भारत में घोड़े अब सिर्फ रेसिंग ट्रैक या बारात की शान नहीं रह गए हैं. वक्त के साथ इनकी डिमांड और कामकाज के तरीके दोनों बदले हैं. अब ये फार्म टूरिज्म, शो राइडिंग, फिल्मों, परेड और बड़े-बड़े इवेंट्स का हिस्सा बन चुके हैं. यही वजह है कि अच्छी नस्ल के घोड़ों की कीमत लाखों रुपये तक पहुंच रही है और इनका पालन अब शौक नहीं, एक कमाई वाला कारोबार बनता जा रहा है.
परंपरा से अब प्रोफेशन की ओर बढ़ा घोड़ा पालन
देश में घोड़ों का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व रहा है. पहले जहां इनका इस्तेमाल सिर्फ सेना, पुलिस, और सीमावर्ती इलाकों में होता था, वहीं अब इनकी जगह फार्म टूरिज्म और शादी समारोहों में दिखने लगी है. राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र, जो कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत काम करता है, घोड़ों की सेहत और प्रजनन पर शोध करता है और इस क्षेत्र को नई दिशा दे रहा है.
फार्म टूरिज्म और शो राइडिंग ने खोला नया बाजार
देश के कई राज्यों में अब फार्म टूरिज्म के नाम पर लोग अपने फार्म हाउस पर घोड़ों की सवारी, राइडिंग शो और बच्चों के लिए राइडिंग ट्रेनिंग का आयोजन कर रहे हैं. दिल्ली, राजस्थान, पंजाब और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में फार्म हाउस बिजनेस में घोड़े एक आकर्षण बन गए हैं. इससे न सिर्फ इन फार्म्स की कमाई बढ़ी है, बल्कि घोड़ा पालन भी एक पेशेवर व्यवसाय की शक्ल ले रहा है.
नस्ल पर भी दिख रहा है असर
जैसे-जैसे डिमांड बढ़ी है, वैसे-वैसे अच्छी नस्ल के घोड़ों की मांग भी आसमान छूने लगी है. मारवाड़ी, काठियावाड़ी, स्पीति, जांसकारी और मणिपुरी घोड़े अब सिर्फ प्रजनन के लिए ही नहीं, बल्कि शो राइडिंग और पर्यटन के लिए भी तैयार किए जा रहे हैं. इन घोड़ों की कीमत आमतौर पर 1 लाख रुपये से शुरू होती है. लेकिन नस्ल, ट्रेनिंग और रंग-रूप जैसी खूबियों के आधार पर यह कीमत 8 से 10 लाख रुपये तक भी पहुंच जाती है.
खास बात यह है कि अब विदेशी खरीदार भी भारत की इन पारंपरिक नस्लों में दिलचस्पी लेने लगे हैं, जिससे इस क्षेत्र में नया बाजार बनता दिखाई दे रहा है.
ग्रामीण आजीविका से लेकर ग्लैमरस बाजार तक
राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केन्द्र के मुताबिक, भारत में करीब 1.17 मिलियन घोड़े हैं. इनमें से ज्यादातर खच्चर, टट्टू और गधे जैसे श्रमशील जानवर हैं जो पहाड़ी और ग्रामीण इलाकों में ढुलाई और परिवहन के काम आते हैं. लेकिन अब शादियों, रेसिंग, फिल्मों और फैशन इवेंट्स ने घोड़ों को एक नया ग्लैमरस चेहरा दिया है. यही वजह है कि घोड़ा पालन अब ग्रामीण आजीविका का सीमित साधन नहीं, बल्कि शहरों में स्टेटस और कमाई दोनों का जरिया बन गया है.