Paddy Cultivation: 12वीं क्लास में पढ़ने वाली केरल की दो छात्राओं ने कमाल कर दिया. दोनों छात्राओं के शोध के बदौलत अब किसान बंजर जमीन पर भी धान की खेती कर सकेंगे. खास कर यह शोध उन किसानों के लिए उम्मीद की कीरण बनकर उभरा है, जो पहले कभी धान उगाते थे. लेकिन मिट्टी की गुणवत्ता और उर्वरा शक्ति कमजोर होने से किसानों को धान की खेती छोड़नी पड़ी. खास बात यह है कि इन दोनों छात्राओं का नाम अर्चिता मनोज और ज्योतिका कृष्णा है. ये दोनों कुराथिकाड स्थिक NSS हायर सेकेंडरी स्कूल की छात्रा हैं. अब इनका शोध अंतरराष्ट्रीय जर्नल ऑफ रिसर्च एंड एनालिटिकल रिव्यूज में प्रकाशित हुआ है.
द हिन्दू की रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों छात्राओं ने ‘सॉयल रिवाइवल- एको-फ्रेंडली फार्मिंग फॉर एग्रीकल्चर सस्टेनेबिलिटी’ नाम से इस शोध को किया है. शोध में दोनों ने पाया कि रसायनों की जगह इफेक्टिव माइक्रोऑर्गेनिज्म (EM) सॉल्यूशन का उपयोग खेती के लिए ज्यादा टिकाऊ और पर्यावरण के लिए अनुकूल विकल्प हो सकता है. शोध में पाया गया कि EM सॉल्यूशन से उपचारित धान के बीजों से फसल की बढ़त अच्छी हुई और साथ ही मिट्टी की गुणवत्ता में भी काफी सुधार हुआ है. खास बात यह है कि दोनों छात्राओं ने केरल के अलाप्पुझा जिले की मवेलिक्करा-थेक्केक्करा ग्राम पंचायत में शोध का काम किया था.
80 फीसदी से ज्यादा किसानों ने छोड़ी धान की खेती
वहीं, एक सर्वे में 80 फीसदी से ज्यादा किसानों ने माना कि उन्होंने धान की खेती छोड़ दी है, क्योंकि मिट्टी की उर्वरता घटने से उपज लगातार कम हो रही थी. लेकिन दो छात्राओं ने शोध के दौरान प्रयोगशाला, ग्रीनहाउस और खेतों में परीक्षण किए. पर रिजल्ट से पता चला कि इफेक्टिव माइक्रोऑर्गेनिज्म (EM) सॉल्यूशन से इलाज किए गए बीजों से अंकुरण बेहतर हुआ. साथ ही पौधों की जड़ें और तने की लंबाई भी बढ़ी. लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि धान की उपज भी सामान्य NPK खाद की तुलना में ज्यादा हुई.
रसायनों के इस्तेमाल से बढ़ी अम्लता
दोनों छात्रों का कहना है कि थेक्केक्करा पंचायत की मिट्टी में रसायनों के लंबे समय तक इस्तेमाल से अम्लता बढ़ गई और पोषक तत्व खत्म हो गए. 10 वार्डों से लिए गए मिट्टी के सैंपल में pH का स्तर 4.8 तक पाया गया, जो ज्यादा अम्लीय मिट्टी को दर्शाता है. लेकिन EM ट्रीटमेंट के बाद मिट्टी में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम जैसे पोषक तत्व बढ़े और खेतों में उगाई गई धान की फसल में स्वस्थ दानों की मात्रा ज्यादा रही. इससे उत्पादन में सीधा सुधार देखने को मिला.
छात्राओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान
NSS हायर सेकेंडरी स्कूल, कुरथिकाड की प्रिंसिपल रेणु एस ने कहा कि छात्राओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान उनकी मेहनत और लगन को दिखाती है. इस शोध में आर्चिता और ज्योतिका के अलावा स्कूल की बॉटनी टीचर श्रीकला सीजी, एसडी कॉलेज के पूर्व विभागाध्यक्ष सी. दिलीप और शोधकर्ता कार्तिका टीपी भी शामिल थे.