Dussehra 2025: दशहरा जिसे बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाता है. दशहरा का पर्व शारदीय नवरात्रि के आखरी दिन यानी दशमी को मनाया जाता है. भारत में दशहरा पूरे धूम-धाम से मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, दशहरा का पर्व केवल रावण के अंत से ही नहीं जुड़ा है बल्कि इस दिन से महिषासुर वध की पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है. हिंदूओं के लिए दशहरा का त्यौहार बहुत महत्व रखता है. तो चलिए जान लेते हैं कि क्यों दशहरा को इतिहास और आध्यात्मिक दोनों रूपों में इतना विशेष क्यों माना जाता है.
महिषासुर से जुड़ी पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार महिषासुर नाम के राक्षस ने कठोर तपस्या करके भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान मांगा और शर्त रखी कि उसकी मृत्यु किसी स्त्री के हाथों न हो, क्योंकि उसे लगता था कि स्त्री उसे कभी नहीं मार पाएगी. ब्रह्मा जी से वरदान मिलने के बाद महिषासुर अहंकारी हो गया और देवताओं को हराकर उसने स्वर्ग पर कब्जा कर लिया. उसके आतंक से परेशान होकर देवताओं ने मिलकर अपनी शक्तियों से मां दुर्गा को बनाया. कहते हैं कि मां दुर्गा ने नवरात्रि के नौ दिनों तक महिषासुर से भीषण युद्ध किया और दसवें दिन उसे हराकर उसका वध किया. इसीलिए इस दिन को विजयादशमी नाम दिया गया—जिस दिन देवी ने विजय प्राप्त की.
बुराई पर अच्छाई का प्रतीक- रावण दहन
आम तौर पर दशहरा को लोग रावण के अंत का दिन मानते हैं. रामायण के अनुसार, तायुग में भगवान राम ने इसी दिन रावण का वध किया था. माता सीता के हरण के बाद जब रावण मां सीता को लंका ले गया तब उन्हें बचाने के लिए भगवान श्रीराम ने अपनी वानर सेना के साथ लंका पर आक्रमण किया. इस युद्ध में रावण का अंत हुआ. सदियों से लोग इस परंपरा को मनाते हैं और दशहरा यानी विजय दशमी के मौके पर रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन किया जाता है.
दशहरा से मिलने वाली सीख
दशहरा के पर्व से हमें ये सीख मिलती है कि बुराई कितनी भी हो अच्छाई उसका अंत जरूर करती है, ठीक वैसे ही जैसे रात कितनी भी लंबी हो उस रात के बाद सुबह जरूर आती है. महिषासुर और रावण का वध इस बात का प्रतीक है कि कोई कितना भी बड़ा अहंकारी क्यों न हो, एक दिन उसका अहंकार जरूर टूटता है. वहीं, देवताओं ने मिलकर देवी दुर्गा की रचना की, जो इस बात का प्रतीक है कि मिलकर काम करने से बड़ी ताकत पैदा होती है.