नागा मिर्च जिसे ‘भूत जोलोकिया’ के नाम से भी जाना जाता है, दुनिया की सबसे तीखी मिर्चों में से एक मानी जाती है. यह मिर्च खासतौर पर नागालैंड और आसपास के पूर्वोत्तर राज्यों में उगाई जाती है. इसका तीखापन इतना तेज होता है कि इसे खाने में बेहद सावधानी से इस्तेमाल किया जाता है. इस मिर्च को उसकी अनोखी पहचान और विशेषता के कारण इसे साल 2008 GI टैग (जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग) भी मिला है, जो यह बताता है कि यह मिर्च सिर्फ खास इलाके में ही उगती है.
नागा मिर्च का इस्तेमाल न सिर्फ मसालेदार खाने में होता है, बल्कि इसे अचार, चटनी और विभिन्न खाद्य उत्पादों में भी डाला जाता है. इसके तीखेपन के चलते यह देश-विदेश में काफी मशहूर है. कई लोग इसे चुनौती के रूप में खाने की कोशिश करते हैं, तो कई इसे दवा और प्राकृतिक कीट नियंत्रण के तौर पर भी इस्तेमाल करते हैं. इसी कड़ी में आइए जानते हैं नागा मिर्ची की कुछ खास बातें.
क्या है नागा चिली?
नागा चिली, Capsicum chinense प्रजाति की मिर्च है, जो भारत के पूर्वोत्तर राज्य खासकर नागालैंड, मणिपुर और असम में पारंपरिक तौर पर उगाई जाती है. इसे ‘भूत जोलोकिया’, ‘नागा किंग चिली’, ‘ओमोरोक’, ‘घोस्ट पेपर’ जैसे कई नामों से भी जाना जाता है. वहीं साल 2006 में में इस मिर्च को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने दुनिया की सबसे तीखी मिर्ची के नाम से घोषित किया गया है. इसकी झुर्रीदार त्वचा और तीखी महक इसे आम मिर्च से अलग बनाती है.
नागा चिली के फायदे
नागा चिली में पाया जाने वाला तत्व कैप्सेसिन (Capsaicin) इसकी तीखेपन का कारण है लेकिन यही कैप्सेसिन दर्द निवारक, कैंसर रोधी, एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इन्फ्लेमेटरी गुणों से भी भरपूर होता है. यह मिर्च न केवल सर्दी-जुकाम, दांत दर्द, मांसपेशियों के दर्द में राहत देती है बल्कि एक्स्पर्ट्स की माने तो यह प्रोस्टेट कैंसर की कोशिकाओं को बढ़ने से रोक सकती है. इसके साथ ही नागालैंड और असम के आदिवासी समुदाय इसे सदियों से औषधीय के रूप में उपयोग करते है.
उत्पादन और आर्थिक संभावना
भारत दुनिया का सबसे बड़ा मिर्च उत्पादक देश है. नागा चिली में 2–4 प्रतिशत तक कैप्सेसिन पाया जाता है, जबकि सामान्य मिर्चों में यह करीब 1 प्रतिशत होती है. यही कारण है कि इससे दवा या एक्सट्रैक्ट तैयार करना ज्यादा किफायती होता है. पूर्वोत्तर भारत की जलवायु इस मिर्च की खेती के लिए बेस्ट बनती है. खासकर नागालैंड के कोहिमा, पेरेन और दीमापुर जैसे इलाकों में यह बड़े पैमाने पर उगाई जाती है.