AI तकनीक से 3.8 करोड़ किसानों को मिली नई उम्मीद, समय पर बुवाई से बढ़ी आय

भारत सरकार के कृषि मंत्रालय और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो ने मिलकर इस तकनीक को किसानों तक पहुंचाने का काम किया. इस साल गर्मियों में 38 मिलियन किसानों को एसएमएस के जरिए उनके इलाके का सटीक मौसम अपडेट मिला.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 19 Sep, 2025 | 07:50 AM

भारत में इस साल मानसून की भविष्यवाणी करने का तरीका बिल्कुल बदल गया है. अब किसानों को मौसम का हाल पहले से जानने के लिए सिर्फ आकाश की तरफ देखने की जरूरत नहीं है. गूगल और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो की एक नई पहल ने 38 मिलियन (3.8 करोड़) भारतीय किसानों तक एआई आधारित मानसून पूर्वानुमान पहुंचाया है, जिससे किसान तय कर पाए कि उन्हें कब बुवाई करनी है, कौन-सी फसल लगानी है या इंतजार करना है.

एआई मॉडल कैसे करता है काम

गूगल रिसर्च ने NeuralGCM नाम का एक खास एआई मॉडल तैयार किया है, जिसे यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो ने और बेहतर बनाया. यह मॉडल मौसम का अनुमान लगाने के लिए भौतिक विज्ञान के साथ-साथ पुराने मौसम के आंकड़ों को भी समझता है. पारंपरिक मॉडल के लिए जहां महंगे सुपरकंप्यूटर की जरूरत पड़ती है, वहीं NeuralGCM को सिर्फ एक लैपटॉप पर भी चलाया जा सकता है. यही वजह है कि यह तकनीक दूर-दराज के वैज्ञानिकों और किसानों तक भी आसानी से पहुंच पा रही है.

पहले से ज्यादा सटीक भविष्यवाणी

बिजनेस लाइन की खबर के अनुसार, शिकागो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पाया कि NeuralGCM को जब यूरोप के Artificial Intelligence/Integrated Forecasting System (AIFS) और भारत के पुराने मौसम डेटा के साथ मिलाया गया, तो यह मॉडल भारतीय मानसून की शुरुआत का अनुमान एक महीने पहले तक दे सकता है. इसने न केवल बारिश की सही तारीखें बताईं बल्कि बीच में आने वाले 20 दिनों के सूखे का भी सही पूर्वानुमान किया.

किसानों तक सीधे पहुंचा संदेश

भारत सरकार के कृषि मंत्रालय और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो ने मिलकर इस तकनीक को किसानों तक पहुंचाने का काम किया. इस साल गर्मियों में 38 मिलियन किसानों को एसएमएस के जरिए उनके इलाके का सटीक मौसम अपडेट मिला. इन संदेशों की मदद से किसानों ने तय किया कि उन्हें धान की बुवाई करनी है, दूसरी फसल पर शिफ्ट होना है या कुछ दिन इंतजार करना है.

आय में हुई दोगुनी बढ़ोतरी

शोध के मुताबिक, जब किसान मौसम की सही जानकारी के आधार पर बुवाई का समय तय करते हैं, तो उनकी सालाना आय लगभग दोगुनी हो सकती है. मध्य प्रदेश के किसान परासनाथ तिवारी बताते हैं, “पहले मैं सिर्फ अपने अनुभव पर निर्भर करता था. अब फोन पर आने वाले संदेशों से मुझे पहले से पता चल जाता है कि बारिश कब होगी.”

जलवायु परिवर्तन के बीच राहत

यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो के प्रोफेसर माइकल क्रेमर के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन सबसे ज्यादा छोटे किसानों की आजीविका को प्रभावित कर रहा है. ऐसे में यह तकनीक किसानों के लिए नई उम्मीद लेकर आई है. यह पहल दिखाती है कि कैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी आधुनिक तकनीक जलवायु संकट से लड़ने और खेती को सुरक्षित बनाने में अहम भूमिका निभा सकती है.

विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले सालों में इस तरह की एआई आधारित तकनीक भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के दूसरे विकासशील देशों में भी किसानों को जलवायु बदलाव से निपटने में मदद करेगी. समय रहते बुवाई करने, फसल बचाने और आय बढ़ाने का यह तरीका आने वाले समय में खेती की तस्वीर बदल सकता है.

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