पुराने दौर की बैल खेती क्यों फिर हुई लोकप्रिय, क्या सच में बढ़ती है फसल की उपज?
आधुनिक मशीनों के दौर में भी बैल से खेती करने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है. कई किसान मानते हैं कि इससे मिट्टी की सेहत बेहतर रहती है, उत्पादन स्थिर रहता है और लागत भी कम आती है. मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि प्राकृतिक खेती में बैल की भूमिका आज भी बेहद महत्वपूर्ण है.
Traditional Farming : आज खेती-किसानी में आधुनिक मशीनें तेजी से अपनी जगह बना चुकी हैं. खेतों में ट्रैक्टर, पावर टिलर और आधुनिक औजार देखकर लगता है कि परंपरागत खेती अब सिर्फ इतिहास की किताबों में मिलेगी. लेकिन हैरानी की बात यह है कि पुराने समय में इस्तेमाल होने वाली बैल आधारित खेती आज भी कई किसानों की पहली पसंद बनी हुई है. बैल से की गई जुताई न केवल मिट्टी के लिए फायदेमंद होती है, बल्कि इससे पैदावार भी बेहतर मिलती है. सवाल उठता है-आखिर ऐसा क्या है बैल आधारित खेती में, जो इसे आज भी इतना खास बनाता है?
बैल से जुताई मिट्टी को रखती है जिंदा और सांस लेने लायक
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, खेत की मिट्टी खेती की सबसे बड़ी ताकत होती है. जब मिट्टी स्वस्थ होती है, तभी फसल अच्छा उत्पादन देती है. बैल से जुताई करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि मिट्टी दबती नहीं, बल्कि भुरभुरी रहती है. मशीनें खेत में गहरी जुताई करती हैं और अक्सर मिट्टी को इतना दबा देती हैं कि नीचे की परतें कड़ी हो जाती हैं. इसके उलट बैल हल्की, समान और प्राकृतिक जुताई करते हैं, जिससे मिट्टी के अंदर मौजूद हवा, नमी और पोषक तत्व सुरक्षित रहते हैं. यही वजह है कि बैल आधारित खेती को मृदा स्वास्थ्य के लिए सबसे कारगर तरीका माना जाता है.
बैल की खेती से मृदा प्रदूषण कम होता है, खेत रहता है प्राकृतिक
मशीनों के इस्तेमाल से खेत में न सिर्फ मिट्टी दबती है, बल्कि डीजल और धुएं से मिट्टी का प्रदूषण भी बढ़ता है. बैल आधारित खेती पूरी तरह प्राकृतिक मानी जाती है, क्योंकि इसमें ईंधन का इस्तेमाल नहीं होता. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, जब खेती प्राकृतिक तरीके से की जाती है, तो खेत में बनने वाली फसल अधिक पौष्टिक होती है और रसायनों की जरूरत कम पड़ती है. बैलों के गोबर और मूत्र का उपयोग जैविक खाद के रूप में किया जाता है, जिससे खेत का पोषण स्तर बढ़ता है और मिट्टी कई सालों तक उपजाऊ बनी रहती है.
खेत की उर्वरता बढ़ाने में बैल आधारित खेती सबसे प्रभावी
आधुनिक खेती में उर्वरक की लगातार जरूरत बढ़ती जा रही है, क्योंकि मिट्टी की प्राकृतिक क्षमता धीरे-धीरे कम होती जा रही है. बैल आधारित खेती की सबसे बड़ी खासियत यह है कि बैल मिट्टी को प्राकृतिक रूप से उपजाऊ बनाए रखते हैं. उनके गोबर से खेत में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और जैविक पदार्थ बढ़ते हैं, जो मिट्टी की उर्वरता को संभालते हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बैल की खेती में तैयार होने वाली फसल की गुणवत्ता अधिक रहती है और फसल की पैदावार स्थिर बनी रहती है. यह तरीका खेत को लंबे समय तक पोषित रखता है और लागत भी काफी कम होती है.
प्राकृतिक खेती में बैल का योगदान
मशीनों के उपयोग से मिट्टी पर लगातार दबाव पड़ता है, जिससे खेत की संरचना कमजोर होती है. कई विशेषज्ञों का मानना है कि बैल से की गई जुताई मिट्टी की संरचना को नुकसान नहीं पहुंचाती. मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीव, केंचुए और प्राकृतिक तत्व सुरक्षित रहते हैं, जो फसल उत्पादन में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. इसके अलावा, बैल आधारित खेती में कीटनाशकों तथा रसायनों पर निर्भरता कम होती है, जिससे फसल स्वच्छ व प्राकृतिक रहती है. यही वजह है कि जैविक खेती करने वाले किसान आज भी बैल पर भरोसा करते हैं.
बढ़ती लागत के समय में बैल की खेती बन सकती है किसानों की बचत का तरीका
आज डीजल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं और मशीनों का खर्च भी कई किसानों के बजट से बाहर होता जा रहा है. ऐसे में बैल आधारित खेती किसानों के लिए एक सस्ता और टिकाऊ विकल्प बन सकती है. बैल से जुताई का खर्च मशीनों की तुलना में काफी कम होता है और खेतों में बार-बार सुधार करने की जरूरत भी नहीं पड़ती. इसके अलावा बैल रखने से किसानों को दूध, गोबर खाद और अन्य लाभ भी मिलते हैं, जो खेती को और मजबूत बनाते हैं. मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि जो किसान बैल आधारित खेती का प्रयोग कर रहे हैं, वे न सिर्फ खेत की उर्वरता बचा रहे हैं बल्कि कम लागत में बेहतर पैदावार भी प्राप्त कर रहे हैं.