पाउडरी से लेकर डाउनी तक, ये हैं करेले की फसल की आम बीमारियां- ऐसे करें बचाव

करेले की फसल को बीमारियों से बचाने के लिए जरूरी है कि खेत में सफाई बनी रहे, पौधों के बीच हवा का अच्छा प्रवाह हो, ज्यादा पानी या ओवरहेड सिंचाई न हो, और समय-समय पर निरीक्षण किया जाए.

नई दिल्ली | Published: 25 Jun, 2025 | 06:42 PM

करेला एक ऐसी सब्जी है जो स्वाद में जितना कड़वा होता है, सेहत के लिए उतना ही फायदेमंद भी. मधुमेह से लेकर पाचन तक, इसके फायदे गिनते नहीं थकते. यही वजह है कि किसान और किचन गार्डन प्रेमी दोनों ही इसे जरूर उगाते हैं. लेकिन करेले की खेती भी चुनौतियों से भरी है, खासकर जब फसल बीमारियों की चपेट में आ जाती है. अगर समय रहते इन बीमारियों को पहचाना और रोका न जाए, तो पैदावार में भारी नुकसान हो सकता है.

पाउडरी मिल्ड्यू (Powdery Mildew)

करेले की पत्तियों पर जब सफेद, आटे जैसे पाउडर की परत दिखे, तो समझिए पाउडरी मिल्ड्यू ने हमला कर दिया है. यह फंगल बीमारी है जो पौधे को कमजोर बना देती है और फलन पर बुरा असर डालती है.

बचाव कैसे करें?

पौधों के बीच उचित दूरी रखें, पत्तियों को भीगने से बचाएं और जरूरत हो तो जैविक फफूंदनाशक (फंगीसाइड) का छिड़काव करें.

डाउनी मिल्ड्यू (Downy Mildew)

यह बीमारी पत्तियों पर पहले पीले और फिर भूरे धब्बे बनाकर धीरे-धीरे पूरी पत्ती को सड़ा देती है. बाद में इन धब्बों पर एक सफेद या ग्रे रंग की फफूंद दिखाई देने लगती है.

बचाव कैसे करें?

बीमार पत्तियों को तुरंत हटा दें और जैविक फफूंदनाशक का छिड़काव करें. बारिश के मौसम में विशेष सतर्कता बरतें.

बैक्टीरियल विल्ट (Bacterial Wilt)

अगर करेला का पौधा अचानक मुरझाने लगे और जड़ों में कोई कीड़ा या गलन नजर न आए, तो यह बैक्टीरियल विल्ट हो सकता है. यह एक खतरनाक बीमारी है, जो पौधे को जड़ से खत्म कर देती है.

बचाव कैसे करें?

साफ-सफाई रखें, संक्रमित पौधों को उखाड़कर नष्ट करें और कोशिश करें कि रोग प्रतिरोधक किस्में ही लगाई जाएं.

लीफ स्पॉट (Leaf Spot)

लीफ स्पॉट नाम की बीमारी में पत्तियों पर छोटे-छोटे काले या भूरे धब्बे बनते हैं जो बाद में पूरे पत्ते को खराब कर देते हैं.

बचाव कैसे करें?

बीमार पत्तियों को काटकर नष्ट करें और जैविक फफूंदनाशकों का समय-समय पर छिड़काव करें.

सफाई और सही तरीका है सबसे बड़ा इलाज

करेले की फसल को बीमारियों से बचाने के लिए जरूरी है कि खेत में सफाई बनी रहे, पौधों के बीच हवा का अच्छा प्रवाह हो, ज्यादा पानी या ओवरहेड सिंचाई न हो, और समय-समय पर निरीक्षण किया जाए. रोगों की पहचान शुरुआती दौर में हो जाए तो नुकसान को काफी हद तक टाला जा सकता है.