व्रत-उपवास हो या बच्चों की खिचड़ी, साबूदाना भारतीय रसोई का एक जाना-पहचाना नाम है. सफेद मोती जैसे दिखने वाले ये छोटे-छोटे दाने खाने में जितने स्वादिष्ट होते हैं, उतने ही किसानों के लिए कमाई का मजबूत जरिया भी बन सकते हैं. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि आखिर ये साबूदाना बनता कैसे है. दरअसल साबूदाना शकरकंद की तरह दिखने वाले कसवा से बनाया जाता है. कम लागत, कम पानी और अच्छे मार्केट वैल्यू के कारण यह फसल किसानों के बीच काफी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है.
दक्षिण राज्यों में खूब होती है कसावा की खेती
टैपिओका रूट को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कसावा के नाम से जाना जाता है. कसावा स्टार्च को टैपिओका कहा जाता है. इसके साथ ही यह एक कंद वाली फसल है, जिसकी जड़ों में स्टार्च की मात्रा काफी अधिक पाई जाती है. यह दिखने में बिल्कुल शकरकंद जैसा होता है. यह पौधा ज्यादातर पूर्वी अफ्रीका में पाया जाता है. वहीं अब इसकी खेती भारत के कुछ हिस्से जैसे केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में भी की जा रहीं है. बता दें कि यह एक बारहमासी जड़ वाली फसल है जो मैदानी और पहाड़ी इलाकों के लिए भी बेस्ट मानी जाती है.
कैसे बनता है साबूदाना
साबूदाना टैपिओका स्टार्च से बनता है. जब पौधा 8 से 10 महीने का हो जाता है, तब इसकी जड़ों को निकाल कर कई दिनों तक पानी में गलाया जाता है. इसके बाद मशीनों की मदद से इसे काटकर गोल दानों में बदला जाता है. इन दानों को सुखाकर ऊपर से ग्लूकोज और स्टार्च की हल्की पॉलिश के बाद उन्हें सुखाकर सफेद चमकदार मोती के रूप में तैयार किया जाता है.
एक एकड़ से 40-90 हजार की आमदनी
अब बात करें मुनाफे की, तो कसावा की खेती किसान के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकती है. इसके साथ ही बता दें कि एक एकड़ जमीन में औसतन 10–12 टन तक कंद की पैदावार हो सकती है. जिसकी मार्केट वैल्यू 4 से 8 रुपए प्रति किलो तक होती है. यानी एक एकड़ से किसान लगभग 40-90 हजार तक की आमदनी कर सकता है. ऐसे में कसावा की खेती और साबूदाना उत्पादन किसानों के लिए एक शानदार कमाई का विकल्प बन सकता है.