महाराष्ट्र में आजकल खेती की जमीन को लेकर बड़े पैमाने पर विवाद देखने को मिल रहे हैं. कई किसान ऐसे हैं जो बरसों से अपनी जमीन बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. वजह? फर्जी दस्तावेज, झूठे वारिस और बिना इजाजत की गई जमीन का गलत इस्तेमाल. आज हम आपको बताएंगे कि कैसे एक मामूली सी चूक आपकी पुश्तैनी जमीन को खतरे में डाल सकती है, और किस तरह हजारों लोग अपनी जमीन पहले ही खो चुके हैं.
क्या है 7/12 दस्तावेज और क्यों बन रहा है सिरदर्द?
महाराष्ट्र में खेती की जमीन की असली पहचान होती है “7/12 उतारा”. यह दस्तावेज बताता है कि जमीन किसके नाम पर है, कितनी है और किस काम में इस्तेमाल हो रही है. लेकिन कई बार ये कागज गलत जानकारी के साथ तैयार हो जाते हैं जैसे कि असली मालिक की जगह किसी और का नाम दर्ज हो जाना. अगर समय रहते इस गलती को ठीक नहीं किया गया, तो असली मालिक को भी अपनी जमीन खोनी पड़ सकती है.
बिना मंजूरी किए गए निर्माण बना रहे हैं मुसीबत
अक्सर देखा जाता है कि कई लोग खेती की जमीन पर घर, गोदाम और दुकान का निर्माण कर लेते हैं वो भी बिना किसी सरकारी मंजूरी के. ऐसा करना कानून के खिलाफ है. जमीन का इस्तेमाल बदलने के लिए ‘एनए’ (नॉन एग्रीकल्चर) मंजूरी जरूरी होती है. बिना मंजूरी के निर्माण होने पर सरकार न सिर्फ जुर्माना लगा सकती है, बल्कि जमीन को जब्त भी कर सकती है.
फर्जी वारिस बनाकर हड़प रहे हैं जमीन
कुछ धोखेबाज लोग नकली कागज बनाकर खुद को जमीन का वारिस बता देते हैं. जब मामला अदालत या राजस्व विभाग तक जाता है, तब असली तस्वीर सामने आती है, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है. कई बार असली मालिक को सालों कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं, और तब भी जमीन वापस मिलना मुश्किल हो जाता है.
जरा सी लापरवाही पड़ सकती है भारी
अगर आप खेती की जमीन के मालिक हैं, तो इन बातों का ध्यान रखें:
- 7/12 दस्तावेज हर साल चेक करें और अपडेट करवाएं
- वारिसों का नाम ठीक से दर्ज कराएं
- किसी भी तरह का निर्माण करने से पहले मंजूरी लें
- जमीन की खरीद-बिक्री करते समय वकील की सलाह जरूर लें