2025-26 में चीनी उत्पादन में जोरदार बढ़त, लेकिन मिलों की कमाई में नहीं दिखेगा बदलाव, जानें क्यों

चीनी उत्पादन में बढ़ोतरी के बावजूद ICRA का मानना है कि घरेलू चीनी कीमतें 39-41 रुपये प्रति किलो के दायरे में स्थिर बनी रहेंगी. इसका कारण है सरकार की ओर से चीनी की कीमतों को लेकर संतुलित नीतियां और निर्यात पर नियंत्रण.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 17 Jul, 2025 | 09:44 AM

अच्छे मानसून और बेहतर गन्ने की पैदावार के चलते भारत में अगले चीनी सत्र (SY2026) में चीनी उत्पादन में 15 फीसदी की बड़ी बढ़त देखने को मिल सकती है. रेटिंग एजेंसी ICRA की नई रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों में इस बार ज्यादा उपज होने की उम्मीद है, जिससे कुल उत्पादन 29.6 मिलियन मीट्रिक टन से बढ़कर 34 मिलियन मीट्रिक टन तक पहुंच सकता है.

कितना होगा उत्पादन?

पिछले साल यानी SY2024-25 में देश का सकल चीनी उत्पादन 29.6 मिलियन मीट्रिक टन (MT) के आसपास था. लेकिन नए सत्र में यह आंकड़ा बढ़कर करीब 34 मिलियन MT तक पहुंच सकता है. यह बढ़ोतरी न सिर्फ घरेलू मांग को पूरा करेगी, बल्कि एथेनॉल उत्पादन के लिए भी ज्यादा गन्ना उपलब्ध कराएगी.

इकोनॉमिक्स टाइम्स की खबर के अनुसार,  ICRA का कहना है कि ज्यादा गन्ना उपज से न सिर्फ चीनी की उपलब्धता बढ़ेगी, बल्कि गुड़ और खांडसारी जैसे वैकल्पिक उत्पादों के लिए भी कच्चे माल की कोई कमी नहीं रहेगी.

घरेलू कीमतें होंगी स्थिर, लेकिन मुनाफा सीमित

चीनी उत्पादन में बढ़ोतरी के बावजूद ICRA का मानना है कि घरेलू चीनी कीमतें 39-41 रुपये प्रति किलो के दायरे में स्थिर बनी रहेंगी. इसका कारण है सरकार की ओर से चीनी की कीमतों को लेकर संतुलित नीतियां और निर्यात पर नियंत्रण.

हालांकि, इस स्थिरता के बावजूद मिलों को लागत और राजस्व के बीच ज्यादा अंतर नहीं मिलेगा. ICRA का अनुमान है कि चीनी मिलों की औसत आमदनी 6-8 फीसदी तक जरूर बढ़ सकती है, लेकिन लाभप्रदता (Profitability) पर ज्यादा असर नहीं पड़ेगा.

एथेनॉल से उम्मीद, पर वहां भी संकट

चीनी मिलों के लिए एथेनॉल उत्पादन एक महत्वपूर्ण आय स्रोत बन चुका है, क्योंकि सरकार पेट्रोल में 20 फीसदी तक एथेनॉल ब्लेंडिंग का लक्ष्य लेकर चल रही है. लेकिन समस्या यह है कि एथेनॉल की कीमतों में पिछले दो सालों से कोई बदलाव नहीं हुआ, जबकि गन्ने का न्यूनतम समर्थन मूल्य (FRP) इस दौरान 11.5 फीसदी तक बढ़ चुका है.

ICRA के अनुसार, यह असंतुलन चीनी मिलों और एथेनॉल डिस्टिलरियों के लिए लागत और कमाई के बीच का अंतर बढ़ा रहा है. अगर जल्द ही एथेनॉल की खरीद दरें नहीं बढ़ाई गईं, तो कंपनियों की मुनाफे पर नकारात्मक असर पड़ेगा.

मिलें क्यों हैं दबाव में?

  • FRP में लगातार बढ़ोतरी-किसानों को भुगतान के लिए मिलों पर ज्यादा बोझ आ रहा है.
  • एथेनॉल की कीमत स्थिर– आय नहीं बढ़ रही जबकि लागत बढ़ती जा रही है.
  • निर्यात प्रतिबंध– अंतरराष्ट्रीय बाजार से ज्यादा कमाई की संभावना सीमित हो गई है.
  • गन्ने से उत्पादों का संतुलन– गन्ने का अधिक हिस्सा चीनी की बजाय एथेनॉल या खांडसारी में भेजा जाए, इसके लिए नीति स्पष्ट नहीं है.

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