अगर आप खेती में कुछ नया करना चाहते हैं, तो एक बार ईसबगोल की खेती करने के बारे में सोच सकते हैं. यह कोई साधारण फसल नहीं है यह एक औषधीय पौधा है जो न सिर्फ सेहत के लिए फायदेमंद है, बल्कि किसानों की जेब भी भर सकता है. कब्ज, पेट की जलन और पाचन से जुड़ी समस्याओं में काम आने वाले ईसबगोल की दवा कंपनियों में अच्छी डिमांड रहती है. इसकी खेती मेहनत तो मांगती है, लेकिन आमदनी भी अच्छी देती है. चलिए जानते हैं कि इसकी खेती कैसे की जाती है.
ईसबगोल क्या है और कहां होती है इसकी खेती?
ईसबगोल को हिंदी में इसबगुल, अंग्रेजी में सायलियम और संस्कृत में ‘इसबगुल’ कहा जाता है. यह रबी मौसम की औषधीय फसल है, जो ठंडी और सूखी जलवायु में अच्छे से बढ़ती है. भारत में इसका उत्पादन मुख्य रूप से गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में किया जाता है. इसकी भूसी यानी बीज का छिलका औषधीय गुणों से भरपूर होता है.
इसकी खेती के लिए जरूरी जलवायु और मिट्टी
ईसबगोल को ठंडी और शुष्क जलवायु पसंद है. 20 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापमान इसके अंकुरण और परिपक्वता के लिए उपयुक्त है. खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी जिसमें पानी जल्दी न ठहरे और पीएच 7.2 से 7.9 के बीच हो, बहुत उपयुक्त मानी जाती है. रसायनों से मुक्त जैविक मिट्टी इसका स्वास्थ्य बढ़ा देती है.
बीज और बुआई की सही जानकारी
इसकी बुआई अक्टूबर से दिसंबर तक की जाती है. एक हेक्टेयर खेत के लिए 4-5 किलो बीज पर्याप्त होते हैं. बुआई से पहले बीज को फफूंदनाशक से उपचारित करना चाहिए. बुआई के बाद हल्की सिंचाई करें और अंकुरण न हो तो 6-7 दिन बाद दोबारा सिंचाई करें.
सिंचाई और खाद का सही तरीका
ईसबगोल को बहुत ज्यादा खाद की जरूरत नहीं होती. गोबर की सड़ी खाद 10-15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से जुताई के समय खेत में मिला देनी चाहिए. सिंचाई जरूरत के अनुसार की जानी चाहिए. पहली बुआई के वक्त, दूसरी 30 दिन और तीसरी 70 दिन बाद. दुग्ध अवस्था में अंतिम सिंचाई करें.
फसल की देखभाल और कीट प्रबंधन
ईसबगोल को माहूं जैसे कीटों से नुकसान हो सकता है. इनसे बचाव के लिए जैविक कीटनाशक जैसे नीम और गौमूत्र आधारित घोल का छिड़काव करें. अगर जरूरत पड़े तो विशेषज्ञ की सलाह से कीटनाशक का सीमित प्रयोग करें.
कटाई, मड़ाई और उत्पादन
फसल बुआई के 110-120 दिन बाद यानी फरवरी-मार्च में पककर तैयार हो जाती है. जब पत्तियां पीली और बालियां भूरी होने लगें, तब कटाई करें. कटाई के बाद बीजों को सुखाकर सुरक्षित स्टोर करें. एक हेक्टेयर से लगभग 9-15 क्विंटल बीज तक उत्पादन हो सकता है.
सेहत के लिए वरदान है ईसबगोल
ईसबगोल की भूसी पानी में फूलकर जिलेटिन जैसी बन जाती है जो कब्ज से राहत देती है. इसका सेवन पाचन सुधारता है और यह शरीर से विषैले तत्व बाहर निकालता है. यह ब्लड शुगर, कोलेस्ट्रॉल और वजन को नियंत्रित करने में भी मदद करता है.