World Soil Day: डरा देगी इस देश की गरीबी, लोग भूख मिटाने को खा रहे मिट्टी की रोटियां

यहां की महिलाएं पहाड़ी मिट्टी इकट्ठा करती हैं, फिर उसमें पानी और नमक मिलाकर मिट्टी का गाढ़ा घोल तैयार करती हैं. फिर इस घोल को हाथों से रोटी के आकार में ढाला जाता है और धूप में कई घंटों तक सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है.

Kisan India
नई दिल्ली | Published: 5 Dec, 2025 | 10:32 AM

World Soil Day: दुनिया भर में गरीबी कई रूपों में दिखाई देती है, लेकिन कुछ दृश्य ऐसे होते हैं जिन्हें देखकर दिल सहम जाता है. हम अपने आसपास जितनी भी गरीबी देखते हों, कैरेबियन सागर में बसे छोटे से देश हैती की स्थिति उससे कहीं ज्यादा भयावह है. यहां के लोग पेट भरने के लिए वह चीज खाने पर मजबूर हैं, जिसे आप और हम छूने से भी डरें… मिट्टी से बनी रोटियां. यह सच सिर्फ गरीबी की गहराई को नहीं दिखाता, बल्कि यह भी बताता है कि भूख इंसान को किस हद तक मजबूर कर देती है.

हैती: दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक

हैती पिछले कई दशकों से गरीबी, भूख, राजनीतिक अस्थिरता और प्राकृतिक आपदाओं से जूझ रहा है. यहां की अधिकांश आबादी झुग्गियों और कच्चे घरों में रहती है. रोजगार के अवसर बेहद सीमित हैं, और लोगों की आय इतनी कम है कि वे दो वक्त की रोटी भी नहीं जुटा पाते.

बुनियादी खाद्य पदार्थों जैसे गेहूं, चावल, तेले, दूध और सब्जियों की कीमतें इतनी बढ़ चुकी हैं कि गरीब लोग इन्हें खरीद नहीं पाते. कुपोषण और भूख यहां का सबसे बड़ा संकट है और यही कारण है कि लोग मजबूरी में असामान्य चीजें खाने लगते हैं.

मिट्टी की रोटियां

हैती के गरीब इलाकों, खासकर Cite Soleil नाम के इलाके में, मिट्टी की रोटियां आम बात हो चुकी हैं. इसे वहां के लोग “मड कुकी” कहते हैं.

यहां की महिलाएं पहाड़ी मिट्टी इकट्ठा करती हैं, फिर उसमें पानी और नमक मिलाकर मिट्टी का गाढ़ा घोल तैयार करती हैं. फिर इस घोल को हाथों से रोटी के आकार में ढाला जाता है और धूप में कई घंटों तक सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है. जब यह पूरी तरह सूख जाता है, तो यह बच्चों, गर्भवती महिलाओं और बुजुर्गों तक का भोजन बन जाता है.

यह रोटी भूख को थोड़ी देर के लिए शांत तो कर देती है, लेकिन पोषण बिल्कुल नहीं देती. बल्कि इससे शरीर में कई बीमारियां पैदा होती हैं, जिनमें पेट दर्द, संक्रमण और आंतों में समस्या सबसे आम हैं.

महंगाई और भूख ने बढ़ाई मजबूरी

हैती में महंगाई का स्तर इतना ऊंचा है कि गरीब परिवार सामान्य भोजन भी खरीद नहीं पाते. चावल की एक प्लेट, रोटी या दाल तक की कीमत उनकी पहुंच से बाहर है. लिहाजा, लोग मिट्टी की रोटियों को ही खाने लगे हैं ताकि भूख थोड़ी देर शांत हो जाए.

गरीबी की यह स्थिति सिर्फ आर्थिक संकट नहीं बताती, बल्कि यह भी दिखाती है कि जब किसी देश में संसाधन खत्म हो जाएं, तो लोग किस कदर मजबूर हो जाते हैं.

स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव

मिट्टी की रोटियां खाने से शरीर को कोई पोषण नहीं मिलता, बल्कि इसके नुकसान ही नुकसान हैं. बच्चों में कुपोषण तेजी से बढ़ रहा है, इतना ही नहीं गर्भवती महिलाओं की सेहत खराब हो रही है. दरअसल,  मिट्टी में पाई जाने वाली बैक्टीरिया और रसायन बीमारियां बढ़ा रहे हैं.  लम्बे समय में आंतों और पेट की गंभीर समस्याएं पैदा हो रही हैं. यह स्थिति बताती है कि हैती में भूख किस हद तक लोगों की जिंदगी को खा रही है.

भोजन की कीमत समझें

हैती की यह कहानी हमें एक बड़ी सीख देती है. अक्सर हम प्लेट में बचा खाना छोड़ देते हैं या बर्बाद कर देते हैं. लेकिन दुनिया के एक हिस्से में लोग मिट्टी खा रहे हैं ताकि उनका पेट शांत रह सके. यह सोच हमें भोजन के प्रति संवेदनशील बनाती है और याद दिलाती है कि खाना एक अनमोल संसाधन है, जिसका सम्मान करना बेहद जरूरी है.

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