फसल बीमा योजना किसानों के लिए उम्मीद की किरण मानी जाती है. किसान अपनी मेहनत की कमाई से हर साल प्रीमियम भरते हैं, ताकि मुश्किल समय में उन्हें सहारा मिल सके. लेकिन जब असलियत सामने आई, तो किसानों के सपने और भरोसा दोनों टूट गए. मध्यप्रदेश के सीहोर जिले के किसानों की कहानी आज पूरे देश के अन्नदाताओं के दर्द को सामने लाती है. जहां कई किसान 3 साल तक हजारों रुपये फसल बीमा का प्रीमियम भरा, लेकिन जब नुकसान के भरपाई की बारी आई तो दावा है कि केवल 200 रुपये मिले.
बारिश से बर्बाद हुई सोयाबीन की फसल
सीहोर जिले के किसानों ने इस बार सोयाबीन की फसल बड़ी उम्मीदों के साथ लगाई थी. लेकिन भारी बारिश और मौसम की मार से पूरी फसल चौपट हो गई. खेतों में खड़ी फसल पानी में डूब गई और किसान हाथ मलते रह गए. उम्मीद थी कि फसल बीमा योजना से कुछ राहत मिलेगी, मगर हालात ने किसानों को और गहरा दुख दिया.
3 साल प्रीमियम जमा, मिला नाममात्र क्लेम
पिछले तीन सालों से किसान अपनी मेहनत की कमाई से फसल बीमा का प्रीमियम भरते आ रहे थे. उम्मीद थी कि जब फसल बर्बाद होगी तो बीमा संकट की घड़ी में सहारा बनेगा. लेकिन जब नुकसान की भरपाई का समय आया तो किसानों के खाते में नाममात्र की राशि पहुंची. किसी को 100 रुपये प्रति एकड़, तो किसी को 200 रुपये प्रति एकड़ का क्लेम मिला. इतनी मामूली राशि देखकर किसान हताश हैं.
उनका कहना है कि इतने पैसों से न तो वे बीज खरीद सकते हैं, न खाद, और न ही अगली फसल की तैयारी कर सकते हैं. किसानों का दर्द यही बताता है कि फसल बीमा योजना उनकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर रही.
18 हजार के बदले में मिले 1000 रुपये

फसल नुकसान पर मिली बीमा राशि को दिखाता किसान.
धबोटी गांव के किसान बलवान सिंह ने तीन सालों में करीब 18 हजार रुपये बीमा प्रीमियम के तौर पर जमा किए. उन्हें उम्मीद थी कि फसल बर्बाद होने पर बीमा उन्हें बड़ी राहत देगा. लेकिन जब क्लेम आया तो उनके खाते में सिर्फ 1072 रुपये जमा हुए, यानी मुश्किल से 70 रुपये प्रति एकड़. बलवान सिंह की आंखों में आंसू थे और चेहरे पर गहरी निराशा. यह दर्द सिर्फ उनका ही नहीं, बल्कि पूरे गांव के किसानों का है.
किसानों का सवाल: आखिर कब मिलेगा न्याय?

फसल बर्बाद होने से उदास किसान
किसानों का कहना है कि सरकार और बीमा कंपनियां उनके साथ मजाक कर रही हैं. वे पूछते हैं कि जब उनकी पूरी फसल बर्बाद हो जाती है, तब उन्हें इतनी मामूली रकम क्यों दी जाती है? क्या इतने पैसों से वे अपने परिवार का पेट भर पाएंगे? क्या अगली फसल की तैयारी कर पाएंगे? किसानों की पीड़ा यही बताती है कि फसल बीमा योजना का लाभ जमीनी स्तर पर सही तरीके से नहीं पहुंच रहा.