केला दुनियाभर में सबसे ज्यादा खाए जाने वाले फलों में से एक है. हमारे देश में तो यह कई किसानों की मुख्य फसल भी है. लेकिन कई बार केला पकते-पकते बीच में ही फटने लगता है, जिसे ‘फ्रूट क्रैकिंग’ कहा जाता है. यह समस्या न सिर्फ उपज को कम कर देती है, बल्कि फलों की गुणवत्ता और बाजार में कीमत पर भी असर डालती है. चलिए जानते हैं कि केले के फल क्यों फटते हैं और किसान इसे कैसे रोक सकते हैं.
पानी की अनियमितता
केले के फलों के फटने की सबसे आम वजह होती है पानी की अनियमित आपूर्ति. जब लंबे समय तक सूखा पड़ता है और फिर अचानक भारी बारिश हो जाती है, तो पौधे ज्यादा पानी सोख लेते हैं. इससे फल में तेजी से सूजन आती है और उसका छिलका फट जाता है. इस समस्या से बचने के लिए किसानों को चाहिए कि वे अपने खेत में नियमित और संतुलित सिंचाई सुनिश्चित करें, ताकि मिट्टी की नमी हमेशा बराबर बनी रहे.
पोषण की कमी भी बन सकती है कारण
केले के पौधे को स्वस्थ और मजबूत बनाए रखने के लिए उसे संतुलित खाद और पोषक तत्वों की जरूरत होती है. अगर मिट्टी में पोटैशियम या कैल्शियम की कमी हो, तो फल का छिलका कमजोर हो जाता है और जल्दी फट सकता है. किसानों को चाहिए कि वे समय-समय पर मिट्टी की जांच कराएं और जरूरत के अनुसार उर्वरकों का इस्तेमाल करें.
फफूंदी संक्रमण से भी होता है नुकसान
कुछ प्रकार की फफूंदी (फंगल इंफेक्शन) जैसे एन्थ्रेक्नोज केले के छिलके को कमजोर कर देती हैं. इससे भी फलों के फटने की आशंका बढ़ जाती है. इसलिए जरूरी है कि किसान नियमित रूप से पौधों की जांच करें, और बीमारी के लक्षण दिखने पर तुरंत फफूंदनाशक (फंगीसाइड) का छिड़काव करें.
रोकथाम के उपाय
- फलों पर खाने योग्य वैक्स या पत्तियों की परत चढ़ाना, जिससे छिलका मजबूत बना रहे.
- फल के गुच्छों को सहारा देना, ताकि वजन और तनाव से छिलका न टूटे.
- खेत में अच्छी जल निकासी व्यवस्था रखना, जिससे ज्यादा पानी जमा न हो.