Wilt Disease: दिसंबर के आगमन के साथ ही कड़ाके की सर्दी शुरू हो गई है. कई राज्यों में शीतलर के साथ पाला पड़ रहा है. इससे इंसान के साथ-साथ मवेशी भी परेशान है. लेकिन पाला का सबसे ज्यादा असर दलहनी फसलों के ऊपर देखनों को मिल रहा है. इससे किसानों की चिंता बढ़ गई है. किसानों का कहना है कि पाले के चलते चना और मसूर की फसल उकठा रोग की चपेट में आ रही है. यदि समय रहते इसका सही इलाज नहीं किया गया, तो पैदावार में गिरावट आ सकती है. पर किसानों को चिंता करने की जरूरत नहीं है. आज हम कुछ ऐसे देसी टिप्स और रासायनिक दवाइयों के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिससे अपनाते ही किसानों को पाले और उकठा रोग से राहत मिलेगी.
कृषि एक्सपर्ट के मुताबिक, दिसंबर महीने की दस्तक के साथ ही तापमान लगातार गिर रहा है और रबी सीजन में बोई गई चना और मसूर की फसल अब उकठा रोग का असर दिख रहा है. खासकर मध्य प्रदेश में उकठा रोग के चलते मसूर और चना की फसल सूखने लगी हैं. इससे फसल की पैदावार पर संकट मंडराने लगा है. ऐसे भी इस साल मध्य प्रदेश में किसानों ने काफी अधिक रकबे में चना बोया है. लेकिन लगातार बदलते मौसम ने उकठा रोग का खतरा और बढ़ा दिया है. यह रोग सफेद गलन और काली गलन के रूप में होता है और मिट्टी या बीज से फैलता है. यह फफूंदजनित बीमारी किसी भी अवस्था में पौधों को प्रभावित कर सकती है.
उकठा रोग के शुरुआती लक्ष्ण
कृषि जानकारों के मुताबिक, उकठा रोग तेजी से फैलता है. शुरुआत में यह फसल के छोटे हिस्से को ही प्रभावित करता है, लेकिन कुछ ही दिनों में पूरे खेत में फैल जाता है. प्रभावित पौधों की पत्तियां पीली पड़कर सूखने लगती हैं और आखिर में पूरा पौधा मुरझा जाता है. जड़ के पास चीरा लगाने पर काली संरचना दिखाई देती है, जो रोग का प्रमुख संकेत है.
बुवाई से पहले ऐसे करें बीज उपचार
इसलिए किसानों को बुवाई के समय कुछ जरूरी उपाय अपनाने चाहिए. सबसे पहले खेत की गहरी जुताई करें. फिर बीजों का फंगी-साइड से उपचार करें. इसके बाद मिट्टी में गोबर खाद व जैविक उपचार और फसल चक्र अपनाएं. चना बोते समय रेसिस्टेंट किस्मों का चयन करें ताकि फसल रोगों से सुरक्षित रहे. ऐसे किसान रोग रोकने के लिए बुवाई से पहले बीजों में ट्राइकोडर्मा पाउडर या कार्बेन्डाजिम का इस्तेमाल करें. यदि फसल में उकठा रोग के लक्षण दिखें, तो कार्बेन्डाजिम 50 WP का 0.2 फीसदी घोल बनाकर पौधों की जड़ों में छिड़काव करें.
ये हैं देसी उपाय
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, जिस खेत में पहले उकठा रोग लगा हो, वहां कुछ सालों तक अरहर या लगातार चना नहीं लगाना चाहिए. मिट्टी में फफूंद कई साल तक सक्रिय रहता है और फसल को नुकसान पहुंचा सकता है, इसलिए ऐसे खेतों में फसल परिवर्तन जरूरी है.