देश ही नहीं विदेशों तक है डिमांड, कड़कनाथ मुर्गा.. मांस से लेकर पंख तक काला, कीमत 1200 रुपये किलो

कड़कनाथ मुर्गा सिर्फ स्वाद के लिए ही नहीं, बल्कि कम कोलेस्ट्रॉल और ज्यादा प्रोटीन की वजह से भी बहुत पसंद किया जाता है. यह सामान्य चिकन से करीब 5 गुना ज्यादा बड़ा होता है. अब कड़कनाथ मुर्गा नेपाल, भूटान और मलेशिया जैसे देशों में भी काफी लोकप्रिय हो गया है.

वेंकटेश कुमार
नोएडा | Updated On: 22 Jul, 2025 | 06:55 PM

Kadaknath Chicken: जब भी सबसे महंगे और टेस्टी चिकन की बात होती है, तो लोगों के जेहन में सबसे पहले कड़कनाथ मुर्गे की तस्वीर उभरकर सामने आती है. यह मुर्गा अपने रंग और स्वादिष्ट मांस के लिए जाना जाता है. मार्केट में इसका रेट 1000 रुपये किलो से ज्यादा है. इसके अंडे की भी कीमत बहुत अधिक है. यही वजह है कि इसे GI टैग मिल चुका है. भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी भी कड़कनाथ मुर्गे का पालन करते हैं. इसी के बाद यह नस्ल पूरे देश में चर्चा में आई. लेकिन ऐसे इस नस्ल के मुर्गे का मूल स्थान मध्य प्रदेश का झाबुआ जिला है. यही से निकलकर मुर्गे की यह नस्ल अब पूरे देश में फैल गई है. तो आइए आज जानते हैं कड़कनाथ मुर्गे की खासियत के बारे में.

यह मुर्गा अपने खास स्वाद, काले मांस और काले पंखों के लिए जाना जाता है. मुख्य रूप से झाबुआ जिले के आदिवासी इलाकों में पाया जाता है. इसे साल 2018 में जीआई टैग मिला है. हालांकि, जीआई टैग के लिए छत्तीसगढ़ भी दावा कर रहा था, लेकिन मध्य प्रदेश को जीत हुई. यह GI टैग 28 मार्च 2018 को GI जर्नल नंबर 104 में दर्ज किया गया था. खास बात यह है कि पशुपालन विभाग की लगातार कोशिशों से यह सफलता मिली थी. GI टैग चेन्नई की GI रजिस्ट्री द्वारा दिया जाता है. यह टैग यह साबित करता है कि किसी उत्पाद की खासियत उस क्षेत्र से जुड़ी होती है.

छत्तीसगढ़ ने 2017 में GI टैग के लिए किया था दावा

जैसे कश्मीरी पश्मीना, दार्जिलिंग चाय, कांचीपुरम सिल्क और तिरुपति लड्डू को भी GI टैग मिल चुका है. अब कोई भी दूसरा कड़कनाथ नाम का इस्तेमाल करके कोई और काला मुर्गा नहीं बेच पाएगा. इससे असली उत्पादकों को अच्छी कीमत मिलने की उम्मीद भी बढ़ेगी. मध्य प्रदेश ने 2012 में कड़कनाथ मुर्गे के लिए GI टैग पाने के लिए आवेदन किया था, जबकि छत्तीसगढ़ ने 2017 में दावा किया. जब छत्तीसगढ़ के आवेदन की खबर आई, तो मध्य प्रदेश सरकार ने अपनी कोशिशें और तेज कर दीं ताकि यह टैग उन्हें ही मिले.

मांस में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बहुत कम

कड़कनाथ मुर्गा सिर्फ स्वाद के लिए ही नहीं, बल्कि कम कोलेस्ट्रॉल और ज्यादा प्रोटीन की वजह से भी बहुत पसंद किया जाता है. यह सामान्य चिकन से करीब 5 गुना ज्यादा बड़ा होता है. अभी झाबुआ में करीब 23 आदिवासी सहकारी समितियों से जुड़े सैकड़ों लोग इस मुर्गे का पालन कर रहे हैं. सरकार अब इन समितियों को हैचिंग मशीन खरीदने के लिए लोन दे रही, ताकि उत्पादन बढ़ाया जा सके.

मांस से लेकर नाखून तक काला

अगर कड़कनाथ की खासियत के बारे में बात करें, तो इसका मांस, चोंच, जीभ, टांगे, नाखून, चमड़ी और कलगी तक सब कुछ काले रंग का होता है. यह रंग मेलानिन पिगमेंट की अधिकता की वजह से होता है. यह चिकन हृदय रोगियों और डायबिटीज के मरीजों के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है, क्योंकि इसका मांस कम वसा वाला, ज्यादा प्रोटीन से भरपूर, स्वादिष्ट और आसानी से पचने वाला होता है. कड़कनाथ को कुछ जगहों पर ‘काली मांसी’ के नाम से भी जाना जाता है. इन्हीं खासियतों की वजह से बाजार में इसकी मांग काफी ज्यादा रहती है. वहीं, कड़कनाथ के अंडे मिडियम आकार के होते हैं और इनका रंग हल्का भूरा या गुलाबी होता है.

इन देशों में बढ़ी कड़कनाथ की मांग

कड़कनाथ मुर्गा अब नेपाल, भूटान और मलेशिया जैसे देशों में भी काफी लोकप्रिय हो गया है. इसकी अनोखी खासियत और सेहत के लिए फायदेमंद गुणों की वजह से विदेशों में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है और इसका निर्यात भी लगातार बढ़ रहा है. अगर कोई किसान 100 कड़कनाथ मुर्गे पालता है, तो वह सिर्फ 2 से 3 महीनों में 1 से 1.5 लाख रुपये तक कमा सकता है. इसके चूजे की कीमत लगभग 80 से 100 रुपये होती है. जबकि बड़ा मुर्गा 800 से 1200 प्रति किलो तक बिकता है.

क्या होता है जीआई टैग

ऐसे जीआई टैग का पूरा नाम Geographical Indication यानी भौगोलिक संकेत है. यह एक तरह का प्रमाणपत्र होता है जो यह बताता है कि कोई उत्पाद किसी खास क्षेत्र या भौगोलिक स्थान से जुड़ा हुआ है और उसकी विशिष्ट गुणवत्ता, पहचान या प्रतिष्ठा उस क्षेत्र की वजह से है.

कड़कनाथ से जुड़े कुछ फैक्ट्स फाइल

  • कड़कनाथ को साल 2018 में मिला जीआई टैग
  • इसके चूजे की कीमत लगभग 80 से 100 रुपये होती है
  • 800 रुपये से 1200 रुपये किलो बिकता है कड़कनाथ मुर्गा
  • मांस, चोंच, जीभ, टांगे, नाखून, चमड़ी और कलगी तक सब कुछ काले रंग का
  • इसका मूल स्थान मध्य प्रदेश का झाबुआ जिला है
  • इसके मांस में प्रोटीन बहुत पाया जाता है

 

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Published: 22 Jul, 2025 | 06:41 PM

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