एथनॉल उत्पादन और चीनी निर्यात पर जोर, खाद्य मंत्री ने मिलों को बायोफ्यूल उत्पादन बढ़ाने का दिया सुझाव

भारत का चीनी उद्योग अब सिर्फ चीनी बनाने तक सीमित नहीं रहेगा. बायोफ्यूल, इथेनॉल, आइसोब्यूटेनॉल और बायो-बिटुमेन जैसे नए विकल्प न केवल देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेंगे, बल्कि किसानों को अधिक आय और उद्योग को नए बाजार देंगे.

Kisan India
नई दिल्ली | Updated On: 12 Sep, 2025 | 11:57 AM

भारत में चीनी उद्योग सिर्फ मीठा स्वाद देने तक सीमित नहीं रहा, अब यह देश की ऊर्जा जरूरतें पूरी करने और किसानों की आय बढ़ाने में भी बड़ी भूमिका निभा सकता है. हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित इंडिया शुगर एंड बायो-एनर्जी कॉन्फ्रेंस 2025 में दो बड़े केंद्रीय मंत्रियों ने इस दिशा में अहम सुझाव दिए.

बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर के अनुसार, केंद्रीय खाद्य मंत्री प्रल्हाद जोशी ने कहा कि भारतीय चीनी उद्योग को अब सिर्फ देश के भीतर ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के बायोफ्यूल बाजार में भी कदम बढ़ाना चाहिए. वहीं, परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने डीजल के साथ आइसोब्यूटेनॉल (Isobutanol) जैसे आधुनिक बायोफ्यूल को मिलाकर इस्तेमाल करने की सलाह दी. दोनों मंत्रियों के ये सुझाव किसानों और उद्योग के लिए नए अवसर खोल सकते हैं.

चीनी उद्योग को मिलेगी नई दिशा

प्रल्हाद जोशी ने कहा कि सरकार चीनी मिलों की प्रमुख मांगों पर जल्द विचार करेगी. इनमें न्यूनतम बिक्री मूल्य (MSP) में संशोधन, गन्ने से बनने वाले एथनॉल की कीमतों की समीक्षा और अक्टूबर 2025 से शुरू होने वाले नए सीजन में लगभग 2 मिलियन टन चीनी के निर्यात की अनुमति शामिल हैं.

उन्होंने मिल मालिकों से अपील की कि वे अपनी डिस्टिलरी को सिंगल-फीड से डुअल-फीड में बदलें, ताकि एथनॉल का उत्पादन और ज्यादा बढ़ाया जा सके. सरकार ने हाल ही में एक बड़ा फैसला लेते हुए गन्ने के रस, सिरप और बी-हैवीसी-हैवी मोलेसिस से एथनॉल बनाने की अनुमति फिर से शुरू की है, जिसे पिछले दो साल से रोक दिया गया था. यह कदम घरेलू चीनी की पर्याप्त आपूर्ति बनाए रखने के लिए लिया गया था.

आइसोब्यूटेनॉल: डीजल के लिए नया विकल्प

नितिन गडकरी ने कहा कि भारत में चीनी का उत्पादन जरूरत से कहीं ज्यादा हो रहा है, इसलिए अब इसका बेहतर उपयोग ढूंढना जरूरी है. उन्होंने सुझाव दिया कि डीजल में आइसोब्यूटेनॉल का मिश्रण शुरू किया जाए.

आइसोब्यूटेनॉल एक रंगहीन, ज्वलनशील तरल है, जिसे उच्च ऊर्जा वाले बायोफ्यूल के रूप में जाना जाता है. खास बात यह है कि यह मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता है. गडकरी ने यह भी कहा कि चीनी उद्योग बायो-बिटुमेन बनाने पर भी ध्यान दे, जिसका उपयोग सड़क निर्माण में किया जा सकता है.

किसानों को होगा सीधा फायदा

एथनॉल मिश्रण कार्यक्रम की वजह से किसानों की आमदनी पहले ही बढ़ रही है. मक्का की खेती में इजाफा होने से अब तक करीब 42,000 रुपये करोड़ सीधे किसानों के खातों में पहुंचे हैं. खाद्य सचिव संजीव चोपड़ा ने कॉन्फ्रेंस में कहा कि 2025-26 में चीनी की मांग और आपूर्ति संतुलित रहने की संभावना है, जिससे किसानों और मिलर्स दोनों को राहत मिलेगी.

सरकार डिजिटल तकनीक जैसे अग्रीस्टैक और डिजिटल क्रॉप सर्वे का इस्तेमाल कर असली गन्ना उत्पादन का सही आंकड़ा जुटा रही है. इससे चीनी मिलों द्वारा कोटा उल्लंघन जैसी समस्याएं लगभग खत्म हो जाएंगी.

नई तकनीक से बढ़ेगा उत्पादन

सरकार गन्ने की नई किस्मों पर भी काम कर रही है. जीनोम एडिटिंग और स्पीड ब्रीडिंग जैसी तकनीकों से जल्द ही ज्यादा पैदावार वाली गन्ना किस्में बाजार मेंसकती हैं. इसके अलावा, सरकार मीठी सॉरघम (Sweet Sorghum) से एथनॉल बनाने को भी बढ़ावा दे रही है. इसके परीक्षण के नतीजे कुछ महीनों में आने वाले हैं.

प्रल्हाद जोशी ने इस मौके पर ग्रीन हाइड्रोजन स्टार्टअप्स के लिए 100 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता योजना की घोषणा भी की. इस योजना के तहत हर प्रोजेक्ट को अधिकतम 5 करोड़ रुपये तक की मदद मिलेगी, ताकि उत्पादन, भंडारण और ट्रांसपोर्टेशन से जुड़ी नई तकनीकें विकसित हो सकें.

सभी के लिए फायदे का सौदा

भारत का चीनी उद्योग अब सिर्फ चीनी बनाने तक सीमित नहीं रहेगा. बायोफ्यूल, एथनॉल, आइसोब्यूटेनॉल और बायो-बिटुमेन जैसे नए विकल्पकेवल देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेंगे, बल्कि किसानों को अधिक आय और उद्योग को नए बाजार देंगे. सरकार के ये कदम भारत को वैश्विक बायोफ्यूल बाजार में मजबूत स्थान दिलाने की दिशा में बड़ा बदलाव ला सकते हैं.

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Published: 12 Sep, 2025 | 11:40 AM

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