भारत में कीटनाशकों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है. खासकर नीओनिकोटिनॉइड्स जैसे रसायन बिना नियंत्रण के उपयोग हो रहे हैं. साथ ही खेती के तरीके भी बदल रहे हैं. इन वजहों से घास के मैदानों में रहने वाली पक्षियों की प्रजातियां बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं. बेंगलुरु स्थित नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज (NCBS) की एक रिपोर्ट के अनुसार, ये पक्षी मिट्टी की उर्वरता, परागण, बीज फैलाने और पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखने में अहम भूमिका निभाते हैं. इनकी संख्या में गिरावट से इंसानों की सेहत पर भी बुरा असर पड़ सकता है.
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, रिसर्चर्स का कहना है कि पक्षी सिर्फ देखने में सुंदर नहीं होते, बल्कि वे खाद्य श्रृंखला और कृषि तंत्र के लिए जरूरी हैं. वे कीड़े-मकोड़े और कीट-पतंगों को खाते हैं. पश्चिमी देशों में जहां कई कीटनाशक और खाद प्रतिबंधित हैं, वहीं भारत में अब भी इनका अनियंत्रित इस्तेमाल हो रहा है, जिससे स्थानीय और प्रवासी पक्षी दोनों प्रभावित हो रहे हैं. इसी तरह, डायक्लोफेनाक और अन्य NSAIDs जैसी प्रतिबंधित दवाओं का पशुओं और इंसानों में इस्तेमाल जारी है. इन्हीं दवाओं के कारण भारत की सभी छह गिद्ध प्रजातियों की संख्या में भारी गिरावट आई है.
इनका इस्तेमाल खेती और पशु चिकित्सा में तेजी से बढ़ रहा है
नीओनिकोटिनॉइड्स एक तरह के कीटनाशक हैं, जो रासायनिक रूप से निकोटीन जैसे होते हैं. इनका इस्तेमाल खेती और पशु चिकित्सा में तेजी से बढ़ रहा है. ये पौधों द्वारा सोख लिए जाते हैं और उनके पराग और रस (nectar) तक में पहुंच जाते हैं. इस जहर का असर सिर्फ कीटों पर ही नहीं, बल्कि परागण करने वाले फायदेमंद कीड़ों जैसे मधुमक्खियों और उन पर निर्भर पक्षियों पर भी हो रहा है. बेंगलुरु स्थित NCBS की स्टडी बताती है कि इन कीटनाशकों के बेकाबू इस्तेमाल के कारण घास के मैदानों और शिकार करने वाली पक्षियों की प्रजातियों को उनका शिकार (prey) नहीं मिल पा रहा है. इससे टॉनी ईगल, ग्रेटर स्पॉटेड ईगल, सरस क्रेन, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, इंडियन रोलर, बंगाल फ्लोरिकन और कॉमन पॉचार्ड जैसी पक्षियों की संख्या में तेजी से गिरावट आ रही है. इनका रहना खतरे में है क्योंकि खेत अब इनके लिए जहरीले बन चुके हैं.
इन प्रजातियों में तेजी से गिरावट
NCBS की हालिया रिपोर्ट में भारत में आर्द्रभूमि (वेटलैंड) और जल पक्षियों की संख्या में भारी गिरावट की बात कही गई है. 2000 से 2023 तक के आंकड़ों पर आधारित इस स्टडी में बताया गया है कि नॉर्दर्न पिंटेल डक, टफ्टेड डक, ग्रेटर फ्लेमिंगो, सरस क्रेन, स्पूनबिल, पेलिकन, पेंटेड स्टॉर्क, किंगफिशर जैसी कई प्रजातियों की संख्या तेजी से घटी है.
इस गिरावट की मुख्य वजहें
- जल स्रोतों में बढ़ता प्रदूषण
- गाद जमाव
- खेती से होने वाला रसायनिक प्रदूषण
- गलत तरीके से झीलों की सफाई
- झीलों का कांक्रीटीकरण और जल निकासी व्यवस्था का अभाव