गाय के गोबर से बनने वाली बायोगैस ग्रामीण इलाकों के लिए वरदान है. यह सस्ता, नया और पर्यावरण-अनुकूल ईंधन है, जो लकड़ी और गैस सिलेंडर का बढ़िया विकल्प बन चुका है.
बायोगैस में लगभग 50-70% मीथेन गैस होती है, जो खाना पकाने, बिजली उत्पादन और वाहनों में बायो-CNG के रूप में इस्तेमाल की जाती है. इससे ऊर्जा की बचत और खर्च में कटौती होती है.
बायोगैस प्लांट में गाय का गोबर और पानी मिलाकर डाला जाता है. वहां हवा नहीं होती, तो कुछ छोटे-छोटे जीव उस गोबर को गला देते हैं. इस प्रक्रिया से गैस बनती है, जिसे इकठ्ठा करके ईंधन की तरह इस्तेमाल किया जाता है.
बायोगैस का इस्तेमाल लकड़ी, कोयला और डीज़ल जैसी चीज़ों की खपत घटाता है, जिससे पेड़ों की कटाई रुकती है और प्रदूषण में कमी आती है. यह स्वच्छ पर्यावरण की दिशा में एक बड़ा कदम है.
बायोगैस प्लांट से गैस के साथ-साथ उत्तम गुणवत्ता की जैविक खाद भी मिलती है. किसान इसे बेचकर अतिरिक्त आमदनी कमा सकते हैं. सरकार इसके लिए सब्सिडी और तकनीकी सहायता भी देती है.
केवल 2-3 गायों के गोबर से एक छोटा बायोगैस प्लांट शुरू किया जा सकता है. सरकार और स्थानीय संस्थाएं इसकी स्थापना में मदद करती हैं, जिससे यह ग्रामीण विकास का मजबूत आधार बन रहा है.