केमिकल से खेती बना रही बीमार, वैज्ञानिकों ने बताया तो हरी खाद के लाभ उठा रहे किसान

कृषि विशेषज्ञ डॉक्टर प्रेम शंकर का कहना है कि ढेंचा को हरी खाद के रूप में इस्तेमाल करने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के साथ ही सूक्ष्म पोषक तत्वों व सूक्ष्म जीवाणुओं को बढ़ाने में मदद मिलती है. इससे मिट्टी की संरचना में सुधार होता है और बोई गई फसल की जड़ों का फैलाव बेहतर होता है.

लखनऊ | Updated On: 22 May, 2025 | 06:32 PM

एक समय था जब किसान अपने खेत में हरी खाद बनाई जाती थी, लेकिन आज समय बदल गया है. अब फसलों के अधिक उत्पादन के लिए और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए किसान खूब केमिकल का इस्तेमाल कर रहे हैं. इन केमिकल्स मानव जीवन को बहुत सी बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. वरिष्ठ चिकित्सक ने पेट, पाचन संबंधी बीमारियों से ग्रसित होने का खतरा बढ़ा है और लोग रोगों के शिकार हो रहे हैं. केवीके के दो वैज्ञानिक ने केमिकल के इस्तेमाल किए बिना ढेंचा की खाद बनाकर खेती करने की सलाह किसानों को दी है और उसके फायदे भी बताए हैं. जबकि, उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले में 1 हजार से ज्यादा किसान ढेंचा के जरिए हरी खाद का इस्तेमाल फसलों में कर रहे हैं. प्रगतिशील किसानों ने बताया कि इससे उन्हें फसलों के उत्पादन में बढ़त के साथ क्वालिटी में सुधार देखने को मिला है.

किसान ने बताया ढेंचा की बुवाई का सही तरीका

ढेंचा के जरिए खाद बनाकर खेती करने वाले प्रगतिशील किसान अरविंद सिंह का कहना है कि ढेंचा की बुआई के पहले खेत की एक बार जुताई कर लेनी चाहिए उसके उपरान्त प्रति हेक्टेयर 35-50 किग्रा बीज का प्रयोग करना चाहिए. ढेंचा की बुआई अप्रैल के अंतिम सप्ताह से लेकर जून के अंतिम सप्ताह तक की जाती है. बुआई के 10 से 15 दिन के बाद हल्की सिंचाई कर लेनी चाहिए. जब फसल 20 दिन की अवस्था में पहुंच जाये तो 25 किलो यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने से फसल में नाइट्रोजन की मात्रा बनने में सहायता मिलती है. आज का समय ऐसा है कि हम लोगों को आसानी से केमिकल उपलब्ध हो जाता है और उसके उपयोग से हमारी फसल अच्छी होती है, लेकिन मिट्टी के भौतिक व जैविक गुण समाप्त हो रहे हैं. इसके चलते खेत बंजर बनते जा रहे हैं.

6 साल से हरी खाद ढेंचा से खेती कर रहे राम मूर्ति

प्रगतिशील किसान राम मूर्ति मिश्र ने बताया कि जब ढेंचा की फसल की लंबाई दो से ढाई फीट की हो जाये तो इसे हल से खेत में पलट देना चाहिए. इसके बाद ढेंचा की फसल सड़नी शुरू हो जाती है. इससे मृदा में जीवाश्म व कार्बनिक पदार्थो की मात्रा में तेजी से बढ़त होती है. ढेंचा की पलटाई के तीसरे दिन से धान की रोपाई की जा सकती है. हरी खाद बनाने के लिए सभी किसानों को विशेष अभियान चलाना पड़ेगा और इसकी तैयारी करके अपने खेतों में उगाना पड़ेगा. मैं लगभग 6 वर्षो से हरी खाद का उपयोग कर रहा हूं. इसके बहुत सारे फायदे हैं. हरी खाद के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सनई खास फसल है. इसे मानसून के शुरू होने पर बुवाई करते हैं.

