बिहार की उपजाऊ मिट्टी, पारंपरिक खेती और सांस्कृतिक विरासत ने सदियों से ऐसे उत्पाद दिए हैं जो न सिर्फ स्वाद में बेहतरीन हैं, बल्कि अपने खास गुणों के कारण देश-विदेश में भी पसंद किए जाते हैं. यहां की मिट्टी में उगने वाले फल, अनाज और व्यंजन इस राज्य को एक अलग पहचान देता है. तो वहीं इस पहचान को एक आधिकारिक दर्जा भी मिला है, यानी GI टैग. बिहार के कुल 13 उत्पादों को ये टैग मिला है जिनमें खेती-बाड़ी से जुड़े उत्पाद, खान-पान और शिल्प की खास चीजे शामिल हैं. इस टैग से न सिर्फ इनकी मान्यता बढ़ी है, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था को भी नया रास्ता मिला है. तो आइए जानते हैं बिहार के GI टैग उत्पादों के बारें में.
बिहार के प्रोडक्टस जिन्हें मिला चुका GI टैग
मगही पान
मगही पान बिहार के नालंदा, नवादा, औरंगाबाद और गया जिलों में पाया जाता है. यह पान अपने नरम पत्तों, कम रेशे और मीठे स्वाद के लिए जाना जाता है. इसका चिकना और चमकदार पत्ता मुंह में जाते ही घुल जाता है। इसकी खेती खास जलवायु और मिट्टी में होती है, जो इसे दूसरे पानों से अलग बनाती है. यही वजह है कि इसे 28 मार्च 2018 में GI टैग मिला है और इसे पूरी दुनिया में पसंद किया जाता है.
भागलपुरी जर्दालू आम
भागलपुर जिले में उगने वाला यह आम ‘जर्दालू’ के नाम से मशहूर है. इसकी खास बात है इसकी खुशबू, मलाई जैसा गूदा और बेहद मीठा स्वाद होता है. यह आम इतना लोकप्रिय है कि प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति तक को यह आम भेजा जाता रहा है. माना जाता है कि सबसे पहले खड़गपुर के राजा रहमत अली खान बहादुर ने इसकी बागवानी शुरू की थी. 2018 में इसे GI टैग मिला और तब से इसकी पहचान देश भर में होने लगी.
मुजफ्फरपुर की शाही लीची
शाही लीची को भी 2018 में GI टैग मिला था. यह लीची मुजफ्फरपुर और उसके आसपास के जिलें जैसे वैशाली, बेगूसराय, समस्तीपुर और पूर्वी चंपारण में उगाई जाती है. इसका छोटा बीज, रसीला गूदा, अनोखी खुशबू और लाल रंग इसे दूसरी लीचियों से अलग बनाते हैं. शाही लीची सिर्फ स्वाद ही नहीं, बल्कि अपने लुक और क्वालिटी के लिए भी काफी मशहूर है.
कतरनी चावल (भागलपुर)
भागलपुर, बांका और मुंगेर में उगाया जाने वाला कतरनी चावल एक बेहतरीन क्वालिटी का सुगंधित चावल है. इसका नाम ‘कतरनी’ एक पुराने औजार से पड़ा, जिससे लकड़ी में छेद किए जाते थे. इस चावल के दाने छोटे होते हैं, लेकिन इसकी महक और स्वाद लाजवाब होता है. यह चावल बिहार के पारंपरिक व्यंजनों में खास जगह रखता है. इसे साल 2017 में GI टैग दिया गया था.
सिलाव का खाजा
जिले के सिलाव कस्बे का यह पारंपरिक मीठा पकवान कई सदियों से लोगों का मनपसंद रहा है. इसकी खासियत है इसके 15 परतों वाला कुरकुरा ढांचा और चीनी की चाशनी में डूबा हुआ स्वाद. एक मान्यता के अनुसार, भगवान बुद्ध जब राजगीर से नालंदा की यात्रा पर थे, तब उन्हें यह मिठाई परोसी गई थी. 2018 में इसे GI टैग मिला, और अब सिलाव के कई दुकानदार इसे खास पहचान के साथ बेचते हैं.
मिथिला मखाना
मखाने का नाम आते ही मिथिला क्षेत्र की याद आती है. जलाशयों में उगने वाला यह सुपरफूड बिहार की एक अनमोल देन है. यह न सिर्फ स्वादिष्ट होता है, बल्कि सेहत के लिए भी बेहद फायदेमंद है. बिहार के मिथिला मखाना को दिसंबर 2021 में GI टैग मिला है.
GI टैग से क्या फर्क पड़ा?
इन उत्पादों को GI टैग मिलने से न सिर्फ इनकी पहचान बढ़ी, बल्कि किसानों और कारीगरों को भी सीधा फायदा हुआ है. अब इन चीजों की मार्केटिंग आसान हुई है और ये अंतरराष्ट्रीय बाजारों में भी अपनी खास जगह बना रही हैं. इससे स्थानीय लोगों की आमदनी बढ़ी है और बिहार की सांस्कृतिक विरासत को भी सम्मान मिला है.