कृत्रिम बारिश का दिल्ली में पहला ट्रायल 30 अगस्त से, जानिए कैसे होती है क्लाउड सीडिंग

कृत्रिम बारिश के लिए सबसे पहली और जरूरी शर्त होती है बादलों का मौजूद होना. अगर आसमान में बादल ही नहीं हैं, तो चाहे कितनी भी तकनीक लगा ली जाए, बारिश नहीं कराई जा सकती. इसके अलावा, बादलों में पर्याप्त नमी होना भी बेहद जरूरी है.

नई दिल्ली | Updated On: 2 Jul, 2025 | 10:35 AM

इन दिनों दिल्लीवालों की चर्चा का केंद्र बनी है “कृत्रिम बारिश” यानी आर्टिफिशियल रेन. हाल ही में दिल्ली सरकार ने यह सुझाव भी दिया कि कम बारिश होने और प्रदूषण को कम करने के लिए कृत्रिम बारिश करवाई जा सकती है. ऐसे में सरकार ने अब 30 अगस्त से 10 सितंबर के बीच पहली कृत्रिम बारिश करवाले का फैसला लिया है. तो चलिए, जानते हैं कि आखिर यह कृत्रिम बारिश क्या होती है, कैसे होती है और इसके क्या फायदे हैं…

क्या है कृत्रिम बारिश?

कृत्रिम बारिश यानी इंसानी दखल से बादलों से जबरन बारिश करवाई जाती है. इसे वैज्ञानिक भाषा में क्लाउड सीडिंग (Cloud Seeding) कहा जाता है. इसमें ऐसे रसायन छोड़े जाते हैं जो बादलों में जाकर बर्फ के कण या पानी की बूंदों का निर्माण करते हैं, जिससे बारिश होती है.

कैसे होती है क्लाउड सीडिंग?

क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया में कुछ खास रसायनों का उपयोग किया जाता है, जो बादलों को बारिश के लिए प्रेरित करते हैं. इसमें मुख्य रूप से सिल्वर आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड (यानी आम नमक) और सूखी बर्फ (ठोस कार्बन डाइऑक्साइड) जैसे तत्व शामिल होते हैं.

इन रसायनों को या तो हवाई जहाज से उड़कर सीधे बादलों में छोड़ा जाता है, या फिर जमीन से रॉकेट या तोप के जरिए ऊपर भेजा जाता है. जब ये कण बादलों के संपर्क में आते हैं, तो वहां मौजूद नमी से जुड़कर बारिश की बूंदों का निर्माण करते हैं, जो धीरे-धीरे भारी होकर जमीन पर गिरने लगती हैं. यही प्रक्रिया कृत्रिम बारिश का आधार बनती है.

कृत्रिम बारिश के लिए जरूरी शर्तें

कृत्रिम बारिश के लिए सबसे पहली और जरूरी शर्त होती है बादलों का मौजूद होना. अगर आसमान में बादल ही नहीं हैं, तो चाहे कितनी भी तकनीक लगा ली जाए, बारिश नहीं कराई जा सकती. इसके अलावा, बादलों में पर्याप्त नमी होना भी बेहद जरूरी है. अगर बादल सूखे या कमजोर हैं, तो क्लाउड सीडिंग का कोई असर नहीं होता.

साथ ही, तेज हवाएं और बादलों की ऊंचाई भी इस प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं. ज्यादा ऊंचाई पर मौजूद और बिखरे बादलों पर सीडिंग करना मुश्किल होता है और उसका असर कम हो सकता है. इसलिए मौसम वैज्ञानिकों को पहले इन सभी स्थितियों का गहराई से अध्ययन करना होता है, तभी कृत्रिम बारिश की योजना बनाई जाती है.

कहां-कहां हो चुकी है कृत्रिम बारिश?

  • चीन: ओलंपिक 2008 से पहले प्रदूषण कम करने और मौसम सुधारने के लिए बड़े पैमाने पर क्लाउड सीडिंग की गई थी.
  • यूएई (दुबई): पानी की भारी कमी को दूर करने के लिए कई बार कृत्रिम बारिश करवाई गई.
  • भारत: महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और राजस्थान जैसे राज्यों में सूखा पड़ने पर कृत्रिम बारिश की कोशिशें हो चुकी हैं.

