फसल उत्पादन बढ़ाने में मदद करेंगी बिना डंक वाली मधुमक्खियां, वैज्ञानिकों ने खोजी नई प्रजाति

नगालैंड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बिना डंक वाली मधुमक्खियों की दो प्रजातियों की पहचान की है, जो फसलों के परागण से पैदावार और शहद उत्पादन दोनों बढ़ा सकती हैं.

नोएडा | Updated On: 26 May, 2025 | 10:51 PM

नगालैंड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने खेती की दुनिया में एक नई उम्मीद जगाई है. उन्होंने ऐसी मधुमक्खियों की पहचान की है, जो डंक नहीं मारतीं लेकिन फसलों के परागण में बेहद असरदार हैं. इन मधुमक्खियों के जरिए न सिर्फ उपज बढ़ाई जा सकती है, बल्कि किसानों को अतिरिक्त आमदनी का जरिया भी मिल सकता है.

क्यों खास हैं ये मधुमक्खियां

शोध में जिन दो प्रजातियों की पहचान हुई है, वे हैं टेट्रागोनुला इरिडिपेनिस स्मिथ (Tetragonula iridipennis Smith) और लेपिडोट्रिगोना आर्किफेरा (Lepidotrigona arcifera Cockerell). ये दोनों बिना डंक वाली मधुमक्खियां हैं, जिन्हें वैज्ञानिक भाषा में स्टिंगलेस बीज कहा जाता है. ये मधुमक्खियां छोटे आकार की होती हैं, लेकिन परागण की प्रक्रिया में इनकी भूमिका बेहद प्रभावशाली होती है. इनके शहद में औषधीय गुण भी होते हैं, जिससे यह व्यावसायिक रूप से भी लाभकारी साबित हो रही हैं.

मिर्च की पैदावार में बड़ा बदलाव

शोध का एक प्रमुख भाग मिर्च की फसलों पर केंद्रित था. वैज्ञानिक अविनाश चौहान की टीम ने पाया कि जहां बिना डंक वाली मधुमक्खियों से परागण हुआ, वहां राजा मिर्च (King Chilli) का उत्पादन 21 फीसदी से बढ़कर 29.46 फीसदी तक पहुंच गया. साधारण मिर्च (Capsicum annuum) में भी फल बनने की दर में 7.42 फीसदी की बढ़ोतरी हुई. इतना ही नहीं, बीजों का वजन 60.74 फीसदी तक बढ़ा, जो कि अंकुरण और गुणवत्ता का संकेत है.

शहद और आमदनी दोनों में फायदा

बिना डंक वाली मधुमक्खियों से केवल परागण ही नहीं, बल्कि उच्च गुणवत्ता वाला शहद भी प्राप्त होता है. यह शहद न केवल स्वाद में बेहतर होता है, बल्कि इसमें औषधीय गुण भी पाए जाते हैं. वैज्ञानिक चौहान के मुताबिक, इन मधुमक्खियों से प्राप्त शुद्ध और बिना मिलावट वाला शहद किसानों की आमदनी बढ़ाने का जरिया बन रहा है.

पारंपरिक से वैज्ञानिक पालन की ओर

इन मधुमक्खियों को पहले पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत में परंपरागत रूप से पाला जाता था, लेकिन अब नगालैंड में वैज्ञानिक तरीके से पालन शुरू हुआ है. इसमें वैज्ञानिक छत्तों का उपयोग और रानी मधुमक्खियों की कोशिकाओं से कॉलोनी का विस्तार शामिल है. यह तकनीक मधुमक्खी पालन को अधिक लाभकारी बना रही है और मृत्यु दर भी कम हुई है.

परागणकर्ताओं का संरक्षण जरूरी

शोधकर्ता चौहान का मानना है कि बिना डंक वाली मधुमक्खियों के साथ-साथ जायंट शहद मधुमक्खी (Apis dorsata), बौनी शहद मधुमक्खी ( Apis florea), हलिक्टिड मधुमक्खियां (halictid bees), फूल मक्खियां (syrphid bees), और ब्लू बैंडेड मधुमक्खियां (Amegiella bees) जैसी जंगली मधुमक्खियों का संरक्षण भी जरूरी है. उनका कहना है कि हम एक ऐसा परागण कैलेंडर बना रहे हैं, जिससे किसान और अन्य हितधारक लाभ उठा सकें. देशभर में इन मधुमक्खियों की उपस्थिति को बढ़ावा देना और वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहित करना भी जरूरी है.

Published: 27 May, 2025 | 08:30 AM