ICMR की चेतावनी: कीटनाशकों से बढ़ रहा किसानों में डिप्रेशन और याददाश्त की बीमारी

अब किसान केवल आर्थिक दबाव या जलवायु परिवर्तन ही नहीं झेल रहे, बल्कि उनकी मानसिक सेहत भी गंभीर खतरे में पड़ती दिखाई दे रही है. दरअसल कीटनाशकों के लगातार संपर्क में रहने से किसानों में डिप्रेशन, याददाश्त की कमजोरी और दिमाग से जुड़ी कई न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है.

नई दिल्ली | Published: 20 Nov, 2025 | 09:22 AM

ICMR study: देश में खेती-किसानी हमेशा से मेहनत, संघर्ष और अनिश्चित मौसम के बीच चलने वाला काम रहा है. लेकिन अब किसान केवल आर्थिक दबाव या जलवायु परिवर्तन ही नहीं झेल रहे, बल्कि उनकी मानसिक सेहत भी गंभीर खतरे में पड़ती दिखाई दे रही है. आईसीएमआर के ताजा अध्ययन में एक चिंताजनक तस्वीर सामने आई है, दरअसल कीटनाशकों के लगातार संपर्क में रहने से किसानों में डिप्रेशन, याददाश्त की कमजोरी और दिमाग से जुड़ी कई न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का खतरा तेजी से बढ़ रहा है. यह स्थिति ग्रामीण भारत के लिए एक नए संकट की ओर इशारा करती है.

कीटनाशक और मानसिक बीमारियों का गहरा रिश्ता

आईसीएमआर द्वारा पश्चिम बंगाल के कृषि प्रधान क्षेत्रों में किए गए अध्ययन में पता चला कि सप्ताह में एक बार कीटनाशक छिड़कने वाले किसानों में मानसिक बीमारियों का खतरा तीन गुना तक बढ़ जाता है. लंबे समय तक कीटनाशकों के रसायनों के संपर्क में रहने से दिमाग की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है.

अध्ययन में शामिल कई किसानों ने बताया कि वे वर्षों तक बिना किसी सुरक्षा के खेतों में स्प्रे करते रहे हैं. उनकी याददाश्त कमजोर हो रही है, तनाव तेजी से बढ़ता है और काम करने की क्षमता धीरे-धीरे कम हो रही है. यह समस्या केवल एक गांव या एक राज्य की नहीं, बल्कि पूरे देश के कृषि समुदाय को प्रभावित कर रही है.

अध्ययन में चौंकाने वाले आंकड़े

आईसीएमआर ने पश्चिम बंगाल के पूर्व बर्दवान जिले के गालसी ब्लॉक में 808 कृषक परिवारों का सर्वे किया. इसमें पाया गया कि 22.3 फीसदी किसानों में माइल्ड कॉग्निटिव इंपेयरमेंट (MCI), डिप्रेशन या दोनों के संकेत मौजूद हैं.

शोधकर्ताओं के अनुसार, सप्ताह में एक बार स्प्रे करने वाले किसानों में मानसिक समस्याओं का खतरा 2.5 गुना बढ़ जाता है. जो किसान 30 साल से ज्यादा समय से खेती में हैं और लगातार कीटनाशकों से संपर्क में रहे हैं, उनमें जोखिम लगभग दोगुना है.

खून में दिखा जहर का असर

आईसीएमआर की टीम ने किसानों के खून में तीन महत्वपूर्ण एंजाइम—ACHE, BCHE और PON1 की जांच की. नियमित रूप से कीटनाशक छिड़कने वालों में PON1 जैव-मार्कर का स्तर काफी बढ़ा हुआ पाया गया. यह स्तर तब बढ़ता है जब शरीर जहरीले ऑर्गेनोफॉस्फेट कीटनाशकों से लड़ने की कोशिश करता है. इसे शरीर का “चेतावनी संकेत” माना जाता है कि रसायन दिमाग और नर्वस सिस्टम को प्रभावित कर रहे हैं.

आईसीएमआर ने सरकार को दी सलाह

अध्ययन के बाद आईसीएमआर ने केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह दी है कि किसानों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मॉनिटरिंग, जागरूकता और प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए जाएं. विशेषज्ञों का कहना है कि किसानों को स्प्रे करते समय सुरक्षा किट, मास्क, ग्लव्स और सही दूरी जैसी बातों का प्रशिक्षण देना बेहद जरूरी है.

पश्चिम बंगाल स्थित आईसीएमआर सेंटर फॉर एजिंग एंड मेंटल हेल्थ के प्रोफेसर अमित चक्रवर्ती का कहना है कि ग्रामीण भारत में यह समस्या एक “खामोश महामारी” बन चुकी है, जिसे समय रहते नहीं रोका गया तो चुनौती बड़े स्तर पर सामने आ सकती है.

गांवों में उभर रहा मानसिक स्वास्थ्य का नया संकट

अध्ययन ने यह भी बताया कि खेतों में दिनभर रहने वाले मजदूरों में याददाश्त कम होने, चक्कर आना, ध्यान केंद्रित न कर पाना और रोजमर्रा के काम में बाधा जैसी समस्याएं आम होती जा रही हैं. कुछ मामलों में मूवमेंट डिसऑर्डर के शुरुआती संकेत भी मिले हैं, जो न्यूरोलॉजिकल बीमारियों की ओर इशारा करते हैं.

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