Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश में खेती धीरे-धीरे एक नई दिशा पकड़ रही है. यहां के किसान अब रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर निर्भर रहने की बजाय प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं. इस बदलाव ने न सिर्फ किसानों की आमदनी बढ़ाई है बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी मजबूती दी है. सरकार की ओर से मिल रहा सहयोग और प्रशिक्षण इस परिवर्तन को और रफ्तार दे रहा है.
लाखों किसान जुड़ रहे हैं प्राकृतिक खेती से
हिमाचल प्रदेश के अलग-अलग जिलों के 2.22 लाख से ज्यादा किसान प्राकृतिक खेती अपना चुके हैं. यह किसान करीब 38 हजार हेक्टेयर भूमि पर बिना रसायन वाली खेती कर रहे हैं. इससे न सिर्फ उन्हें स्वस्थ उपज मिल रही है बल्कि लागत भी काफी कम हो गई है.
किसानों को मिल रहा प्रशिक्षण
राज्य सरकार अब तक 3 लाख से ज्यादा किसानों और बागवानों को प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग दे चुकी है. किसानों को बीज की तैयारी, जैविक खाद बनाने और खेत की मिट्टी को उर्वर बनाए रखने के तरीके सिखाए जा रहे हैं. सरकार का लक्ष्य है कि साल 2025-26 तक एक लाख नए किसानों को इस पहल से जोड़ा जाए.
पंजीकरण कराने में किसानों की बढ़ी रुचि
अब तक 59 हजार से ज्यादा किसान और बागवान कृषि विभाग के साथ रजिस्ट्रेशन करा चुके हैं. यह रजिस्ट्रेशन किसानों को योजनाओं का सीधा लाभ दिलाने में मदद करता है. सरकार चाहती है कि हर किसान इस योजना का हिस्सा बने ताकि प्राकृतिक खेती का दायरा और भी बढ़ सके.
किसानों के लिए सबसे ऊंचा MSP
हिमाचल प्रदेश सरकार प्राकृतिक खेती (Natural Farming) से उगाई गई फसलों पर देश में सबसे ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) दे रही है. उदाहरण के तौर पर मक्का का MSP 40 रुपये प्रति किलो, गेहूं का 60 रुपये, कच्ची हल्दी का 90 रुपये और पांगी क्षेत्र की जौ का 60 रुपये तय किया गया है. यह दाम किसानों को सीधा फायदा दे रहे हैं.
किसान-उत्पादक कंपनियां बन रही सहारा
किसानों को संगठित करने और उनकी उपज को बाजार दिलाने के लिए सरकार ने प्राकृतिक खेती आधारित टिकाऊ खाद्य प्रणाली की शुरुआत की है. इसके तहत किसान-उत्पादक कंपनियां (FPCs) बनाई जा रही हैं. अब तक 7 FPCs बनाई जा चुकी हैं, जिन्हें सरकार और नाबार्ड मिलकर 50-50 प्रतिशत फंडिंग दे रहे हैं.
हिम–भोग ब्रांड से बाजार में पहचान
प्राकृतिक खेती से उगाई गई फसलों को अब हिम-भोग नाम से बाजार में उतारा जा रहा है. इस ब्रांड के तहत ग्राहकों को यह भरोसा दिया जाता है कि उन्हें रसायन रहित, शुद्ध और पोषक अनाज, फल-सब्जियां और अन्य उत्पाद मिलेंगे. इससे किसानों के उत्पादों की बाजार में अलग पहचान बन रही है.
पारदर्शिता के लिए सर्टिफिकेशन सिस्टम
सरकार ने प्राकृतिक खेती को पारदर्शी और भरोसेमंद बनाने के लिए CETARA-NF नाम का सेल्फ-सर्टिफिकेशन सिस्टम शुरू किया है. इसके तहत लगभग 1.96 लाख किसानों को पहले ही सर्टिफिकेट मिल चुका है. यह व्यवस्था यह सुनिश्चित करती है कि ग्राहकों तक पहुंचने वाली उपज पूरी तरह प्राकृतिक खेती से ही आई हो.