अगर आप मुर्गीपालन करते हैं तो ये खबर जरूर पढ़िए. बरसात के मौसम में पोल्ट्री फार्म में रानीखेत नाम की एक खतरनाक बीमारी फैलती है, जिसे न्यूकैसल डिजीज भी कहा जाता है. यह वायरस अगर एक मुर्गी को भी लग गया तो पूरे फार्म में आग की तरह फैल सकता है. इस मुर्गियां एक-एक कर मरने लगती हैं और देखते ही देखते पूरा कारोबार खत्म हो जाता है. लेकिन डरने की जरूरत नहीं है. समय पर टीकाकरण, साफ-सफाई और थोड़ी सावधानी से आप अपने फार्म को इस बीमारी से बचा सकते हैं. यही सतर्कता आपका मुनाफा और मेहनत दोनों सुरक्षित रखती है.
मुर्गियों की जान का दुश्मन बना वायरस
रानीखेत रोग एक खतरनाक और तेजी से फैलने वाली वायरल बीमारी है, जो खासतौर पर मुर्गियों को प्रभावित करती है. यह बीमारी टर्की, बत्तख, कबूतर, कौवा, तीतर और कोयल जैसे पक्षियों में भी देखी जाती है. लेकिन सबसे ज्यादा असर मुर्गियों पर पड़ता है. क्योंकि यह वायरस पक्षियों के शरीर में जाकर उनकी सांस की नली, आंत और मस्तिष्क को नुकसान पहुंचाता है. भारत के लगभग सभी राज्यों में यह रोग पाया गया है, जिससे पोल्ट्री फार्म मालिकों को भारी आर्थिक नुकसान होता है. सही समय पर टीकाकरण और साफ-सफाई से इस बीमारी से बचा जा सकता है.
कैसे फैलता है ये वायरस?
मीडिया के एक रिपोर्ट के मुताबिक, रानीखेत बीमारी बहुत तेजी से फैलती है. यह वायरस संक्रमित पक्षियों के मल, दूषित हवा, पानी, दाना और बर्तनों से फैल सकता है. यहां तक कि गंदे कपड़े या खराब वैक्सीन भी इसका कारण बन सकते हैं. जैसे ही लक्षण दिखते हैं, कुछ ही दिनों में मुर्गियों की मौत शुरू हो जाती है. इतना ही नहीं कई बार तो पूरी फार्म की मुर्गियां मर जाती हैं. ऐसे में समय पर सफाई और टीकाकरण से ही इस खतरनाक बीमारी से बचा जा सकता है.
ऐसे पहचाने इस रोग के लक्षण
रानीखेत रोग में मुर्गियों का दिमाग प्रभावित हो जाता है, जिससे शरीर का संतुलन बिगड़ता है और गर्दन टेढ़ी हो जाती है. इसके अलावा मुर्गियों को सांस लेने में दिक्कत होती है और वे मुंह खोलकर हांफने लगती हैं. छींक, खांसी, लकवा और हरे-सफेद रंग के पतले दस्त इस बीमारी के सामान्य लक्षण हैं. यदि समय पर इलाज न हो तो यह रोग पूरे फार्म में फैल सकता है और मुर्गियों की जान ले सकता है.
टीकाकरण है एकमात्र बचाव
रानीखेत रोग का कोई पक्का इलाज नहीं है, इसलिए इससे बचाव के लिए वैक्सीनेशन ही सबसे असरदार तरीका माना जाता है. इसके लिए मुर्गियों को सुबह के समय वैक्सीन दी जानी चाहिए ताकि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बेहतर तरीके से काम करे. इस रोग से बचाने के लिए 5 से 7 दिन की उम्र में ‘एफ स्ट्रेन’ या ‘लासोटा’ वैक्सीन दी जाती है. इसके बाद 8 से 9 हफ्ते और 16 से 18 हफ्ते की उम्र में ‘आर-2-बी स्ट्रेन’ की बूस्टर डोज दी जाती है.
साफ-सफाई और निगरानी जरूरी
पोल्ट्री फार्म को बीमारी से बचाने के लिए सफाई बेहद जरूरी है. ऐसे में फार्म को हमेशा साफ-सुथरा रखें. इसके अलावा मुर्गियों के दाने और पानी के बर्तनों को रोजाना धोना चाहिए ताकि संक्रमण न फैले. यही नहीं जब भी फार्म में नए पक्षी लाएं तो उन्हें सीधे बाकी पक्षियों में न मिलाएं. पहले कुछ दिन अलग रखकर उनकी निगरानी करें, ताकि बीमारियों का खतरा कम हो.