ICAR की 2 नई नारियल किस्मों की चर्चा, किसानों के लिए फायदेमंद

आईसीएआर-सीपीसीआरआई की ये पहल नारियल उत्पादकों के लिए एक बड़ी सौगात है. कल्पा सुवर्ण और कल्पा शताब्दी जैसी किस्में खेती को आसान और फायदे का सौदा बनाती हैं.

Kisan India
नोएडा | Published: 13 May, 2025 | 08:30 AM

नारियल की खेती करने वाले किसानों के लिए अब खुशखबरी है. केरल के कासरगोड स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और सेंट्रल प्लांटेशन क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट (CPCRI) के कृषि वैज्ञानिकों ने नारियल की दो बेहतरीन ओपन पॉलिनेटेड किस्म कल्पा सुवर्ण और कल्पा शताब्दी को विकसित किया हैं. ये दोनों किस्में दक्षिण भारत के तीन प्रमुख राज्यों केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में खेती के लिए बेहद उपयुक्त मानी गई हैं. इन किस्मों की सबसे खास बात यह है कि ये कम समय में अधिक उत्पादन देते है, और इन्हें मल्टी पर्पस यानी नारियल पानी और कोपरा (नारियल के गूदे (गिरी) का सूखा हुआ रूप) दोनों ही रूप में इस्तेमाल किया जा सकता हैं.

30 से 36 महीने में तैयार

कल्पा सुवर्ण किस्म एक बौनी (ड्वार्फ) नारियल किस्म है. इसकी खासियत यह है कि यह जल्दी फूल देती है यानी लगभग 30 से 36 महीने में. इसके फल हरे रंग के, लम्बे (ओब्लॉन्ग) आकार के होते हैं, जिनमें मीठा और स्वादिष्ट नारियल पानी भरपूर मात्रा में होता है. इसके साथ ही इससे अच्छी गुणवत्ता वाला कोपरा (सूखा नारियल) भी प्राप्त होता है. यानी एक ही पौधा और दो फायदे. यह किस्म उन किसानों के लिए बेस्ट है जो टेंडर कोकोनट बेचते हैं, लेकिन साथ ही साथ कोपरा उत्पादन भी करना चाहते हैं. इसकी कम ऊंचाई होने से तोड़ाई और देखभाल में भी आसानी होती है.

प्रति फल 273 ग्राम

वहीं दूसरी किस्म कल्पा शताब्दी भी एक डुअल परपज नारियल किस्म है. इसके फल हल्के पीले-हरे रंग के होते हैं, और इनमें औसतन 612 मिलीलीटर तक नारियल पानी होता है. जो बाजार में काफी पसंद किया जाता है. इतना ही नहीं, इस किस्म से प्रति फल 273 ग्राम तक कोपरा भी प्राप्त होता है, जो इसे व्यवसायिक उत्पादन के लिए फायदेमंद बनाता है. इसकी खासियत यह है कि इसका फल बड़ा होता है, और इसमें अच्छे गुणवत्ता वाले का नारियल पानी होता है, जिस कारण बाजार में यह प्रीमियम रेट पर मिलता है.

किसानों के लिए क्यों है फायदेमंद?

इन दोनों किस्मों को खासतौर पर जलवायु बदलाव और बाजार की मांग को ध्यान में रखते हुए विकसित किया गया है. कम समय में फल देने के साथ-साथ ये किस्में बीमारियों के प्रति भी सहनशील हैं. इससे किसानों को न केवल आमदनी मिलती है, बल्कि उत्पादन लागत भी घटती है. साथ ही, ओपन पॉलिनेटेड वैरायटी होने के कारण, ये किस्में स्थानीय बीज उत्पादन के लिए भी बेस्ट हैं. यानी किसान खुद भी अगली पीढ़ी के पौधे तैयार कर सकते हैं.

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Published: 13 May, 2025 | 08:30 AM

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