Green Fodder : किसानों के बीच एक सस्ती हरी घास काफी चर्चा में है. यह घास मकई की कटाई के बाद बचने वाले अवशेषों- पत्तियों और डंठलों- से मिलती है और इसे पशु चारे के रूप में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जा रहा है. स्थानीय डेयरी और पशु पालन रिपोर्टों ने बताया है कि यह घास सिर्फ 1 रुपये प्रति किलो की कम कीमत पर उपलब्ध होती है और इसके खाने के बाद गाय-भैंसों का दूध उत्पादन अगले दिन ही बढ़ने लगा है.
खबर क्या कहती है: दूध उत्पादन में तेज उछाल
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, नियमित चारे के साथ इस घास को देने पर कई किसानों ने दूध उत्पादन में तत्काल बढ़ोतरी दर्ज की है. जिन पशुओं को यह घास खिलाई गई, उनमें दूध की मात्रा दोगुनी तक बढ़ने के मामले सामने आए. रिपोर्ट करने वाले कृषि संवाददाताओं ने इसे डेयरी किसानों के लिए एक गेम-चेंजर बताया है.
पोषण का विश्लेषण: क्या है खास बात?
रिपोर्ट में इस घास के पोषण तत्वों का हवाला दिया गया है- पोटैशियम, विटामिन B1, ओमेगा फैटी एसिड तथा घुलनशील और अघुलनशील कार्बोहाइड्रेट. विशेषज्ञों के निष्कर्षों को उद्धृत करते हुए रिपोर्ट बताती है कि ये पोषक तत्व पशु की मांसपेशियों को मजबूत करते हैं, रक्त कोशिकाओं के निर्माण में मदद करते हैं और ऊर्जा स्तर बढ़ाते हैं, जिससे दूध बनाने की क्षमता बढ़ती है. इस तरह के पोषण प्रोफ़ाइल के कारण ही मीडिया रिपोर्टों ने इसे घास नहीं, पोषण का खजाना बताया है.
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किफायती चारा
कई रिपोर्टों ने कीमत पर खास जोर दिया है. मकई खेतों से मिलने वाले अवशेषों को एकत्र कर स्थानीय सप्लाई चैन के जरिए यह चारा बहुत सस्ते भाव पर उपलब्ध हो रहा है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 1 रुपये प्रति किलो की कीमत छोटे और मध्यम किसानों के बजट के अनुकूल है, जिससे अधिक किसानों तक इसकी पहुंच संभव हो रही है. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कम लागत में अधिक दूध- यही किसान हितैषी सूत्र बन रहा है.
सर्दियों में लाभ: गर्माहट और रोग-प्रतिरोधक बढ़ता है
सर्दी के मौसम में इस घास के फायदे पर भी रिपोर्ट्स मिलीं. कई रिपोर्टों में बताया गया कि ठंड के दिनों में पशुओं को यह घास देने से उनका शारीरिक ताप नियंत्रित रहता है और दूध में गिरावट कम देखी गई है. स्थानीय पशु स्वास्थ्य रिपोर्टों के हवाले से प्रकाशित खबरों में यह भी अंकित था कि इससे पशुओं की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है और बीमारियां घटती हैं.
किसानों पर असर: कमाई और सेहत दोनों पर असर
मीडिया रिपोर्टों के ढेर सारे केस-स्टडी और किसानों के अनुभवों का संकलन बताते हैं कि चारे की लागत घटने और दूध उत्पादन बढ़ने से किसानों की आय बढ़ी है. रिपोर्टेड साक्ष्यों में यह दर्शाया गया कि जहां पहले समान संसाधन से मध्यम उत्पादन हो रहा था, वहीं अब उत्पादन बढ़ने से डेयरी व्यवसाय की आय में सुधार हुआ है. समाचार लेखों ने जोर देकर कहा है कि यह चारा छोटे किसानों के लिए विशेष रूप से लाभकारी साबित हो रहा है.