बस्ती में 1 हजार से ज्यादा किसान खेती में हरी खाद बना रहे

ढेंचा को सभी प्रकार की मिट्टी में उगा सकते हैं. यह कम समय में तैयार होने वाली यानी 45 दिन में तैयार होने वाली हरी खाद की फसल है. गर्मियों में 5-6 सिंचाई देकर इसे तैयार कर लेते हैं. इसके बाद धान की फसल की रोपाई की जा सकती है. प्रति हेक्टेयर इससे मिट्टी में 80 से 100 किलोग्राम नाइट्रोजन इकट्ठा हो जाता है. जुलाई या अगस्त में इसको 45-50 दिन बाद खेत में दबा कर गेहूं या दूसरी रबी की फसल उगा सकते हैं. बस्ती जनपद के अलावा सिद्वार्थनगर, संतकबीरनगर में भी हरी खाद का उपयोग किया जाता है. वर्तमान समय में लगभग बस्ती जनपद में 1 हजार से अधिक किसान हरी खाद बनाकर खेती कर रहे हैं. इस बार सबसे बड़ी समस्या ये आई है कि बस्ती मण्डल के तीनो जिलों में ढेंचा बीज कम किसानों को ही मिला है.

केवीके वैज्ञानिकों ने बताए ढेंचा के फायदे

कृषि विज्ञान केंद्र बंजरिया में विशेषज्ञ डॉक्टर प्रेम शंकर का कहना है कि ढेंचा की फसल को हरी खाद के रूप में इस्तेमाल करने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढाने के साथ ही सूक्ष्म पोषक तत्वों व सूक्ष्म जीवाणुओं केा भी बढाने में मदद मिलती है. इससे मिट्टी की संरचना में सुधार होता है और बोई गई फसल की जड़ों का फैलाव बेहतर होता है. हरी खाद पौधों के सड़ने-गलने से तैयार होती है जो मिट्टी की जलधारण क्षमता को बढ़ाकर नमी को लंबे समय तक बनाए रखने में सहायक होती है. हरी खाद को दबाने के बाद धान की बोई गई फसल में कुछ प्रजातियों के खरपतवार न के बराबर होते हैं. इससे खरपतवार नियंत्रण के लिए प्रयोग किए जाने वाले खरपतवार नाशी के कुप्रभाव से मिट्टी को बचाने में मदद मिलती है.

कृषि विज्ञान केंद्र बस्ती में कृषि प्रसार विशेषज्ञ डॉ. राघवेन्द्र विक्रम सिंह का कहना है कि ढेंचा की फसल से खाद्यान्न उत्पादन नहीं लेना होता है फिर भी इसमें खनिज पदार्थों की उपलब्धता, नाइट्रोजन की अच्छी मात्रा व बोई गई फसलों पर अच्छी प्रभावशीलता को देखते हुए ढेंचा की कुछ किस्में अनुकूल मानी गयी हैं और ये किस्में सस्बेनीया, एजिप्टिका, यस रोसटेटा और एस एक्वेलेटा हैं.

केमिकल से उगाये खाद्यान्न खाकर बीमार हो रहे लोग – वरिष्ठ चिकित्सक

वरिष्ठ चिकित्सक डॉ वीके वर्मा ने बताया कि रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से पैदा की गई उपज के सेवन से लोगों में पेट दर्द, मूत्राशय में दिक्कत और पेट के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है. खेती में अधिक मात्रा में रसायनों का उपयोग करने से मिट्टी की संरचना तो खराब होती ही है और उसमें कार्बनिक पदार्थ की मात्रा कम हो जाती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है. इस तरह से उगने वाली फसल को जब हम लोग सेवन करते हैं तो उसका बुरा असर हमारे शरीर पर पड़ता है जो धीरे-धीरे जानलेवा बन जाता है. रासायनिकों के इस्तेमाल से की गई खेती मानव और पर्यावरण दोनों के लिए हानिकारक है. इसको लेकर सरकार को हरी खाद का इस्तेमाल कराने के लिए कोई ठोस कदम उठाना चाहिए.

Published: 22 May, 2025 | 06:21 PM