पंजाब में 31 लाख हेक्टेयर में धान की बुवाई, पर कीटों के हमले से वैज्ञानिक परेशान.. दी ये सलाह

पंजाब में खरीफ सीजन के दौरान धान और बासमती की फसलों पर तना छेदक, लीफ फोल्डर और प्लांटहॉपर जैसे कीटों का प्रकोप बढ़ गया है. विशेषज्ञों ने IPM अपनाने और नुकसान की सीमा पार होने पर ही कीटनाशक छिड़काव की सलाह दी है, ताकि पर्यावरण संतुलन बना रहे.

Kisan India
नोएडा | Published: 10 Aug, 2025 | 08:56 AM

इस खरीफ सीजन में पंजाब में धान और बासमती की फसल करीब 31.79 लाख हेक्टेयर में बोई गई है. लेकिन अब कृषि विशेषज्ञ इन फसलों पर बढ़ते कीट हमलों को लेकर चिंता जता रहे हैं, जो पैदावार और गुणवत्ता दोनों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. फसल के दौरान लगातार गर्मी और नमी वाला मौसम तना छेदक, लीफ फोल्डर, प्लांट हॉपर और राइस हिस्पा जैसे कीटों के फैलाव के लिए अनुकूल बना हुआ है. विशेषज्ञों ने इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट (IPM) अपनाने और जरूरत के हिसाब से ही कीटनाशक उपयोग की सलाह दी है.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (PAU) के डॉ. प्रीतिंदर सिंह सराओ ने कहा कि किसान अक्सर सीजन की शुरुआत में ही बिना जांच किए कीटनाशक का छिड़काव कर देते हैं. इससे न केवल पैसे की बर्बादी होती है, बल्कि पर्यावरण का संतुलन भी बिगड़ता है और कीटों में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है. साथ ही विशेषज्ञों ने कहा है कि धान की फसल में तीन तरह के तना छेदक सक्रिय हैं. इसलिए किसानों सतर्कता बरतने की सलाह दी गई है.

इन कीटों का ज्यादा है फसल पर प्रकोप

विशेषज्ञों का कहना है कि जुलाई से अक्टूबर के बीच पीले, सफेद और गुलाबी तना छेदक की तीन प्रजातियां धान की फसल को नुकसान पहुंचाती हैं. ये कीट पौधे के तनों में सुराख कर देते हैं, जिससे शुरुआती अवस्था में ‘डेड हार्ट’ (सूखे केंद्र) और बालियों वाली अवस्था में ‘व्हाइट ईयर्स’ (सफेद बालियां) बनती हैं. इससे पौधे सीधे खड़े रहते हैं लेकिन बीज नहीं बनते. PAU के गुरदासपुर स्थित क्षेत्रीय अनुसंधान केंद्र के डॉ. हरपाल सिंह रंधावा ने सलाह दी कि किसान पूसा 44 और पीली पूसा जैसी देर से तैयार होने वाली किस्मों से बचें, क्योंकि ये ज्यादा पानी और कीटनाशक की मांग करती हैं.

5 फीसदी से ज्यादा नुकसान होने पर करें छिड़काव

उन्होंने कहा कि किसान कीटनाशक का छिड़काव तभी करें जब धान में नुकसान 5 फीसदी और बासमती में 2 फीसदी से ज्यादा हो. विशेषज्ञों का कहना है कि एक ही कीटनाशक बार-बार न लगाएं और छिड़काव से पहले कीटों की संख्या का आंकलन जरूर करें. वैज्ञानिकों के अनुसार, लीफ फोल्डर पत्तियों की हरी ऊपरी सतह खाकर पौधे की फोटोसिंथेसिस (प्रकाश संश्लेषण) प्रक्रिया को कमजोर कर देते हैं. मादा कीट पत्तियों की नीचे की सतह पर पारदर्शी अंडे देती हैं. इनसे निकले लार्वा पत्तियों को मोड़कर अंदर ही खाना शुरू कर देते हैं, जिससे पौधे की सेहत पर असर पड़ता है.

किसान इस तरह करें फसल का उपचार

PAU के कीट विज्ञान विभाग की डॉ. रुबलजोत कुनर ने कहा कि लीफ फोल्डर के लार्वा को हटाने के लिए खेत में खड़ी फसल के ऊपर से मोटी रस्सी घसीटना एक असरदार तरीका है. यह तरीका फूल आने से पहले और तब अपनाएं जब खेत में पानी भरा हो. अगर पत्तियों का 10 फीसदी या उससे ज्यादा हिस्सा लीफ फोल्डर से खराब हो गया हो और एक-तिहाई से ज्यादा पत्ती प्रभावित हो, तभी कीटनाशक का छिड़काव करें. वहीं.ब्राउन और वाइट-बैक्ड प्लांटहॉपर तनों के आधार से रस चूसते हैं, जिससे पौधों में ‘हॉपर बर्न’ यानी सूखे धब्बे बन जाते हैं जो तेजी से फैलते हैं.

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