बकरी, मुर्गी और मछली पालन से किसान कमा सकते हैं तीन गुना मुनाफा, जानिए आसान तरीका

सहारनपुर कृषि विज्ञान केंद्र का 3-लेयर IFS मॉडल किसानों के लिए लाभकारी साबित हो रहा है. बकरी, मुर्गी और मछली पालन के जरिए कम जमीन में ज्यादा मुनाफा, रोजगार और आत्मनिर्भरता संभव हो रही है.

Kisan India
नोएडा | Updated On: 9 Oct, 2025 | 01:52 PM

कभी सोचा है कि सिर्फ 6 बीघा जमीन में किसान तीन अलग-अलग काम करके तीन गुना मुनाफा कमा सकते हैं? यह अब सच हो गया है. उत्तर प्रदेश के सहारनपुर कृषि विज्ञान केंद्र ने किसानों के लिए IFS यानी इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम तैयार किया है.

इस मॉडल में बकरी, मुर्गी और मछली पालन को एक साथ किया जाता है. यहां हर घटक दूसरे घटक के लिए संसाधन का काम करता है, यानी कोई भी चीज बर्बाद नहीं होती. सरकार अब इसे हर जिले में लागू करने की योजना बना रही है ताकि किसान कम जमीन में भी अधिक आय अर्जित कर सकें.

बकरी पालन-ऊपरी लेयर में ज्यादा लाभ

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, IFS मॉडल की सबसे ऊपरी परत में बकरी पालन  किया जाता है. बकरियां केवल दूध और मीट का स्रोत नहीं हैं, बल्कि उनका गोबर नीचे की लेयर के लिए प्राकृतिक खाद का काम करता है. सहारनपुर के ग्राम मांझीपुर में इस मॉडल में 6 बीघा खेत के ऊपरी हिस्से में बकरी पालन किया गया है. किसान को कुछ बकरियां रखने से नियमित दूध और मीट की आमदनी होती है. गोबर का उपयोग मुर्गियों के लिए चारे के रूप में किया जाता है, जिससे खर्च कम होता है. कम जगह में उच्च मुनाफा देने वाला यह तरीका किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है.

मुर्गी पालन-बीच की लेयर में रोजाना आमदनी

IFS मॉडल की दूसरी लेयर में मुर्गी पालन  किया जाता है. यहां लगभग 200 मुर्गियों का पालन होता है. मुर्गियों का वेस्ट मटेरियल नीचे की मछलियों के लिए पोषण का काम करता है. इस व्यवस्था से किसान को अंडे और मांस से नियमित आमदनी होती है. IFS मॉडल में फीड की लागत बहुत कम होती है क्योंकि बकरी का वेस्ट मुर्गियों के लिए चारा बनता है. इस तरह किसान को कम खर्च में अधिक लाभ मिलता है और हर महीने स्थिर आमदनी होती रहती है.

मछली पालन-निचली लेयर में 100 फीसदी बचत और मुनाफा

IFS मॉडल की सबसे निचली लेयर में मछली पालन  किया जाता है. यहां तालाब में मछली बीज छोड़े जाते हैं. मुर्गियों का वेस्ट सीधे तालाब में गिरता है, जिससे मछलियों को पूरा पोषण मिलता है और फीड पर खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती. इससे किसानों की लागत लगभग शून्य हो जाती है और मछली पालन से 100 फीसदी लाभ मिलता है. मछलियां 6-8 महीने में बाजार के लिए तैयार हो जाती हैं, जिससे किसान को सालभर कमाई का स्थायी साधन मिलता है.

लागत कम, मुनाफा अधिक-किसानों के लिए फायदे

IFS मॉडल  में सबसे बड़ी खासियत यह है कि लागत बहुत कम और मुनाफा ज्यादा है. बकरी, मुर्गी और मछली के आपस में जुड़े हुए सिस्टम के कारण फीड और चारे पर खर्च कम होता है. सहारनपुर कृषि विज्ञान केंद्र के अनुसार, इस मॉडल को अपनाने वाले किसानों की आय पारंपरिक खेती से तीन गुना तक बढ़ गई है. IFS मॉडल छोटे खेतों के लिए भी उपयुक्त है यानी किसान कम जमीन में भी अधिक आय अर्जित कर सकते हैं.

सरकार की योजना- हर जिले में मॉडल विलेज

न्यूज 18 के रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश सरकार ने मॉडल विलेज स्कीम के तहत हर जिले में IFS मॉडल लागू करने की योजना बनाई है. सहारनपुर इसका पहला उदाहरण बन चुका है. सरकार की ओर से किसानों को वित्तीय सहायता, प्रशिक्षण और तकनीकी मार्गदर्शन दिया जा रहा है. इस योजना का मकसद है कि किसान सिर्फ फसलों पर निर्भर न रहें, बल्कि पशुपालन, मछली पालन और बागवानी से अपनी आय बढ़ाएं.

ग्रामीण रोजगार और आत्मनिर्भरता का नया तरीका

IFS मॉडल ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था  में नई उम्मीद जगाई है. कई किसानों ने इसे अपनाया और अब वे दूसरों को भी रोजगार दे रहे हैं. महिलाओं के लिए भी यह मॉडल फायदेमंद है क्योंकि छोटे स्तर पर मुर्गी पालन और बकरी पालन से घर की आमदनी बढ़ती है. IFS मॉडल सिर्फ आमदनी बढ़ाने का तरीका नहीं, बल्कि गांवों में रोजगार और आत्मनिर्भरता का नया स्रोत बन गया है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, अगर यह मॉडल बड़े पैमाने पर अपनाया जाए तो किसान तीन से चार गुना अधिक मुनाफा कमा सकते हैं.

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Published: 9 Oct, 2025 | 01:52 PM

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