सरसों की कटाई से पहले रखें ये सावधानियां, वरना घट सकती है उपज

कटाई के करीब आने पर सरसों के पौधे पूरी तरह परिपक्व हो जाते हैं, पर यही समय सबसे संवेदनशील भी होता है. थोड़ा-सा मौसम का बदलाव, अचानक आई बीमारी, या गलत सिंचाई फसल की गुणवत्ता बिगाड़ सकती है. कई किसान बताते हैं कि कटाई से ठीक पहले झुलसा, सफेद रतुआ या फफूंदी जैसी बीमारियां फसल को आधा कर देती हैं.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 4 Dec, 2025 | 10:53 AM

Farming Tips: सरसों की खेती भारत के अधिकांश किसान करते हैं, क्योंकि यह फसल कम पानी में भी अच्छा उत्पादन देती है. लेकिन जैसे-जैसे फसल कटाई के करीब आती है, वैसे-वैसे बीमारी, मौसम और प्रबंधन से जुड़ी चुनौतियां भी बढ़ जाती हैं. कटाई से ठीक पहले की गई छोटी-सी लापरवाही किसानों को बड़े नुकसान की ओर धकेल सकती है. इसलिए इस दौर में फसल की देखभाल बेहद जरूरी हो जाती है.

सरसों की कटाई से पहले फसल की खास निगरानी

कटाई के करीब आने पर सरसों के पौधे पूरी तरह परिपक्व हो जाते हैं, पर यही समय सबसे संवेदनशील भी होता है. थोड़ा-सा मौसम का बदलाव, अचानक आई बीमारी, या गलत सिंचाई फसल की गुणवत्ता बिगाड़ सकती है. कई किसान बताते हैं कि कटाई से ठीक पहले झुलसा, सफेद रतुआ या फफूंदी जैसी बीमारियां फसल को आधा कर देती हैं. इसलिए इस समय पौधों की पत्तियों, तनों और फली की स्थिति पर विशेष ध्यान देना चाहिए.

सफेद रतुआ: सरसों की फसल का सबसे बड़ा दुश्मन

सरसों में सफेद रतुआ बेहद आम बीमारी है, खासकर जब मौसम में नमी बढ़ जाती है. यह बीमारी पत्तियों के नीचे सफेद पाउडर जैसा दाग बनाकर उन्हें कमजोर कर देती है.

अगर इसे समय रहते नियंत्रित न किया जाए, तो फूल कमजोर पड़ जाते हैं और फलियां ठीक से नहीं बन पातीं. किसान हल्का सल्फर या मैन्कोजेब छिड़ककर इसके फैलाव को रोक सकते हैं. इसके अलावा संक्रमित पौधों को खेत से बाहर निकालना भी जरूरी है.

झुलसा रोग: फसल को समय से पहले सूखा सकता है

आल्टरनेरिया झुलसा सरसों की सबसे खतरनाक बीमारियों में से एक है. यह जैसे ही पत्तों पर भूरा दाग बनाकर फैलना शुरू करता है, पूरा पौधा कमजोर होने लगता है. कई बार किसान इसे सामान्य पीलापन समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन यह बड़ी गलती होती है.

मौसम विशेषज्ञों के मुताबिक, कटाई से 20–25 दिन पहले दवा का छिड़काव करने से बीमारी काफी हद तक नियंत्रित हो जाती है. खेत में गिरे पुराने पत्तों को साफ करना भी इस रोग को रोकने में मददगार है.

सफेद फफूंदी: तने और पत्तियां दोनों प्रभावित

जब सरसों के पौधों पर दूधिया सफेद परत जमने लगे, तो समझ लें कि सफेद फफूंदी का असर शुरू हो चुका है. यह बीमारी पौधे की बढ़त को रोक देती है और उत्पादन में भारी कमी आती है.

सल्फर आधारित दवाओं का हल्का छिड़काव या कैराथेन का प्रयोग करके किसान इस बीमारी से बचाव कर सकते हैं. संतुलित खाद और पौधों को समय पर पानी देने से भी रोग आने की संभावना कम हो जाती है.

जड़ गलन: खेत में पानी भरने से बढ़ती समस्या

अगर खेत में पानी रुक रहा है या नमी ज्यादा है, तो जड़ गलन की समस्या बड़े स्तर पर फैल सकती है. इस बीमारी में पौधों की जड़ें सड़ जाती हैं और पौधा अचानक पीला होकर सूखने लगता है. खेत में बेहतर जल निकासी और ट्राइकोडर्मा जैसे जैविक उपचार इस बीमारी से बचाव करने के सबसे अच्छे तरीके हैं.

बेहद जरूरी सावधानियां

सरसों की उपज को सुरक्षित रखने के लिए कटाई के 15–20 दिन पहले किसान कुछ जरूरी कदम उठा सकते हैं. खेत में खरपतवार न होने दें, क्योंकि ये बीमारियों के वाहक बनते हैं. केवल हल्की सिंचाई करें, ताकि पौधों पर अनावश्यक नमी न बढ़े. पौधों की लगातार निगरानी करें और यदि कहीं बीमारी दिखाई दे, तो तुरंत समाधान करें.

यह भी ध्यान रखें कि कटाई हमेशा सुबह या शाम के समय करें, जब पौधों में नमी संतुलित रहे. अत्यधिक धूप में काटने से फलियां झड़ने का खतरा रहता है.

सही प्रबंधन से मिलेगी ज्यादा उपज

सरसों की खेती में सावधानी और वैज्ञानिक पद्धति सबसे बड़ी कुंजी है. जो किसान कटाई से पहले सावधानी बरतते हैं, वे लगातार बेहतर गुणवत्ता की फसल और ज्यादा उत्पादन लेते हैं. समय पर रोग नियंत्रण, संतुलित खाद, और फसल की निगरानी से न केवल उपज बढ़ती है, बल्कि बाजार में भी फसल के अच्छे दाम मिलते हैं.

सरसों भारत की प्रमुख तिलहनी फसल है, इसलिए खेती में की गई छोटे से छोटी सावधानी भी किसानों की आय को सीधे प्रभावित करती है. सही प्रबंधन के साथ किसान अपनी फसल को पूरी तरह सुरक्षित रख सकते हैं और कटाई के समय अधिकतम लाभ हासिल कर सकते हैं.

 

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