 

कृत्रिम बारिश के फायदे-

सूखे की स्थिति में फसलें बचाई जा सकती हैं

देश के कई हिस्सों में हर साल मानसून की विफलता या देरी से सूखे जैसे हालात बनते हैं. खासकर महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान जैसे राज्यों में खेती पूरी तरह बारिश पर निर्भर है. ऐसे में कृत्रिम बारिश के जरिए फसलों को समय पर पानी मिल सकता है और किसान बड़ी हानि से बच सकते हैं. यह तकनीक खेतों में नमी बनाए रखती है, जिससे फसलों की वृद्धि में सुधार आता है.

प्रदूषण को कम करने में मदद मिलती है

दिल्ली, लखनऊ, पटना जैसे शहरों में सर्दी के मौसम में वायु प्रदूषण बेहद खतरनाक स्तर तक पहुंच जाता है. ऐसे में अगर पर्याप्त बादल हों, तो कृत्रिम बारिश के जरिए धूल, धुएं और जहरीले कणों को वातावरण से नीचे गिराया जा सकता है. इससे वायु की गुणवत्ता बेहतर होती है और लोगों को सांस संबंधी बीमारियों से राहत मिलती है.

पानी की कमी वाले इलाकों को राहत मिलती है

भारत के कई क्षेत्रों में भूमिगत जलस्तर गिरता जा रहा है और प्राकृतिक स्रोत सूखते जा रहे हैं. ऐसे में कृत्रिम बारिश के माध्यम से जलाशयों, तालाबों और बांधों को फिर से भरा जा सकता है. इससे न सिर्फ पीने के पानी की समस्या दूर होती है, बल्कि सिंचाई और पशुओं के लिए भी पानी उपलब्ध हो पाता है.

कृत्रिम बारिश के नुकसान या सीमाएं-

बेहद महंगी प्रक्रिया

क्लाउड सीडिंग में इस्तेमाल होने वाली तकनीक, रसायन और विमानों की लागत बहुत अधिक होती है. एक बार की प्रक्रिया पर ही सरकार या संस्था को लाखों रुपये खर्च करने पड़ते हैं. यह लागत सामान्य बारिश के मुकाबले कहीं ज्यादा होती है, इसलिए हर जगह या बार-बार इसका इस्तेमाल करना व्यावहारिक नहीं है.

सफलता की कोई गारंटी नहीं होती

कृत्रिम बारिश की योजना बनाने से पहले मौसम, हवा, नमी और बादलों की स्थिति जैसी कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है. फिर भी, 100 फीसदी बारिश होगी या नहीं, इसका कोई निश्चित भरोसा नहीं होता. कई बार सीडिंग के बावजूद बारिश नहीं होती, जिससे समय और पैसा दोनों बर्बाद हो सकता है.

पर्यावरणीय प्रभाव भी संभव

इस प्रक्रिया में सिल्वर आयोडाइड, नमक और अन्य रसायनों का प्रयोग होता है. लंबे समय तक इनका इस्तेमाल मिट्टी और जल स्रोतों में रासायनिक अवशेष छोड़ सकता है, जो फसलों, जीव-जंतुओं और इंसानों पर नकारात्मक असर डाल सकते हैं. अभी तक इसके पर्यावरणीय प्रभावों पर व्यापक शोध चल रहा है.

क्या दिल्ली में हो सकती है कृत्रिम बारिश?

अगर बादल पर्याप्त मात्रा में मौजूद हैं और मौसम वैज्ञानिकों को अनुकूल हालात मिलते हैं, तो दिल्ली जैसे क्षेत्र में भी कृत्रिम बारिश संभव है. इससे वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है और लोगों को गर्मी से राहत भी मिल सकती है. दिल्ली सरकार ने 2023 में भी ऐसी योजना बनाई थी, लेकिन तकनीकी व कानूनी कारणों से वह पूरी नहीं हो पाई.

Published: 2 Jul, 2025 | 10:32 AM