शेर-ए-कश्मीर एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (SKUAST) के वैज्ञानिकों और रिसर्चर्स ने भारत की पहली जीन-संपादित (gene-edited) भेड़ तैयार की है. यह भेड़ CRISPR-Cas9 तकनीक से विकसित की गई है. SKUAST के वाइस चांसलर डॉ. नजीर अहमद गनई ने कहा कि हमने एक खास जीन को टारगेट किया है, जिससे भेड़ की मांसपेशियों का वजन बढ़ता है. इस बदलाव से भेड़ का वजन सामान्य भेड़ों की तुलना में लगभग 30 फीसदी ज्यादा हो जाता है. यानी अब भेड़ पालकों की मांस बेचकर बंपर कमाई होगी.
उन्होंने कहा कि यह बदलाव ‘मायोस्टेटिन जीन’ (myostatin gene) में किया गया है, जो मांसपेशियों की ग्रोथ को कंट्रोल करता है. इस जीन को ब्लॉक करने से भेड़ की मांसपेशियां ज्यादा विकसित हो जाती हैं. फिलहाल तीन महीने की उम्र का यह जीन-संपादित मेमना अब साफ तौर पर सामान्य मेमनों से भारी है. इसके डीएनए को और पुष्टि के लिए विदेशों की रिसर्च लैब्स में भेजा जाएगा. डॉ. गनई ने यह भी कहा कि भारतीय भेड़ों में यह खासियत प्राकृतिक रूप से नहीं होती, लेकिन यूरोप की कुछ नस्लों जैसे Texel में यह विशेषता पाई जाती है.
चार साल की रिसर्च के बाद मिली सफलता
यह उपलब्धि SKUAST-कश्मीर के वेटरनरी साइंसेज़ फैकल्टी के डीन डॉ. रियाज अहमद शाह और उनकी टीम ने करीब चार साल की रिसर्च के बाद हासिल की है. डॉ. शाह की टीम ने इससे पहले 2012 में भारत की पहली क्लोन की गई पश्मीना बकरी ‘नूरी’ भी तैयार की थी. कुछ हफ्ते पहले, केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने CRISPR-Cas9 तकनीक से बनी दुनिया की पहली जीन-संपादित चावल की किस्में भी जारी की थीं, जो भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिकों ने तैयार की हैं.
एक भेड़ से मिलेगा 2.5 किलो तक ऊन
जीन-संपादित भेड़ की खास बात यह है कि इसमें कोई विदेशी डीएनए नहीं जोड़ा गया है, जिससे यह ट्रांसजेनिक जीवों से अलग है. यह बात इसे भारत की नई बायोटेक नीति के तहत मंजूरी मिलने में मदद कर सकती है. डॉ. गनई ने कहा कि यह जीन-संपादित भेड़ स्थानीय ‘मेरिनो’ नस्ल की है. जन्म के समय इसका वजन सामान्य मेमनों जितना था, लेकिन तीन महीनों में यह कम से कम 100 ग्राम ज्यादा भारी हो गई. उन्होंने यह भी बताया कि ऊन उत्पादन के मामले में जीन-संपादित और सामान्य भेड़ में ज्यादा फर्क नहीं होगा. दोनों से करीब 2 से 2.5 किलो तक ऊन मिलेगा. लेकिन चूंकि जीन-संपादित भेड़ का वजन ज्यादा होगा, इसलिए उससे ज्यादा मांस मिलेगा.