किसानों के लिए खतरा बन सकती हैं चावल की दो नई किस्में, वैज्ञानिकों ने PM को लिखा खत

वैज्ञानिकों का आरोप है कि इन नई किस्मों को बिना पर्याप्त सुरक्षा मूल्यांकन के ही मंजूरी दे दी गई, जो आगे चलकर जोखिम भरा साबित हो सकता है. यह चिट्ठी कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान, पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव, स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा और विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री जीतेन्द्र सिंह को भी भेजी गई है.

नई दिल्ली | Published: 24 Jun, 2025 | 07:59 AM

भारत में हाल ही में सरकार ने दो जीन-संपादित (gene-edited) चावल की किस्में किसानों के लिए जारी की हैं. इन्हें क्रिस्पर-कैस9 (CRISPR-Cas9) तकनीक से विकसित किया गया है. सरकार का दावा है कि ये किस्में पुराने चावलों की तुलना में 30 फीसदी तक ज्यादा पैदावार दे सकती हैं और 15–20 दिन पहले पककर तैयार हो जाती हैं. साथ ही इनमें पानी की जरूरत भी कम होती है और ये पर्यावरण को भी कम नुकसान पहुंचाती हैं. लेकिन इस खुशखबरी के साथ एक चिंता की लकीर भी खिंच गई है.

वैज्ञानिकों ने प्रधानमंत्री को लिखा खत, जताई आशंका

एक समूह, जो खुद को “एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट्स मंच” कहता है, उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक चिट्ठी लिखी है. इसमें उन्होंने साफ कहा कि जीन-संपादन में इस्तेमाल की गई CRISPR-Cas9 तकनीक पर बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) का खतरा मंडरा रहा है. यानी अगर इस तकनीक पर विदेशी कंपनियों का अधिकार हुआ, तो इसका नुकसान भारतीय किसानों को हो सकता है.

इस चिट्ठी पर पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय (अकोला) के पूर्व कुलपति शरद निमबालकर समेत करीब 20 नामी वैज्ञानिकों के हस्ताक्षर हैं. उनका कहना है कि CRISPR एक सटीक तकनीक जरूर है, लेकिन इसमें गड़बड़ी की संभावना भी रहती है, जिससे फसल पर बुरा असर पड़ सकता है.

देसी बीजों पर मंडराता खतरा

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी कि यदि इन जीन-संपादित चावल किस्मों का बड़े पैमाने पर उपयोग हुआ, तो इससे भारत के पारंपरिक धान बीज (native germplasm) के दूषित होने का खतरा है. यानी हमारी खुद की देसी किस्में नष्ट हो सकती हैं.

सरकार ने क्या कहा?

सरकार की ओर से सफाई आई है कि जीन-संपादन तकनीक से जुड़े सभी IPR मामलों को गंभीरता से देखा जा रहा है, और इसके लिए एक विशेष समिति भी बनाई गई है. साथ ही सरकार ने यह आश्वासन भी दिया है कि आवश्यक लाइसेंस सरकार खुद लेगी और किसानों पर किसी तरह का अतिरिक्त बोझ नहीं डाला जाएगा.

नई चावल की किस्में

सरकार द्वारा जारी दो जीन-संपादित किस्में हैं- कमला–DRR धान-100, पुसा डीएसटी राइस 1 (Pusa DST Rice 1) है. इनकी खासियत ये है कि ये कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती हैं और वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम करती हैं. इनसे जलवायु परिवर्तन के असर को भी कुछ हद तक कम करने की उम्मीद की जा रही है.

बिना पर्याप्त जांच के ही दे दी गई मंजूरी

वैज्ञानिकों का आरोप है कि इन नई किस्मों को बिना पर्याप्त सुरक्षा मूल्यांकन के ही मंजूरी दे दी गई, जो आगे चलकर जोखिम भरा साबित हो सकता है. यह चिट्ठी कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान, पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव, स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा और विज्ञान व प्रौद्योगिकी मंत्री जीतेन्द्र सिंह को भी भेजी गई है.

किसानों को क्या समझना चाहिए?

फिलहाल सरकार का दावा है कि इससे किसानों को फायदेमंद फसलें मिलेंगी, लेकिन विशेषज्ञों की चेतावनी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. अगर IPR (बौद्धिक संपदा अधिकार) से जुड़ी समस्याएं गहराईं, तो हो सकता है भविष्य में किसानों को इन बीजों के लिए विदेशी कंपनियों पर निर्भर रहना पड़े.