तमिलनाडु के कोयंबटूर में किसानों का प्रदर्शन, सरकार के इस फैसले से अन्नदाता हैं नाराज

अधिकारी ने साफ कहा कि केसीसी योजना के नियमों में कहीं भी सिबिल स्कोर चेक करने की शर्त नहीं है. इससे पहले सोमवार को, कई जिलों के किसानों ने अपने-अपने जिलाधिकारियों (कलेक्टर्स) को ज्ञापन सौंपे.

वेंकटेश कुमार
नई दिल्ली | Updated On: 10 Jun, 2025 | 10:45 PM

तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले में किसानों ने सोमवार को कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन किया. उनका आरोप था कि सरकार अब फसल ऋण देने से पहले किसानों का सिबिल स्कोर चेक कर रही है, जो गलत है. हालांकि, राज्य सरकार ने बाद में सफाई दी कि 26 मई को सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार (RCS) द्वारा जारी आदेश को गलत समझा गया है. सहकारिता विभाग के अधिकारियों ने कहा कि किसानों की आशंका के उलट, उस आदेश में सिर्फ “सिबिल स्टेटमेंट” देखने की बात कही गई है, “सिबिल स्कोर” की नहीं. अधिकारियों ने यह भी साफ किया कि किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) योजना के तहत ऋण देने के नियमों में कोई बदलाव नहीं हुआ है.

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक,  सिबिल स्टेटमेंट की जांच सिर्फ यह पता लगाने के लिए की जाएगी कि किसान ने पहले से किसी और बैंक से केसीसी योजना के तहत लोन लिया है या नहीं. एक अधिकारी ने कहा कि केसीसी (किसान क्रेडिट कार्ड) योजना के नियमों के अनुसार, अधिकतम 3 लाख रुपये तक का लोन दिया जा सकता है. इसलिए, सहकारी बैंकों के लिए जरूरी है कि वे यह जांचें कि किसान ने किसी अन्य बैंक से पहले से कोई केसीसी लोन तो नहीं लिया, ताकि तय सीमा से ज्यादा लोन न मिल जाए.

सिबिल स्कोर चेक करने की शर्त नहीं

अधिकारी ने साफ कहा कि केसीसी योजना के नियमों में कहीं भी सिबिल स्कोर चेक करने की शर्त नहीं है. इससे पहले सोमवार को, कई जिलों के किसानों ने अपने-अपने जिलाधिकारियों (कलेक्टर्स) को ज्ञापन सौंपे. उन्होंने आग्रह किया कि यह मामला तुरंत मुख्यमंत्री स्टालिन के सामने उठाया जाए और उनसे हस्तक्षेप की मांग की जाए.

फसल ऋण को भी सिबिल रिपोर्ट में शामिल किया गया

तमिलगा विवासयिगल पथुकप्पु संगम के राज्य उप सचिव एम. गणेशन ने कहा कि कई किसानों ने राष्ट्रीयकृत बैंकों से कृषि पूंजी ऋण, शिक्षा ऋण और छोटे कृषि व्यवसायों के लिए लोन लिया है. लेकिन खेती से कम आय होने के कारण वे समय पर लोन चुकाने में असमर्थ हैं और पहले से ही अपनी सिबिल रिपोर्ट को लेकर परेशान हैं. गणेशन ने कहा कि सहकारी समितियां ही ऐसे किसानों का आखिरी सहारा हैं. अगर सहकारी समितियों से मिलने वाले फसल ऋण को भी सिबिल रिपोर्ट में शामिल किया गया, तो किसानों के लिए राष्ट्रीयकृत बैंकों से भविष्य में फसल या किसी और तरह का लोन लेना और भी मुश्किल हो जाएगा.

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Published: 10 Jun, 2025 | 10:43 PM

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