सेब बागवानों की बर्बादी की दास्तान..ओलों ने खेतों को नहीं उम्मीदों को उजाड़ा

उत्तरकाशी में तेज बारिश और ओलावृष्टि ने किसानों की कमर तोड़ दी है. किसान को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

मोहित शुक्ला
नोएडा | Updated On: 11 Apr, 2025 | 10:47 AM

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में जब बुधवार शाम आसमान काला हुआ तो लोग समझे मौसम करवट ले रहा है. लेकिन थोड़ी ही देर में जो गिरा, वो बारिश नहीं थी, वो किसान की छाती पर गिरा हुआ दर्द था. तेज हवाएं आईं, फिर ओलों की बरसात हुई और उसके बाद जो मंज़र सामने आया, उसे देखकर टुंडा तहसील के मंजगांव में रहने वाले किसान रामचंद्र नौटियाल की आंखों में आंसू थे. कहते हैं कि इस बार फूल बहुत अच्छा आया था बेटा, पेड़ लदे पड़े थे, लेकिन ये ओले सब कुछ उजाड़ गए.

ओले गिरने से सेब के फूल झर गए 

किसान रामचंद्र नौटियाल कहते हैं कि ये फूल, मतलब सेब के पौधों पर आई फ्लावरिंग, यही वो कच्चा स्टेज होता है, जहां से फल बनने शुरू होते हैं. अगर उस वक्त ओले गिर जाएं तो फूल टूटते हैं, फल बनने से पहले ही फसल खत्म हो जाती है.

हेल नेट भी नहीं दे पाई राहत

अब किसान ने हेलनेट लगाई थी, ओलों से बचाने के लिए. लेकिन जनाब, जब कुदरत रूठती है तो जाल भी क्या बचा पाएगा? नेट फट गए, फूल झड़ने लगे और किसानों की चिंता आसमान छू गई. जिले में 1172 हेक्टेयर में सेब की बागवानी होती है. इस हिसाब से नुकसान लाखों में नुकसान हुआ. इस पर प्रगतिशील किसान कहना है कि अगर अप्रैल का पहला हफ्ता भी इसी तरह बारिश और ठंड के हवाले रहा, तो इस बार सेब का उत्पादन बहुत नीचे जा सकता है. ये ओले सिर्फ़ बर्फ नहीं थे, ये तो किसानों की सालभर की मेहनत पर पड़ी चोटें थीं.

बीमा है पर किसानों के लिए नहीं

अब सुनिए असल चोट तो यहां लगी है. किसानों का कहना है कि उत्तराखंड में 16 अप्रैल से 15 जून तक की अवधि को ही बीमा कवरेज में शामिल किया गया है. यानी अगर इससे पहले ओले पड़ें, बारिश हो या फसल उजड़ जाए तो बीमा कंपनी बोलेगी, हम ज़िम्मेदार नहीं. जलवायु बदल रही है, मौसम का कोई भरोसा नहीं, लेकिन बीमा कंपनियों की तारीखें नहीं बदलती, किसानों की ये शिकायत अब तेज होती जार ही है. मांग उठ रही है कि बीमा नियमों में बदलाव हो ताकि असली जरूरत के वक्त किसानों को सहारा मिल सके.

अब सवाल ये कि क्या सरकार कुछ करेगी?

तो जवाब है सर्वे कराया जाएगा… हां, भविष्य में. दरअसल इसपर जिला उद्यान अधिकारी डॉ. दिवांकर तिवारी ने कहा है कि अभी नुकसान का आंकलन नहीं हुआ है, जल्द ही सर्वे किया जाएगा.

और किसानों को सलाह दी गई है कि बाग में पानी जमा न होने दें, नहीं तो जड़ें सड़ जाएंगी और अगर बीमारी का अंदेशा हो, तो फफूंदनाशक का छिड़काव कर दीजिए. अरे साहब! फफूंदनाशक तो छिड़क देंगे, लेकिन जो नुकसान हो गया उसका क्या?

इससे ये तो बात साफ है सेब सिर्फ फल नहीं होता ये किसान की सालभर की तपस्या है और जब ओले गिरते हैं, तो वो पेड़ से फूल नहीं गिराते वो किसान की उम्मीदों को तोड़ते हैं.  कुदरत से कोई नहीं लड़ सकता, लेकिन नीतियों से तो लड़ सकते हैं और शायद, ये लड़ाई अब किसान खुद ही लड़ेगा.

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Published: 11 Apr, 2025 | 10:38 AM

भारत में सबसे पहले सेब का उत्पादन किस राज्य में शुरू हुआ.

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