हिमाचल प्रदेश में आवारा जानवरों का आतंक, गेहूं के कई हेक्‍टेयर खेत तबाह

मंडी, ऊना, हमीरपुर, चंबा और कांगड़ा के उत्‍तरी जिलों में गेहूं की खेती के क्षेत्र में उल्लेखनीय गिरावट आई है. पिछले दो वर्षों में, इस क्षेत्र में लगभग 31,500 हेक्टेयर में गेहूं की खेती की गई थी.

Kisan India
Published: 23 Feb, 2025 | 02:04 PM

हिमाचल प्रदेश में सैकड़ों एकड़ कृषि भूमि बंजर हो गई है और इसकी वजह है आवारा जानवर. ए‍क रिपोर्ट के अनुसार आवारा पशुओं के आतंक से परेशान किसानों ने पिछले तीन सालों में अपने खेतों को खाली कर दिया है. उनकी तरफ से इस मामले को लेकर लगातार अपील की गई लेकिन इसके बावजूद, इस समस्‍या के समाधान के लिए लगातार सरकारों की तरफ से कोई ठोस उपाय नहीं किए गए. यहां पर गाय और बंदरों समेत कई आवारा जानवर खेतों, सड़कों और राजमार्गों पर खुलेआम घूमते हैं. इससे फसलों को काफी नुकसान हो रहा है.

गेहूं का उत्‍पादन गिरा

अखबार द ट्रिब्‍यून की एक रिपोर्ट के अनुसार मंडी, ऊना, हमीरपुर, चंबा और कांगड़ा के उत्‍तरी जिलों में गेहूं की खेती के क्षेत्र में उल्लेखनीय गिरावट आई है. पिछले दो वर्षों में, इस क्षेत्र में लगभग 31,500 हेक्टेयर में गेहूं की खेती की गई थी. पिछले साल, आवारा पशुओं की आबादी की अनियंत्रित वृद्धि के कारण गेहूं की खेती के क्षेत्र में 7,500 हेक्टेयर की कमी आई. ये जानवर खड़ी फसलों को तबाह कर रहे हैं. जहां कांगड़ा ने अपनी खेती को बनाए रखने में कामयाबी हासिल की है तो बाकी चार जिलों में गेहूं के उत्पादन में भारी गिरावट देखी गई.

1500 करोड़ की फसल तबाह

अखबार ने आधिकारिक सूत्रों के हवाले से बताया है कि आवारा जानवर और बंदर सालाना 1,500 करोड़ रुपये से ज्‍यादा की फसलों के विनाश के लिए जिम्मेदार हैं. पालमपुर और आसपास के क्षेत्रों के किसानों ने बताया कि उन्हें नुकसान को रोकने के लिए अपनी फसलों की चौबीसों घंटे रखवाली करनी पड़ती है. कई लोगों ने लगातार विरोध प्रदर्शन किया है, मुख्यमंत्री से लेकर उपायुक्तों तक के अधिकारियों को ज्ञापन सौंपे हैं, लेकिन उनकी चिंताओं को बड़े पैमाने पर नजरअंदाज किया गया है.

पिछले तीन सालों में राज्य में आवारा पशुओं की संख्या चार गुना बढ़ गई है, जिससे संकट और भी बढ़ गया है. लावारिस पशुओं और अनियंत्रित आवारा पशुओं की बढ़ती संख्या किसानों के लिए सबसे बड़ी तकलीफ और बुरे सपने के तौर पर तब्‍दील होती जा रही है.

Cow Cess के नाम पर ‘वसूली’

अखबार की तरफ से जानकारी दी गई है कि हिमाचल प्रदेश सरकार आवारा पशुओं के पुनर्वास के लिए धन जुटाने के लिए शराब की बोतल पर 10 रुपये का ‘Cow Cess’ यानी गाय उपकर वसूल रही है. पिछले साल ही राज्य ने इस कर के जरिए 100 करोड़ रुपये से ज़्यादा की राशि जमा की है. गाय उपकर का मकसद आवारा पशुओं का पुनर्वास करना और किसानों की फसलों की रक्षा करना था. हालांकि, जरूरी रेवेन्‍यू इकट्ठा होने के बावजूद, इस खतरे को नियंत्रित करने के लिए कोई कोशिश नहीं की गई है. हजारों आवारा पशु पूरे राज्य में बेकाबू होकर घूमते रहते हैं.

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