमता भी अधिक होती है. इस वजह से डॉक्टर का खर्च भी कम आता है.
दूध की क्वालिटी बेहतरीन, डेयरी व्यवसाय के लिए सबसे सफल नस्ल
मुर्रा भैंस का दूध सिर्फ मात्रा में ही नहीं, बल्कि गुणवत्ता में भी सबसे आगे है. इसके दूध में फैट 6.9 फीसदी से लेकर 7.8 फीसदी तक पाया जाता है. यह फैट स्तर उन किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है जो घी, मक्खन और पनीर बनाकर बेचते हैं. पहली बार ब्याने की उम्र लगभग 43 महीने होती है और दो ब्यांतों के बीच लगभग 14-15 महीने का अंतर होता है. मुर्रा का दूध बाजार में हमेशा अधिक दाम पर बिकता है. इसी वजह से छोटे किसान, बड़े डेयरी फार्म और यहां तक कि सरकारी योजनाओं में भी मुर्रा भैंस को बढ़ावा दिया जाता है.
किसानों के लिए फायदे ही फायदे
अगर कोई किसान डेयरी फार्म शुरू करना चाहता है, तो मुर्रा भैंस उसके लिए सबसे बढ़िया विकल्प मानी जाती है. इसके फायदे-
- ज्यादा दूध
- अधिक फैट
- कम बीमार
- ज्यादा सहनशक्ति
- हर मौसम में टिकाऊ
- बछड़े खेती और प्रजनन में उपयोगी
सिर्फ दूध से ही नहीं, इसके बछड़ों की भी अच्छी कीमत मिलती है. इस नस्ल का नाम भारत में ही नहीं, विदेशों में भी तेजी से बढ़ा है, जिससे देश की डेयरी पहचान मजबूत हुई है.