राष्ट्रीय किसान प्रोग्रेसिव एसोसिएशन (आरकेपीए) ने देशभर में नकली कृषि उत्पादों की बढ़ती बिक्री पर गहरी चिंता जताई है. संगठन ने कहा कि यह संकट अब बहुत बड़े स्तर पर और खतरनाक तरीके से फैल चुका है. अगर जल्द समाधान नहीं हुआ, तो नकली उर्वरक, कीटनाशक और बीज किसानों की आजीविका को बर्बाद कर सकते हैं. इससे मिट्टी की गुणवत्ता, ग्रामीण अर्थव्यवस्था और देश की आंतरिक सुरक्षा पर भी खतरा मंडराएगा
भारतीय किसान यूनियन (गैर-राजनीतिक) के राष्ट्रीय प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक और आरकेपीए अध्यक्ष बिनोद आनंद ने यह मुद्दा केंद्र सरकार के सामने उठाया है. उन्होंने सरकार से नीति में सुधार करने और किसानों के बीच जागरूकता बढ़ाने की अपील की. दोनों किसान नेताओं ने कहा कि देश में नकली कृषि उत्पादों का नेटवर्क तेजी से फैल रहा है और सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि यह नेटवर्क बेहद संगठित और योजनाबद्ध तरीके से काम कर रहा है.
देश में नकली खाद-बीज की तेजी से बिक्री
दोनों ने कहा है कि कमजोर कानून, नियमों की ढिलाई और खेती में इस्तेमाल होने वाले इनपुट्स की मौसमी कमी का फायदा उठाकर ये सिंडीकेट रबी और खरीफ सीजन से पहले ही भारी मात्रा में नकली सामान और जाली पैकेजिंग तैयार कर लेते हैं. इसके बाद ये नकली उत्पाद ग्रामीण बाजारों में आसानी से बेच दिए जाते हैं. हाल ही में 25 जून 2025 को हापुड़ में एक बड़ा खुलासा हुआ, जहां एक लाख से ज्यादा नकली उर्वरक के बैग जब्त किए गए. ये बैग पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, गाजियाबाद, आगरा और मुजफ्फरनगर समेत 22 जिलों में भेजे जाने वाले थे.
एसोसिएशन ने लाइसेंस देने की प्रक्रिया पर जताई चिंता
वहीं, एसोसिएशन ने लाइसेंस देने की प्रक्रिया में अचानक होने वाले बदलाव और निगरानी की कमजोर व्यवस्था पर भी चिंता जताई है. उनका कहना है कि प्रशासन का ढीला रवैया ऐसे अपराधों को बढ़ावा दे रहा है और इसका सबसे बड़ा नुकसान गरीब ग्रामीण किसानों को उठाना पड़ रहा है. एसोसिएशन का कहना है कि किसान किसी पर आरोप नहीं लगा रहे, वे बस इतना चाहते हैं कि उन्हें सुरक्षा मिले, इंसाफ मिले और इस तरह के शोषण पर रोक लगे.
किसानों ने सुनाई अपनी कहानी
प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई किसानों ने अपनी फसलें खराब होने की दर्दनाक कहानियां साझा कीं. ये नुकसान उन्हें नकली बीज और जाली लेबल वाले कीटनाशक इस्तेमाल करने के कारण हुआ. किसान नेताओं का कहना है कि अक्सर किसान इन उत्पादों को खरीदने के लिए कर्ज लेते हैं और जब फसल बर्बाद हो जाती है, तो वे आर्थिक और मानसिक तनाव में डूब जाते हैं. इसका असर सिर्फ किसान पर नहीं, बल्कि मिट्टी, पर्यावरण और पूरे गांव की स्थिरता पर भी पड़ता है. यहां तक कि वे किसान जो नई तकनीक अपना रहे हैं, वे भी इस नकली उत्पाद संकट से परेशान हैं. यह भारत में कृषि के भविष्य के लिए एक बड़ा खतरा है.