मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के ग्राम आरुल के किसान भूपेंद्र पवार ने गेहूं और सोयाबीन जैसी परंपरागत फसलों को छोड़कर गेंदे के फूल और डेयरी से ऐसी खेती की राह पकड़ी, जिसने उनके जीवन में आमदनी और आत्मनिर्भरता दोनों का नया रास्ता खोल दिया. आइए जानते हैं उनके सफलता की पूरी कहानी?
गेंदा बना गेमचेंजर
किसान भूपेंद्र पहले गेहूं और सोयाबीन की खेती करते थे. इस खेती में मेहनत बहुत होती थी लेकिन आमदनी सीमित थी. फिर उन्होंने उद्यानिकी विभाग की ‘पुष्प क्षेत्र विस्तार योजना’ के बारे में जाना और फैसला किया कि अब कुछ अलग करना है.पिछले साल उन्होंने एक एकड़ ज़मीन पर गेंदे की खेती शुरू की. इससे उन्हें करीब 1.25 लाख रुपये की कमाई हुई, जो पारंपरिक खेती से कई गुना ज्यादा थी.उन्होंने ये खेती ये सोचकर किया कि गेंदा ऐसा फूल है, जिसकी मांग सालभर रहती है. क्योंकि त्योहारों, शादियों और धार्मिक आयोजनों में इसकी खपत लगातार बनी रहती है. इससे उनके बाजार की चिंता भी खत्म हो गई.
फूल खेती के साथ डेयरी भी
गेंदे की खेती से मिली सफलता से भूपेंद्र का आत्मविश्वास बढ़ा. उन्होंने डेयरी व्यवसाय शुरू किया और आज उनके पास चार दुधारू पशु हैं. इन पशुओं से रोज दूध निकलता है जो घर की जरूरतों को पूरा करता है और स्थानीय बाजार में बेचकर अच्छी कमाई भी हो जाती है. इस तरह फूल और दूध की खेती ने उनकी आय को दोतरफा मजबूती दी.
हर फसल से बना फायदा
भूपेंद्र ने केवल गेंदा और दूध तक खुद को सीमित नहीं रखा. उन्होंने अपनी खेती में पपीता, आम और ककड़ी जैसी फसलें भी जोड़ीं. खासकर पपीता और ककड़ी की अच्छी मांग रहती है और इससे उनकी कमाई में निरंतरता बनी रहती है. सरकारी योजनाओं और कृषि विभाग के प्रशिक्षण ने उन्हें नई तकनीकों से अवगत कराया. इससे उनकी खेती न सिर्फ अच्छी हुई, बल्कि पूरे साल आमदनी का चक्र भी बना रहा.
खेत बना महिला सशक्तीकरण का केंद्र
भूपेंद्र के खेत में आज गांव की कई महिलाएं काम कर रही हैं. उन्हें काम मिलने से आमदनी बढ़ी है और उनके परिवारों को ताजी, जैविक सब्जियां भी मिल जाती हैं, जिससे उनके सेहत में सुधार आया है. भूपेंद्र की यह खेती अब आसपास के किसानों के लिए प्रेरणा बन चुकी है. कई किसान उनके पास खेती सीखने आते हैं और बैतूल के कृषि विज्ञान केंद्र में जाकर आधुनिक खेती की तकनीकों के बारे में सीखते हैं.