टूटे चावल के निर्यात से प्रतिबंध हटा, फिर भी एमपी के निर्यातक निराश!

मध्य प्रदेश के कुल निर्यात में अनाज का योगदान करीब 13 फीसदी है. मध्य प्रदेश के प्रमुख चावल उत्पादक जिलों में जबलपुर, मंडला, बालाघाट और सिवनी शामिल हैं. बालाघाट के चावल को तो जीआई टैग से सम्मानित किया गया है.

Noida | Published: 18 Mar, 2025 | 08:28 PM

मध्‍य प्रदेश में चावल के निर्यातक इन दिनों काफी परेशान हैं. मूल्य समानता की कमी के बीच कमजोर मांग नेइन चावल निर्यातकों के उत्साह को कम कर दिया है. वियतनाम, थाईलैंड और पाकिस्तान समेत बाकी निर्यातक देशों की तरफ से कम कीमतों के कारण मांग में कमी आ रही है. वहीं पिछले दिनों सरकार की तरफ से लिए गए एक बड़े फैसले के बाद भी किसान नाउम्‍मीद ही हैं. केंद्र सरकार की तरफ से पिछले दिनों टूटे चावल के निर्यात पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया गया है. लेकिन निर्यातक इस फैसले को नाकाफी बता रहे हैं.

भारतीय चावल की मांग कम

अखबार टाइम्‍स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार सात मार्च को भारत ने 100 प्रतिशत टूटे हुए चावल के निर्यात की मंजूरी दी है. सितंबर 2022 से इस तरह के चावल के निर्यात पर भारत सरकार ने प्रतिबंध लगाया हुआ था. टूटा हुआ चावल मिलिंग का एक बाइ-प्रोडक्‍ट है. अफ्रीकी देश इस ग्रेड को पसंद करते हैं क्योंकि यह बाकी ग्रेड की तुलना में अधिक किफायती है. इंदौर के एक निर्यातक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया, ‘भारतीय चावल की मांग बहुत कम है क्योंकि अंतरराष्‍ट्रीय बाजारों में इसकी कीमतें बहुत ज्‍यादा है. बाकी निर्यातक देश काफी कम कीमत पर चावल की पेशकश कर रहे हैं जिससे खरीदार दूर हो रहे हैं.

भारत का चावल कई गुना महंगा

इसके अलावा, चावल निर्यात में मध्य प्रदेश की हिस्सेदारी मामूली है, जिसके कारण उसे घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है.’ तीन निर्यातकों ने कहा कि भारतीय टूटे चावल की कीमत वियतनाम के 320-330 डॉलर प्रति टन की तुलना में 30-40 डॉलर प्रति टन ज्‍यादा है. विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2024 में मध्य प्रदेश से चावल का निर्यात 3,634 करोड़ रुपये रहा. यह आंकड़ा पिछले साल की तुलना में 714 करोड़ रुपये अधिक है.

फैसला लेने में हुई देरी!

मध्य प्रदेश के कुल निर्यात में अनाज का योगदान करीब 13 फीसदी है. मध्य प्रदेश के प्रमुख चावल उत्पादक जिलों में जबलपुर, मंडला, बालाघाट और सिवनी शामिल हैं. यहां विभिन्‍न प्रकार के ऑर्गेनिक और सुगंधित चावल की खेती की जाती है. बालाघाट में उगाए जाने वाले चावल को तो जीआई टैग से सम्मानित किया गया है.

मल्टी कमोडिटीज के साथ काम करने वाले निर्यातक विनय अग्रवाल ने कहा कि अगर सरकार ने समय रहते प्रतिबंध हटा लिया होता तो चावल के निर्यात में कुछ बढ़ोतरी देखी जा सकती थी. इंडोनेशिया ने पहले ही पर्याप्त मात्रा में चावल खरीद लिया है. इसके अलावा बाकी अफ्रीकी और दक्षिण पूर्व एशियाई खरीदार इन दरों पर रुचि नहीं दिखा रहे हैं. अफ्रीकी बाजार भारत की तुलना में किफायती दरों और बेहतर सुगंध की तलाश में हैं.