समस्तीपुर बनेगा हल्दी का हब, नई नीति से बदलेगी बिहार की खेती की तस्वीर, जानें कैसे
इन किस्मों की मांग अब सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रही. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों से भी किसान और व्यापारी इनके बीज मंगवा रहे हैं. यह संकेत है कि बिहार की हल्दी में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनने लगी है.
Bihar turmeric: बिहार की खेती को अगर नई पहचान और बेहतर आमदनी का रास्ता देना है, तो हल्दी जैसी मसाला फसल इसमें बड़ी भूमिका निभा सकती है. अब तक धान और गेहूं तक सीमित माने जाने वाले बिहार के लिए हल्दी एक ऐसा विकल्प बनकर उभर रही है, जो कम क्षेत्र में ज्यादा मुनाफा और रोजगार दे सकती है. हाल ही में डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय (RPCAU) द्वारा जारी एक नीति पत्र में इस बात पर जोर दिया गया है कि अगर राज्य स्तर पर एक ठोस एक्शन प्लान तैयार किया जाए, तो बिहार देश की हल्दी अर्थव्यवस्था में अपनी मजबूत जगह बना सकता है.
समस्तीपुर को बनाया जा सकता है हल्दी का केंद्र
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के अनुसार, इस अध्ययन में खासतौर पर समस्तीपुर को बिहार की हल्दी क्रांति का केंद्र मानते हुए देखा गया है. वर्तमान में यही जिला राज्य का सबसे बड़ा हल्दी उत्पादक इलाका है और बिहार की कुल हल्दी पैदावार का आधे से ज्यादा हिस्सा यहीं से आता है. हालांकि उत्पादन के आंकड़े अभी भी काफी कम हैं और प्रति हेक्टेयर पैदावार राष्ट्रीय औसत से पीछे है. यही वजह है कि विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर वैज्ञानिक तकनीक, बेहतर किस्म और सही मार्केटिंग को जोड़ा जाए, तो तस्वीर पूरी तरह बदल सकती है.
विश्वविद्यालय की उन्नत किस्मों से बढ़ी उम्मीद
RPCAU ने हल्दी की दो उन्नत किस्में विकसित की हैं—राजेंद्र सोनिया और राजेंद्र सोनालिका. इन किस्मों की सबसे बड़ी खासियत इनकी अधिक पैदावार और बेहतर गुणवत्ता है. जहां पारंपरिक किस्मों से सीमित उत्पादन मिलता है, वहीं इन उन्नत किस्मों से प्रति हेक्टेयर 40 से 55 टन तक उपज संभव है. इससे किसानों की लागत घटती है और मुनाफा बढ़ता है.
इन किस्मों की मांग अब सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रही. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे राज्यों से भी किसान और व्यापारी इनके बीज मंगवा रहे हैं. यह संकेत है कि बिहार की हल्दी में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनने लगी है.
GI टैग और ऑर्गेनिक खेती से मिलेगा प्रीमियम दाम
नीति पत्र में यह भी सुझाव दिया गया है कि राजेंद्र सोनिया और राजेंद्र सोनालिका किस्मों के लिए GI टैग की कोशिश की जाए. इन किस्मों में करक्यूमिन की मात्रा काफी अधिक पाई गई है, जो औषधीय और न्यूट्रास्यूटिकल उद्योग के लिए बेहद अहम है. अगर GI टैग और ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन मिल जाता है, तो बिहार की हल्दी को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेहतर दाम मिल सकते हैं.
FPO और प्रोसेसिंग से जुड़ेगा किसान बाजार से
अभी बिहार के किसान हल्दी को कच्चे रूप में बेचने को मजबूर हैं, जिससे उन्हें पूरा लाभ नहीं मिल पाता. नीति पत्र में किसान उत्पादक संगठनों यानी FPO को मजबूत करने पर जोर दिया गया है, ताकि किसान सामूहिक रूप से अपनी फसल की बिक्री कर सकें. इसके साथ ही जिलों में प्रोसेसिंग यूनिट लगाने की बात भी कही गई है, जहां हल्दी की सफाई, सुखाने, पिसाई और पैकेजिंग की जा सके.
सरकार की ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ योजना में समस्तीपुर को हल्दी के लिए चुना जाना इस दिशा में एक बड़ा अवसर है. अगर सही तरीके से निवेश और प्रशिक्षण दिया जाए, तो गांवों में ही रोजगार के नए अवसर पैदा हो सकते हैं.
उप-उत्पादों से भी बढ़ेगी कमाई
हल्दी सिर्फ मसाले तक सीमित नहीं है. इसके पत्तों से निकलने वाला एसेंशियल ऑयल, औषधीय उत्पाद और कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में इस्तेमाल हो सकता है. नीति पत्र में इन उप-उत्पादों पर भी काम करने की सलाह दी गई है, ताकि किसानों की आमदनी के नए स्रोत बन सकें.
बिहार की हल्दी के लिए सुनहरा मौका
फिलहाल बिहार देश के कुल हल्दी उत्पादन में बहुत छोटा योगदान देता है, लेकिन संभावनाएं बहुत बड़ी हैं. वैज्ञानिक किस्में, GI टैग, FPO नेटवर्क, प्रोसेसिंग और मजबूत मार्केटिंग, अगर ये सभी कड़ियां जुड़ जाएं, तो हल्दी बिहार के किसानों के लिए “सुनहरी फसल” साबित हो सकती है. यह न सिर्फ खेती को मुनाफेदार बनाएगी, बल्कि राज्य की पहचान को भी एक नई दिशा देगी.