मटर की खेती करने वाले किसान रहें सावधान, ये कीट कर सकते हैं फसल को चट
हरी मटर सर्दियों की एक लोकप्रिय फसल है, जिसे न सिर्फ घरेलू बाजार में बल्कि प्रोसेसिंग यूनिट्स और निर्यात बाजार में भी भारी मांग मिलती है. ठंडे मौसम में इसकी अच्छी बढ़त होती है और 120–140 दिनों में फसल तैयार हो जाती है. लेकिन कई बार कुछ कीट के हमले आपकी पूरी फसल को बर्बाद कर देते हैं.
Farming Tips: सर्दियों का मौसम किसानों के लिए उम्मीदों से भरा होता है, खासकर उन लोगों के लिए जो हरी मटर यानी सब्जी मटर की खेती करते हैं. 3 से 4 महीनों में तैयार होने वाली यह फसल लागत की तुलना में अच्छा मुनाफा देती है. लेकिन कई बार छोटी-सी गलती भी पूरे खेत की उपज को प्रभावित कर सकती है. इसलिए खेती शुरू करने से लेकर कटाई तक हर कदम पर सावधानी जरूरी है. मटर की फसल मौसम के हिसाब से तो आदर्श होती है, लेकिन रोगों और कीटों के प्रति बेहद संवेदनशील भी रहती है. ऐसे में सही जानकारी किसान की पूरी मेहनत बचा सकती है.
मटर की खेती क्यों है खास?
हरी मटर सर्दियों की एक लोकप्रिय फसल है, जिसे न सिर्फ घरेलू बाजार में बल्कि प्रोसेसिंग यूनिट्स और निर्यात बाजार में भी भारी मांग मिलती है. ठंडे मौसम में इसकी अच्छी बढ़त होती है और 120–140 दिनों में फसल तैयार हो जाती है. यह मिट्टी को नाइट्रोजन देने वाली फसल भी है, जो अगले सीजन की फसल के लिए जमीन को उपजाऊ बनाती है. इसलिए मटर की खेती किसानों की आमदनी बढ़ाने के साथ-साथ खेत की सेहत को भी सुधारती है.
बीज और मिट्टी की तैयारी बेहद जरूरी
हरी मटर की फसल के लिए दो बातें सबसे ज्यादा अहम हैं—बीज की गुणवत्ता और खेत की मिट्टी. अच्छे उत्पादन के लिए रोग मुक्त और प्रमाणित बीज का चयन करें. हल्की दोमट मिट्टी, जिसमें पानी का निकास अच्छा हो, मटर के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है. बीज बोने से पहले उसे फफूंदनाशक से उपचारित करना बहुत जरूरी है ताकि जड़ सड़न और फफूंदी जनित रोगों से पौधों को बचाया जा सके.
खेती शुरू करते समय ध्यान रखें कि पंक्तियों में पर्याप्त दूरी हो. इससे हवा का संचार बेहतर होता है और पत्तियों पर नमी नहीं टिकती, जिससे कई रोगों का खतरा कम हो जाता है.
रोगों और कीटों से सबसे ज्यादा खतरा
मटर की खेती में नुकसान पहुंचाने वाले रोगों में पाउडरी मिल्ड्यू, डाउनी मिल्ड्यू, एस्कोकाइटा ब्लाइट और फ्यूजेरियम विल्ट प्रमुख हैं. ये रोग पत्तियों से लेकर तनों और जड़ों तक पूरे पौधे को प्रभावित कर सकते हैं.
पाउडरी मिल्ड्यू में पत्तियों पर सफेद पाउडर की परत दिखने लगती है, जबकि डाउनी मिल्ड्यू में पत्तियों का रंग पीला पड़ता है और नीचे बैंगनी धब्बे बन जाते हैं. वहीं एस्कोकाइटा ब्लाइट पौधों को झुलसा देता है और फ्यूजेरियम विल्ट पौधे को जड़ से कमजोर कर देता है.
इन समस्याओं से बचने के लिए खेत में नमी संतुलित रखें, अधिक सिंचाई से बचें और जरूरत पड़ने पर जैविक व रासायनिक उपाय अपनाएं.
कीटों में एफिड यानी माहू सबसे ज्यादा नुकसान करता है. यह पत्तियों का रस चूसकर ग्रोथ रोक देता है और कई वायरल रोग भी फैलाता है. खेत में पीली चिपचिपी ट्रैप और प्राकृतिक कीटभक्षी की मदद से इसे नियंत्रित किया जा सकता है.
सही मौसम में कटाई से बढ़ेगी कमाई
हरी मटर की समय पर कटाई बेहद महत्वपूर्ण है. ज्यादा देर होने पर दानों की मिठास और ताजगी कम हो जाती है और बाजार भाव भी घट जाता है. कटाई के बाद खेत की साफ-सफाई करना जरूरी है ताकि अगली फसल में रोग फैलने का खतरा न रहे.