गोबर से गमले बनाकर मशहूर हुए मिलन ज्योति, बिना खर्च वाली प्रेस मशीन से हर दिन बना-बेच रहे 150 गमले
मिलन ज्योति दास कहते हैं कि उन्होंने सबसे पहले मैनुअल स्क्रू टाइप प्रेस मशीन तैयार की. यह मशीन प्राकृतिक बाइंडिंग के साथ गोबर मिक्स्चर को गमलों में बदल देती है. इससे शून्य कचरा और कम लागत वाला विकल्प मिलता है. यह नवाचार गोबर नर्सरी टब बनाने के प्रोटोटाइप पर केंद्रित है.
पौधों को लगाने के लिए आपने अकसर घरों और नर्सरी में प्लास्टिक के गमलों का इस्तेमाल होते देखा होगा. लेकिन, असम के किसान मिलन ज्योति ने गोबर कचरे से गमले बनाकर इलाके में अपनी अलग पहचान बनाई है और कमाई भी बढ़ाकर अपनी आर्थिक स्थिति को भी बेहतर किया है. उन्होंने कहा कि गोबर से वह गमले बनाकर प्लास्टिक यूज खत्म कर रहे और पर्यावरण को होने वाले नुकसान से बचा रहे हैं. उनके इस प्रयास को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने भी सराहा और सम्मानित किया है. आज की चैंपियन किसान सीरीज (Champion Kisan Series Kisan India) का हिस्सा बने हैं मिलन ज्योति दास.
असम में कामरूप जिले के सोनेस्वर गांव के रहने वाले मिलन ज्योति दास कहते हैं कि पारंपरिक प्लास्टिक के गमलों की शेल्फ लाइफ कम होती है और पर्यावरण प्रदूषण को भी बढ़ाते हैं. ऐसे में नर्सरी में प्लास्टिक यूज की बजाय पर्यावरण अनुकूल विकल्पों की मांग बढ़ गई है. इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने गोबर से गमले बनाने का आइडिया आया और गमले बनाने के लिए उन्होंने सबसे पहले प्रेस मशीन को विकसित किया.
मिलन ज्योति दास कहते हैं कि उन्होंने सबसे पहले मैनुअल स्क्रू टाइप प्रेस मशीन तैयार की. यह मशीन प्राकृतिक बाइंडिंग के साथ गोबर मिक्स्चर को गमलों में बदल देती है. इससे शून्य कचरा और कम लागत वाला विकल्प मिलता है. यह नवाचार गोबर नर्सरी टब बनाने के प्रोटोटाइप पर केंद्रित है.
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1500 रुपये में तैयार हो जाती है प्रेस मशीन
यह प्रोटोटाइप एक मैनुअल स्क्रू टाइप प्रेस है, जो बिना किसी खर्च के चलती है. इसमें भूसी और पेपर पल्प जैसे बाइंडिंग तत्वों के साथ मिलाए गए गाय के गोबर के मिश्रण से गमले बनाने के लिए डिजाइन किया गया है. इस मैनुअल मशीन से हर दिन 50 से 150 गमले बनाए जा सकते हैं. यह मशीन बिना किसी बिजली की आवश्यकता के पूरी तरह से मैन्युअल रूप से चलती है. इसका फ्रेम टिकाऊ बनाने के लिए जंग रोधी कोटिंग के साथ माइल्ड स्टील से बनाया गया है. इस प्रेस मशीन को बनाने की लागत लगभग 1500 रुपये है.
गाय के गोबर मिश्रण से गमला बनाने वाली मशीन.
20 रुपये में बिक जाता है गमला, कमाई बढ़ी
गमला बनाने की प्रक्रिया में सबसे पहले गोबर के मिक्सचर को हाथ से मशीन में डालना होता है. इसके बाद हाइड्रोलिक प्रेसिंग से गमला तैयार किया जाता है और फिर गमलों को पूरी तरह से सुखाने के लिए 1 से 2 दिनों तक हवा या धूप में रखा जाता है. यह गमले आसानी से 3 महीने तक चलते हैं. वहीं, गाय के गोबर से बनने वाले नर्सरी टब या गमले को 20 रुपये प्रति पीस की दर से बेचा जा सकता है. वह मशीन के साथ ही खुद भी गमले बनाकर बेचते हैं और इससे उनकी आमदनी बढ़ी है.
इस गमले में तेजी से बढ़ते हैं पौधे
यह टब कृषि अपशिष्ट और गाय के गोबर से बनाया गया है, जिससे यह एक बायोडिग्रेडेबल और पर्यावरण अनुकूल प्रोडक्ट बनता है. यह कचरे को एक मूल्यवान संसाधन में बदलकर कृषि अवशेषों के इस्तेमाल को बढ़ावा देता है. इसके अतिरिक्त, प्लास्टिक नर्सरी बैग की बजाय यह बायोडिग्रेडेबल टब पौधों में रोपाई के तनाव को कम करता है. इसे सीधे मिट्टी में लगाया जा सकता है, यह जड़ों की गड़बड़ी और क्षति को कम करता है, जिससे एक सुचारू और स्वस्थ रोपाई पक्की होती है.