एक आंख गंवाने के बाद भी कैसे एक कारपेंटर ने ऑर्गेनिक फार्मिंग में हासिल की सफलता 

पेशे से एक कारपेंटर उदयकुमार अलाप्पुझा में हरिपद के पास महादेविकाडु के रहने वाले हैं. वर्कप्‍लेस पर एक एक्‍सीडेंट की वजह से उनकी दाहिनी आंख की रोशनी चली गई थी. लेकिन उदयकुमार इससे जरा भी दुखी नहीं हुए.

Kisan India
Noida | Published: 9 Mar, 2025 | 01:47 PM

अक्‍सर यह होता है कि अगर हम किसी कमी से गुजर रहे होते हैं तो अपने सपनों को किनारे रख देते हैं. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शख्‍स की कहानी सुनाने जा रहे हैं जिसने एक आंख गंवाने के बाद भी सफलता की ऊंचाई को छुआ है. 15 साल पहले एक एक्‍सीडेंट अपनी एक आंख गंवा देने वाले अलाप्‍पुझा के उदयकुमार केपी आज एक सफल किसान बन गए हैं. आज उनकी सफलता बाकी किसानों को भी प्रभावित कर रहे हैं. उन्‍होंने अपने साथ हुए हादसे को रुकावट नहीं बनने दिया बल्कि उसे सफलता की सीढ़ी बनाकर आज वह बाकी लोगों के लिए प्रेरणा बन गए हैं. 

ऑर्गेनिक खेती में सफलता

पेशे से एक कारपेंटर उदयकुमार अलाप्पुझा में हरिपद के पास महादेविकाडु के रहने वाले हैं. वर्कप्‍लेस पर एक एक्‍सीडेंट की वजह से उनकी दाहिनी आंख की रोशनी चली गई थी. लेकिन इस झटके से परेशान और दुखी हुए बिना उदयकुमार ने अपना ध्यान कृषि पर केंद्रित किया. यहां से उन्‍हें जमकर सफलता मिलनी हुई. आज उदयकुमार एक सफल ऑर्गेनिक खेती करने वाले सफल किसान हैं.  वह 2.5 एकड़ में कई तरह की सब्जियां, फल और फूल उगाते हैं. वह दो एकड़ में फैले एक एक्‍वाकल्‍चर फार्म भी चलाते हैं. साथ ही वह अब एक इको-शॉप भी चलाते हैं. उदयकुमार को अपने खेती के बिजनेस से हर महीने एक लाख रुपये की औसतन इनकम होती है. 

एक पल को लगा सब खत्‍म 

58 साल के उदयकुमार ने बताया, ‘एक बढ़ई के तौर पर मेरा करियर अचानक खत्म हो गया, जब लकड़ी के प्लानर पर काम करते समय लकड़ी का एक टुकड़ा मेरी दाहिनी आंख पर लगा. इससे मेरी रोशनी चली गई और मेरी जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई. फिर मैंने अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने का फैसला किया और खेती में हाथ आजमाया. शुरुआती मुश्किल सालों के बाद, मुझे सफलता मिलनी शुरू हुई. खेती ने मुझे जीवन में आने वाली बाधाओं से उबरने में मदद की है.’

केमिकल फ्री सब्जियां और फल  

उदय कुमार के खेत में केमिकल फ्री सब्जियां और फल पैदा होते हैं. इनमें पालक, बैंगन, हरी मिर्च, टमाटर, करेला, चिचिंडा, खीरा, मूंगफली जैसी फसलें शामिल हैं. उनका खेत पानी से घिरा हुआ है, इसलिए वह किनारे पर चिचिंडा और करेले के पौधे लगाकर और उन्हें जलभराव वाले क्षेत्र में एक जाली पर उगाकर जगह का बेहतर उपयोग भी करते हैं. मूंगफली को मछली फार्म के ऊपर बने फुटब्रिज पर रखे ग्रो बैग में उगाया जाता है.

वर्तमान समय में उनके खेत में पीक अवधि के दौरान रोजाना 50 किलोग्राम से ज्‍यादा सब्जियां पैदा होती हैं. इसके अलावा, वह हर महीने आठ अलग-अलग सब्जियों के करीब 30,000 पौधे तैयार करते हैं. इन पौधों को उदयकुमार अपनी इको-शॉप के जरिये से बेचते हैं. इसके साथ ही साथ ‘कट्टुरुम्बु’ ब्रांड नाम से जैविक खाद भी बनाते हैं. इसे वह 10 रुपये प्रति किलोग्राम पर बेचते हैं. उदयकुमार के अनुसार कुछ साल पहले उनके बेटे को मस्कुलर डिस्ट्रॉफी होने का पता चलने के बाद उन्होंने पूरी तरह से ऑर्गेनिक फार्मिंग को अपना लिया.

केमिकल फ्री फूड का सपना  

उनकी मानें तो वह अब अपने बेटे के अलावा बाकी लोगों को भी केमिकल फ्री फूड उपलब्ध कराना चाहते हैं.  उन्होंने पिछले कुछ सालों में कई पुरस्कार जीते हैं, जिसमें कुछ साल पहले कृषि विभाग द्वारा सब्‍जी किसानों के लिए शुरू किया गया पुरस्कार भी शामिल है.  उदयकुमार की सफलता साबित करती है कि दृढ़ संकल्प असफलताओं को सफलता की कहानियों में बदल सकता है. 

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Published: 9 Mar, 2025 | 01:47 PM

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