सूखा भी नहीं रोक पाएगा कमाई! जानिए कैसे कोदो की खेती से बंजर जमीन भी बन सकती है सोना

कम पानी और कम लागत वाली कोदो की खेती आज के दौर में छोटे किसानों के लिए वरदान बन रही है. सरकार भी अब इसकी प्रोसेसिंग यूनिट और ब्रांडिंग पर ध्यान दे रही हैं, जिससे किसानों को और फायदा मिल रहा है.

धीरज पांडेय
नोएडा | Published: 23 Jul, 2025 | 10:31 PM

जब सूखा पड़ता है या बारिश कम होती है तो किसानों के चेहरों पर चिंता की लकीरें खिंच जाती हैं. लेकिन एक फसल ऐसी है जो न केवल कम पानी में उग जाती है, बल्कि बंजर सी दिखने वाली जमीन को भी कमाई का जरिया बना सकती है. इस फसल का नाम है कोदो. यह मोटा अनाज सिर्फ जमीन के लिए नहीं, बल्कि किसानों की आमदनी और सेहत दोनों के लिए फायदेमंद है. आइए, जानते हैं कि कैसे कोदो की खेती बन सकती है सूखे में भी किसानों की सबसे बड़ी ताकत.

कम पानी में उगने वाली फसल

उत्तर प्रदेश सरकार के कृषि विभाग के अनुसार, कोदो एक ऐसी फसल है जो बेहद कम पानी में भी अच्छी पैदावार देती है. यह खासतौर पर उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है, जहां मॉनसून अनिश्चित होता है या सिंचाई की सुविधाएं सीमित हैं. कोदो की खेती उन इलाकों में सफलतापूर्वक की जा सकती है, जहां सालाना औसतन 40 से 50 सेंटीमीटर वर्षा होती है. उत्तर प्रदेश में सोनभद्र, ललितपुर, चित्रकूट, बहराइच, सीतापुर, लखीमपुर खीरी और बाराबंकी जैसे जिलों में इस फसल की खेती की जाती है.

कठिन हालात में भी तैयार होती है फसल

कोदो का पौधा मजबूत और सहनशील होता है. यही वजह है कि इस फसल को ज्यादा देखभाल की जरूरत नहीं होती और यह खराब मिट्टी या पथरीली जमीन में भी उग जाती है. जहां दूसरी फसलें पानी और पोषक तत्व की कमी से सूख जाती हैं, वहां कोदो अपनी पकड़ बनाए रखती है. इसकी यही खासियत इसे सूखा प्रभावित इलाकों के लिए वरदान बनाती है.

सभी प्रकार की मिट्टी में उगने वाली फसल

कोदो को लगभग सभी प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन रेतीली बलुई और दोमट मिट्टी में इसकी पैदावार बेहतर होती है. इसके अलावास पानी का निकास अच्छा होना चाहिए. वहीं, मानसून शुरू होने से पहले खेत की गहरी जुताई करना जरूरी है ताकि मिट्टी में नमी बनी रहे. इसके बाद हल्की जुताई करके खेत को समतल कर लिया जाता है.

बुवाई का सही तरीका

कोदो की बुवाई का सही समय 15 जून से जुलाई के मध्य तक होता है. इस फसल की बुवाई के लिए खेत में पर्याप्त नमी होना जरूरी है. अधिकतर किसान इसे छिटकवां विधि से बोते हैं, लेकिन पंक्तियों में बुवाई करना ज्यादा फायदेमंद है. इससे पौधों को बढ़ने की पर्याप्त जगह मिलती है और बीजों का अंकुरण भी एक समान होता है.

पोषण से भरपूर और स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद

कोदो का उपयोग सिर्फ अनाज के रूप में ही नहीं होता, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिहाज से भी बेहतरीन है. मधुमेह रोगियों के लिए कोदो चावल का बेहतर विकल्प है. क्योंकि यह पचाने में आसान और पोषण से भरपूर होता है. हालांकि, इसका अधपका या मोल्टेड अनाज जहरीला हो सकता है, इसलिए प्रसंस्करण सावधानी से करें.

कुछ साल पहले जब देश के कई हिस्सों में किसान सूखे की मार झेल रहे थे, तब कोदो जैसी फसलें उनके लिए उम्मीद की किरण बनकर सामने आई थी. कम पानी, कम लागत और अच्छी आमदनी, ये तीन बड़े फायदे कोदो की खेती को हर छोटे-बड़े किसान के लिए एक समझदारी भरा विकल्प बनाते हैं. इतना ही नहीं सरकार भी अब इसकी प्रोसेसिंग यूनिट और ब्रांडिंग पर ध्यान दे रही हैं, जिससे किसानों को और फायदा मिल रहा है.

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